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कलयुग के चार धाम-गाँधी पर्यटन-gandhi tourism



यूँ तो बद्रीनाथ , द्वारका, जगन्नाथ पुरी,रामेश्वरम हिन्दुओं के चार धाम के रूप में जाने जाते हैं पर कलियुग में भारतवासी ही नही सम्पूर्ण विश्व के लिए गाँधी जी पूजनीय हैं । महात्मा ने यूँ तो जहाँ जहाँ पैर रखे वो जगह परम पुनीत और पावन है, पर देश में 4 स्थानों पर जैसे आप उनके सबसे करीब होते हैं, बात कर सकते हैं, भावनात्मक रिश्ता बना सकते हैं । आइये चलते इन्ही गाँधी धामों संशिप्त दर्शन पर ।
पहला स्थान है वर्धा के पास सेवाग्राम आश्रम ।
सेवाग्राम
महाराष्ट्र राज्य में नागपूर के समीप वर्धा जिले में सेवाग्राम अवास्थित है। यह गांधीजी का मुख्यालय था। 1934-1940 के बीच गांधीजी के प्रयोगों की भूमि भी रहा है। जैसे लोग गावों में रहते है, गांधीजी भी यहाँ उसी तरह रहते थे । बिना बिजली के, और बिना टेलीफान के, स्थानीय स्तर पर जो चीजें उपल्बध हो पाई उन्हीं से गांधीजी ने इस आश्रम का निमार्ण स्वयं किया। आप यहाँ बापू की रसोई भी देख सकते हैं।
सबसे पहले जो कुटी बनाई गयी उसका नाम था आदि निवास, जो कि एक प्रार्थना स्थल है। गांधीजी और कस्तूरबा जहाँ रहते थे वह बापू कुटी और बा कुटी भी यहीं है।


यहाँ कैसे पहुँचे :-


सेवाग्राम, नागपूर से 75 किलोमीटरकी देरी पर स्थित है। दिल्ली से नागपूर और वहाँ से सेवाग्राम जाया जा सकता है। मुंबई से 750 किलोमीटर की दूरी पर वर्धा उतर कर भी सेवाग्राम जा सकते हैं। वर्धा से सेवाग्राम मात्र 8 किलोमीटर दूर है।


दूसरा स्थान है गाँधी जन्म स्थली -पोरबंदर
पोरबंदर


गुजरात राज्य के पश्चिमी छोर पर अरब सागर के मनोरम बंदरगाह पोरबंदर में गांधीजी का जन्म हुआ। गांधीजी के जन्म की स्मृति को जीवंत बनाने के लिए 79 फीट ऊंची एक इमारत का निर्माण उस गली में किया गया जहाँ 2 अक्टूबर 1869 को बापू का जन्म हुआ। कीर्ति मंदिर यहाँ का प्रमुख आकर्षण केन्द्र है। यहाँ गांधीजी का तिमंजिला पैतृक निवास भी है जहाँ ठीक उस स्थान पर एक स्वस्तिक चिह्म बनाया गया है जहाँ गांधीजी की माँ पुतलीबाई ने उन्हें जन्म दिया था। लकडी की संकरी सीढी अभ्यागतों की ऊपरी मंजिल तक ले जाती है जहाँ गांधीजी का अध्ययन कक्ष है। कीर्तिमंदिर के पीछे नवी खादी है जहाँ गांधीजी की पत्नी कस्तूरबा का जन्म हुआ था।
कीर्ति मंदिर से जुडी हुई नयी इमारत में एक गांधी साहित्य ग्रंथालय, एक प्रार्थना गृह, एक पौध शाला तथा गांधीजी के जीवन की चित्रावलियों से सजी ऊंची मीनार है।


कैसे पहुंचें
अहमदाबाद से पोरबंदर बडी आसानी से पहुँचा जा सकता है। अहमदाबाद के लिए मुंबई और दिल्ली से पर्याप्त मात्रा में रेल और हवाई सुविधाएँ उपलब्ध हैं : मुंबई से सीधे पोरबंदर के लिए हवाई और रेल सुविधाएँ हैं।


तीसरा धाम है साबरमती आश्रम


साबरमती आश्रम
साबरमती आश्रम, पहले सत्याग्रह आश्रम के नाम से जाना जाता था। यह उन तमाम ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया था। 1915 में इसकी स्थापना की गई। यह मूल्य और अनुशासन पर आधारित सामुदायिक जीवन का बेहतरीन उदाहरण है। गुजरात राज्य में अहमदाबाद से सिर्फ 5 किलो मीटर दूर साबरमती नदी के पश्चिमी किनारे पर यह बसा है ।
प्रमुख आकर्षण
आश्रम परिसर में एक उल्लेखनीय संग्रहालय है। इस संग्रहालय की पांच ईकाइयाँ हैं जिनमें कार्यालय, ग्रंथालय, चित्रावली दीर्घा और एक सभागृह है। संभवतः यहाँ गांधीजी के पत्रों और लेखों की सर्वाधिक मूल पांडुलिपियाएँ हैं।

संग्रहालय में गांधीजी के जीवन के आठ आदमकर रंगीन तैलचित्र हैं। जिनमें "मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।" और 'अहमदाबाद में गांधीज' प्रदर्शित हैं। यहाँ एक पुराभिलेख संग्रहालय भी स्थापित किया गया है जिसमें गांधीजी के 34,066 पत्र, 8,633 लेखों की पांडुलिपियाँए 6367 चित्रों के निगेटिव्स, उनके लेखन पर आधारित माइक्रोफिल्म के 134 रील तथा गांधीजी और उनके स्वाधीनता आंदोलन पर आधारित 210 फिल्में संग्रहित हैं। ग्रंथालय में 30,000 से अधिक पुस्तकें हैं इनके अलावा यहाँ गांधीजी को दिये 155 प्रशस्ति-पत्र एवं दुनिया भर में गांधीजी पर जारी की गई मुद्राएं सिक्के और डाक टिकटों का अद्भुत संकलन है।


बुधवार, शुक्रवार और रविवार को शाम 6.30 गुजराती में और शाम 8.30 अंग्रेजी में न्यूनतम शुल्क पर यहाँ ध्वनि और प्रकाश पर आधारित –श्यावलियाँ आयोजित की जाती हैं। अन्य दिनों में यह आयोजन हिंदी में किया जाता है।
प्रातः 8.30 से शाम 6.00 तक यह आश्रम साल भर खुला रहता है। यहाँ प्रवेश निःशुल्क है।
कैसे पहुँचे :-
दिल्ली और मुंबई से अहमदाबाद को बेहतरीन रेल और हवाई सेवाएं उपलब्ध हैं।


चौथा धाम है - राजघाट


राजघाट
यमुना नदी के पश्चिमी तटपर 31 जनवरी 1948 की शाम यहीं पर गांधीजी का अंतिम संस्कार किया गया। उनकी स्मृतियाँ अब भी यहाँ जीवंत है। यहाँ एक साधारण-सा चबूतरा है जिस पर बापू के अंतिम शब्द ''हे राम`` कुदे हुए है। पास ही उपवन, फव्वारा तथा विलक्षण पेड़-पौधे लगे हुए है।


यहाँ कैसे पहुँचे :-


भारत की राजधानी होने के नाते दिल्ली, पूरे देश से रेल और हवाई मार्ग से जुड़ी हुई है।




तो ये रहा गाँधी पर्यटन , कैसा लगा और आपका इस पर्यटन पर क्या विचार है बताएं