अमीर खुसरो- बसंत


बसंत होता ही है नया, और अपने गुरु के साथ जो बसंत मानाने को मिल जाए तो फिर बात ही क्या, सुनिए ये ऑडियो ब्लॉग :-


हाथ लागी-लागी नई धूप,
दीखे, धुली साफ मन की चदरिया
दसों दिशा आज सांवरिया
लिए नया रूप..


आज बसंत मनाले सुहागन - 
अज बसंत मनाले सुहागन, 
आज बसंत मनाले; 
अंजन मन कर पिया मोरी, 
लम्बे नेहर लगाये; 
तू क्या सोवे नीन्द की मासी, 
सो जागे तेरी बात, सुहागुन, 
आज बसंत मनाले; 
ऊँची नार के ऊँचे चितवन, 
आयसो दियो है बानाये; 
शाह-ए आमिर तोहे दीखन को, 
नैनन कह नैना मिलै, सुहागुन, आज बसंत मन लाये।



सकल बन फूल रही सरसों
बन बन फूल रही सरसों
अम्बवा फूटे टेसू फूले
कोयल बोले डार-डार
और गोरी करत सिंगार
मलनियाँ गढवा ले आईं कर सों
सकल बन फूल रही सरसों
तरह तरह के फूल खिलाए
ले गढवा हाथन में आए
निजामुद्दीन के दरवज्जे पर
आवन कह गए आशिक़ रंग
और बीत गए बरसों
सकल बन फूल रही सरसों

वैसे तो इस गीत को कई कलाकारों ने अपने अपने तरीके से  गाया है , मैं आपको यहाँ छोड़े जा रहा हूँ सारा रज़ा की इस  प्रस्तुति के साथ 


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