यह पोस्ट नियमित रूप से अपडेट होगी उन कविताओं से जो की ऊपर हेडर पर लगी हों
आज की कविता- साथी, सब कुछ सहना होगा!-
हरिवंश राय बच्चन
आज की कविता- मुझे पुकार लो-
हरिवंश राय बच्चन
आज की कविता-गुलाबी चूड़ियाँ-
नागार्जुन
आज की कविता-रिश्तों के पिंजरे-डॉ। जगतार
वह मेरे जिस्म के इस पार झांकी उस पार झांकी और कहने लगी, ‘तुम मेरे बाप जैसे भी नहीं जो दारू की नदी तैर कर डुबो देता है उदासी में घर सारा। तुम मेरे पति जैसे भी नहीं जो मेरी रूह तक पहुंचने से पहले ही बदन में तैर कर नींद में डूब जाता है। तुम मेरे भाई जैसे भी नहीं जो चाहता है कि मैं बेरंग जीवन ही गुज़ारूं मगर फिर भी तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो। मगर क्या नाम रखूं इस रिश्ते का मैंने जो रिश्ते जिए, पिंजरे हैं या कब्रें हैं या खंडहर हैं।
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