दोस्त का आभार आपके द्वार

शादी पारंपरिक भारतीय समाज का आनंदमयी उत्सव माना जा सकता है। जिसमे लोकगीत, बधाईयां और गारियों ले लेकर फिल्मी गीतों का समागम रहता है। इस पोस्ट को लिखते हुए अत्यंत हर्ष महसूस हो रहा है कि मैं करोड़ों लोगों के विचारों को आकार दे पा रहा हूं। अभी पिछले दिनो हमारे मित्र की शादी हुई हमारे गांव में, जाने का अवसर तो प्राप्त नहीं हो पाया, लेकिन अग्रिम बधाई जरूर दे दी थी। शादी के दो दिन बाद उस मित्र का फोन आया, जिस पर उसने शादी और उससे प्राप्त अनुभवों का विस्तृत ब्यौरा दिया।.....इसी बीच अचानक खामोष हो बड़ी भावुकता से सवाल पूछा कि यार एक बात बताओ ‘ये देश है वीर जवानों का‘ और ‘बहारों फूल बरसाओ, मेरा महबूब आया है‘ गीत किसने लिखा है? मैने कहा पता करके बता दूंगा लेकिन ये अचानक गीतकार की याद कैसे आ गई। उसने कहा यार मै दोनों को बड़े दिल से धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि जब मेरी बारात जा रही थी और मै दूल्हा बना घोड़े पर बैठा था उस वक्त बारात में शामिल लोग नाच रहे थे, पर मुझे मजा नहीं आ रहा था। तभी बैण्ड वाले ने ‘ये देश है वीर जवानों का‘ बजाया और मन प्रफुल्लित हो गया। पहली बार लगा कि अपनी बारात जा रही है और अपन घोड़े पर बैठ कर स्वयम्वर के लिए जा रहे अकेले राजकुमार हैं।
जब हम उस धर्मशाला के द्वार पर पहुंचे जहां से हमारी शादी हो रही थी, गाना शुरू हुआ कि ‘बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है‘ उसे सुनते ही पता नहीं क्यों आंखे नम हो गई और लगा कि पहली बार पूरी शादी में अपन को किसी ने सीरियसली लिया है। धर्मशाला की छत पर खड़ी कुछ युवतियां हम पर फूल भी बरसाने लगी सचमुच हम स्वयंबर के अकेले राजकुमार थे।
तभी से मेरे मन में ख्याल आया था कि इन गीतों के गीतकारों के प्रति किसी तरह आभार प्रकट करूंगा। मैंने अपने मित्र की बात को समझते हुए यह पोस्ट लिखी क्योंकि सच में करोड़ों लोगों की षादियों में बिना रायल्टी के बजे इन गीतों ने उत्सव के पलों को यादगार जरूर बनाया है। लगभग तीन पीढ़ी की उम्र हो चुकी इन गीतों में आज भी वही मजा है। भाषाई बाधाओं को तोड़ते हुए ये गीत संपूर्ण भारत के हिस्सों में शादी के मौके पर साथी रहे हैं और हम सब की और से इन गीतों के गीतकार को बहुत-बहुत आभार।
सुनी और आनंद लीजिये

हिन्दी में लिखने के ऑफ़ लाइन टूल

हिन्दी में लिखने वालों की एक बड़ी दिक्कत रही है हिन्दी में आफलाइन लिखने की , हर बार ब्लॉग पोस्ट करने के लिए इन्टरनेट से जुड़ना ज़रूरी हो जाता है , असीमित ब्रॉडबैंड कनेक्शन वालों के लिए तो ठीक है पर जो लोग असीमित इन्टरनेट का प्रयोग नही कर रहे हैं उनके लिए कुछ समस्या तो है ही। इसके आलावा समय-समय पर ब्लागर का गूगल की लिपि परिवर्तक-सेवा से संपर्क टूट जाना लय के बने रहने अड़चन पैदा करता है ।

इस समस्या का समाधान इन्टरनेट पर पहले से ही मौजूद है ऑफ़लाइन फॉण्ट कन्वर्जन टूल इस टूल की मदद से आप अपने कम्प्यूटर पर अपने फाँट में लिख कर और उसे यूनिकोड में बदल कर ब्लागर या अन्य साईट पर उपयोग कर सकते हैं ।

मेरी जानकारी के अनुसार इनमे से कुछ अनुनाद सिंह जी और कुछ नारायण प्रसाद जी ने बनाये और आम जन के उपयोग के लिए दिए हैं। अनुनाद सिंह जी हमारे नजदीक इंदौर से हैं , नारायण प्रसादजी ने बीटेक ऑनर्स किया है। इसके साथ ही जर्मन और रशियन भाषा में डिप्लोमा प्राप्त किया है। वे 10 भाषाओं का ज्ञान रखते हैं और संस्कृत और हिन्दी के व्याकरण को लेकर विगत कई वर्षों से शोध कार्य कर रहे हैं । हम उनका धन्यवाद करते हैं जो उन्होंने ये फाइल्स उपलब्ध करा कर कई लोगों की मुश्किल हल की है ।

ये सभी फाइल्स जावा स्क्रिप्ट में हैं और इनके काम करने के लिए आपके कम्प्यूटर में जावा स्क्रिप्ट चलने की क्षमता होनी चाहिए ।
इन्हे डाउनलोड करने के लिए आप निचे दी हुई लिंक्स पर right click कर save link as पर क्लिक कर डेस्कटॉप पर क्लिक कर सेव कर सकते हैं
  1. कृतिदेव से यूनिकोड डाउनलोड करें (right click कर save as करें )
  2. आगरा फॉण्ट से यूनिकोड डाउनलोड करें (right click कर save as करें )
  3. गाँधी फॉण्ट से यूनिकोड डाउनलोड करें (right click कर save as करें )
  4. युवराज फॉण्ट से यूनिकोड डाउनलोड करें (right click कर save as करें )
  5. चाणक्य से यूनिकोड डाउनलोड करें (right click कर save as करें )
  6. डीवि योगेश से यूनिकोड डाउनलोड करें (right click कर save as करें )
  7. शिवाजी से यूनिकोड डाउनलोड करें (right click कर save as करें )
  8. श्री-लिपि से यूनिकोड परिवर्तक डाउनलोड करें (right click कर save as करें )

इसके आलावा अगर आप किसी और फॉण्ट में काम करते हैं जो यहाँ नही तो आप
Scientific and Technical Hindi (वैज्ञानिक तथा तकनीकी हिन्दी) के गूगल ग्रुप पर जाकर कुछ और भी डाउनलोड कर सकते हैं
इस ग्रुप की फाइल्स यहाँ मिलेंगी

एक बार आप फाइल डाउनलोड कर लें उसपर डबल क्लिक कर इन्टरनेट एक्स्प्लोरर में खोल लें । ऊपर एक पिली पट्टी आ जायेगी उस पर right click कर allow blocked content पर क्लिक करें,

और अपना पुराने फॉण्ट में लिखा गया पाठ लिखें और उसे यूनिकोड में में कन्वर्ट करें ,

उम्मीद है ये आपके लिए मददगार साबित होगा


Photobucket

अपने ब्लॉग पर ये चित्र लगा कर हिन्दी में लिखने को प्रोत्साहित कर सकते हैं ,क्योंकि कई लीग सिर्फ़ इसलिए ब्लागिंग नही करते क्योंकि उन्हें यूनिकोड में लिखने का तरीका पसंद नही है


कोड ये हैं

<a href="http://sarparast.blogspot.com/2009/03/blog-post_29.html" target="_blank"><img style="width: 263px; height: 195px;" src="http://i629.photobucket.com/albums/uu17/mayurdubey2003/Picture1-1.png" alt="Photobucket" border="0" /></a>



कोई और सहायता यदि हम कर पाएं तो बताएं ,खुशी होगी

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वरूण को हटाना भाजपा की नैतिक जिम्मेदारी

लंबी जांच प्रक्रिया के बाद आखिरकार चुनाव आयोग ने भड़काउ भाषण देने के लिए वरूण गांधी को दोषी ठहरा हीदिया है। साथ ही भाजपा को यह सलाह भी दे डाली कि वह पीलीभीत से वरूण गांधी को उम्मीदवार न बनाए। इससलाह के बाद एक राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते भाजपा की यह नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है कि वह पीलीभीत सेअपना उम्मीदवार बदल दे। सभी राजनैतिक दल भी अपने-अपने बयान जारी कर भाजपा पर यह दवाब बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
वरूण गांधी पर मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप है और वरूण गांधी ने यह कहते हुए इनआरोपों को बेबुनियाद बताया था कि उनके वीडियो के साथ छेड़छाड़ की गई है। लेकिन जब चुनाव आयोग ने वरूणको यह साबित करने को कहा तो वे इसमें नाकाम रहे। मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी भी कह चुके हैं किवीडियो के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। भारत के चुनावी इतिहास में संभवतः यह पहला मौका है जब आयोगने किसी पार्टी को ऐसी सलाह दी हो।
चुनाव के दौरान मतदाताओं को इमोशनली ब्लैकमेल करने के लिए राजनेता इस तरह के हथकंडे अपनाते रहे हैं।कईयों को तो दोषी भी करार दिया गया और कुछ किसी तरह गोलमोल कर बच निकलने में सफल हो गए। लेकिनमामला यहां तक नहीं पहुंचा था।
भारतीय राजनीति के लगातार गिरते स्तर का यह एक अच्छा खासा उदाहरण है। इस घटनाक्रम के बाद भाजपा केपार्टी विद डिफरेंस की छवि एक बार फिर उजागर हुई है लेकिन इस बार भी किसी तरह की आड़ी-तिरछीबयानबाजी कर वह अपना पलड़ा झाड़कर इस प्रकरण से मुक्त होने की कोशिश करेगी।
यदि आपने ये वीडियो पहले नही देखा हो तो अब देख लें । एडिटेड है ,
भगवान बचाए ऐसे नेताओं से

आप इसे क्या कहेंगे ज़रूर बताएं ।

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इन्टरनेट स्पीड क्या ? क्यों ? कैसे ?

भारतीय जनमानस को भगवन ने कुड़ने और कोसने का अजब तोहफा दिया है । यदि कोई चोर नही है तो भी उसको इतना चोर कहेंगे की वो डर के मारे ख़ुद ही सफाई देने लगेगा ,और कोई हमें गलती करता हुआ तो दिख जाए उसकी जान ही ले के दम लेते हैं ।
इन दिनों हमारे ब्लागर भी इसी धुन मैं internet service provider अंतरजाल सेवा प्रदाता कम्पनियों के पीछे पड़े हैं की भइया स्पीड ही नही मिलती और चोरी का इल्जाम भी लगा रहे हैं तो कितना, 90% ये तो सही में कुछ ज्यादा ही हो गया है ,नही क्या ?

तो आइये आपको इन्टरनेट स्पीड के बारे में कुछ समझाते हैं

इन्टरनेट पर वेबसाइट खोलते समय एक प्रोसेस के तहत उस का कंटेंट विभिन्न स्वरूपों में जैसे फोटो है तो .png या .jpg या कुछ और जावा स्क्रिप्ट है तो .js ,html पेज है तो .html में और api की css शीत .css में कंप्युटर की अस्थ्याई (temprory) मेमोरी में डाउनलोड हो कर सेव हो जाते हैं । जिसका पता ei8 में कुछ ऐसा दिखता है C:\Documents and Settings\MICROSOFT\Local Settings\Temporary Internet Files .
इस डाटा के ट्रांसफर को टेलीकम्युनिकेशन और कंप्यूटिंग की भाषा में bitrate ( बिटरेट ) कहते हैं । इसे बिट्स प्रति सेकंड (bits per second ) के माप से मापते हैं ,bps और इसी नाचीज़ को हम स्पीड के नाम से जानते हैं ,ज़ाहिर है जितना ज्यादा बिट रेट होगा उतनी ही ज्यादा इन्टरनेट स्पीड और जब कोई डाटा डाउनलोड होता है तो उसे बायट्स प्रति सेकंड में मापते है ,Bps . अब शायद इससे ज्यादा टेक्नीकल ज्ञान में नही दे सकता नही तो आपको मेरे तकनीकी ज्ञान पर शक हो सकता है ।
अब दिक्कत क्या है ?
दिक्कत ये है की कम्पनियाँ बताती हैं की हम 256 की स्पीड देते हैं और जब भी हम इन्टरनेट से कुछ डाउनलोड करते हैं जैसे गाना या सॉफ्टवेर तो हमारा आंकडा 30-40 के बीच में ही अटका रहता है ,आगे ही नही बढता ।
अरे भइया जरा ध्यान से देखिये आप के इन्टरनेट सेवा प्रदाता ने आपको स्पीड दी है 256Kbps और आप जब डाउनलोड कर रहे होते हैं तो स्पीड होती है KBPS में ,यहाँ दिक्कत है कन्वर्जन की हम Kbps और KBps में फर्क महसूस ही नही करते हैं
.....(शुरू से शुरुआत )
b=bits
Kb=kilobits
Mb=megabits
Gb=gigabits
Tb=terabits

B=Bytes
KB=Kilobytes
MB=Megabytes
GB=Gigabytes
TB=Terabytes

देखा आपने यहाँ कमाल सिर्फ़ अपर केस और लोवर केस का है,और आप कान्फ्युस हो गए ,अब कोन्वेर्जन देखिए

  • 8b = 1B (8 बीट्स = 1 बायट्स )
  • 256b = 32B (256 बीट्स = 32 बायट्स )
बाकी का बिट/बायट्स कैलकुलेशन के लिए यहाँ क्लिक करें
निष्कर्ष

तो जब आपका इन्टरनेट 256Kbps की स्पीड पर चल रहा होता है तो डाउनलोड स्पीड 32KBps होना चाहिए
या
अगर आपको डाउनलोड करने मैं 25KBps की स्पीड मिल रही है तो आपकी इन्टरनेट स्पीड है 25*8=200Kbps

अब शायद आपको समझ आ जाए कि इन्टरनेट कम्पनियां इतनी भी बेईमान नही है ,स्पीड थोडी बहुत तो कम आती है पर इतनी भी नही ।
एक सीधा सूत्र याद करलेंगे तो भी काम चल जाएगा (डाउनलोड स्पीड *(गुणित) 8 = इन्टरनेट स्पीड)

उम्मीद है कि आपकी समस्या का समाधान हुआ होगा .धन्यवाद
यदि पढ़ते पढ़ते यहाँ तक ही गए हैं तो कमेन्ट देने में कैसा शर्माना ,अरे भाई कुछ नही तो अपनी इन्टरनेट स्पीड ही लिख दें


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अब दूर बैठे यार की तकनीकी मुश्किल आसानी से हल करें

अक्सर ऐसा होता है की हम अपने किसी साथी की तकनिकी मदद करना चाहते हैं और फ़ोन पर उसे गाइड करने की कोशिश करते हैं ,पर कुछ हमारी समझाने मैं असमर्थता के कारण और कुछ मित्र की समझने मैं दिक्कत के कारण दोनों की ही कम तकनिकी दक्षता के कारण हम कई बार मदद नही कर पाते

जैसे :- आप कह रहे हैं की डी ड्राइव मैं आओ पर भले मानुस को ये ही नही पता की डी ड्राइव मैं कैसे आयें । अब आप उसे बतायेंए की पहले माय कंप्यूटर पर क्लिक करो फ़िर तुम्हे डी ड्राइव दिखेगी उस पर क्लिक करो । और ऐसे मैं ही यदि उसकी डी ड्राइव नही खुल रही है और आप कहना चाहते हैं की एड्रेस बार के ज़रिए खोलो ,या रन के जरिए,या फिर कमांड प्राम्प्ट के जरिए तो फ़िर मुश्किल किस हद तक हो सकती है ये या तो आप बता सकते हैं या भगवान ही बता सकते हैं

इस समस्या का समाधान है -ऑनलाइन डेस्कटॉप शेरिंग सॉफ्टवेर जिसके जरिए आप दूर बैठे अपने दोस्त की इजाज़त से उसके कंप्यूटर पर काम कर सकते हैं और उसकी उलझन को सुलझा अकते हैं । इस काम को करने मैं आपको किसी ऐसी वेबसाइट या सॉफ्टवेर की सहायता चाहिए होती है जो दोनों के बीच सम्बन्ध स्थापित कर सके ।
एक बार जरा गूगल पर online desktop sharing लिख कर सर्च करके देखिए ,पचास से ज्यादा वेबसाइट और सॉफ्टवेर आपके लिए हाज़िर हैं ,
जैसे :-
  1. www।gatherplace.net
  2. www.webex.co.in
  3. www.GoToAssist.com
  4. www.teamviewer.com

आदि आदि

इन सभी वेबसाइट्स मैं www.teamviewer.com पर मेरी कुछ ज्यादा आस्था है इसका प्रमुख कारण है की ये गैर व्यवसायी-और निजी उपयोग के लिए पूर्णतः मुफ्त है और काम करने मैं आसान है
इसे डाउनलोड करने के लिए ऊपर दी हुई लिंक पर क्लिक करें और Download now पर क्लिक करें या यहाँ Download now पर क्लिक कर डाउनलोड करें ।
इन स्टेप्स से टीम विउवर को इंस्टाल करें :-

team1

पर्सनल /नॉन कॉमर्शियल सेलेक्ट करें ताकि फ्री मैं उपयोग कर सकें । यदि आप व्यावसायिक प्रयोग करना चाहते हैं तो दूसरा आप्शन भी चुन सकते हैं ।

team2team3 team4 team5

एक बार जब इंस्टाल कर लें तो अब आप किसी को भी सहायता करने के लिए तैयार हैं ,

team6

अब जिसे सहायता करना है क्विक सपोर्ट डाउनलोड करने को कहें लिंक टीम विएवेर वेबसाइट पर भी है और यहाँ डाउनलोड क्विक सपोर्ट पर क्लिक कर के भी डाउनलोड कर सकते हैं

अब आपको करना क्या है

  1. अपने मित्र से उसके टीम वियूएर पर दिख रहे कोड को बताने का कहें
  2. अपने टीम वियूएर पर Create session में दिए गए स्पेस में मित्र का आई डी भरें और Connect to partner पर क्लिक करें
  3. password मांगने पर अपने मित्र से पासवर्ड ले कर डालें और आप कनेक्ट हो जायेंगे
इस Software से आप और भी सुविधाएं जैसे प्रेजेंटेशन और फाइल ट्रान्सफर के लिए उपयोग कर सकते हैं ।

मुझे उम्मीद है की इस सुविधा से आप अपने मित्रों की ज्यादा सहायता कर पाएंगे और हिन्दी ब्लॉग जगत भी इसका लाभ ज़रूर उठाएगा ।

किसी ने कहा भी है Vision without action is a day dream,Action without vision is a nightmare .

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वरूण की मजबूरी है जहर उगलना

http://mayurdubey2003.anycanvas.net/6

वरुण गाँधी का बचपन का फोटो-ये बचपन अभी तक गया नही

लगभग दस दिन पहले वरूण गांधी पर पीलीभीत में अपने चुनाव प्रचार के दौरान सांप्रदायिक द्वेष फैलाने का आरोप है। वरूण द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ दिया गया भाषण उनकी मौलिक सोच नहीं लगती। मुझे लगता है कि यह कई दिनों से उनके मन में पल रही कुंठा का नतीजा है।
दरअसल, भाजपा ने वरूण गांधी को राहुल गांधी के विकल्प के रूप में पेश किया था लेकिन वरूण भाजपा के लिए अपेक्षानुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाए। वे राहुल गांधी की तरह अपने कार्य को अंजाम नहीं दे पाए तो भाजपा ने भी उन्हें तरजीह देना बंद कर दिया। 2004 के आम चुनाव में सुरक्षित संसदीय सीट विदिशा से उनका नाम उछला लेकिन बात नहीं बनी फिर विदिशा उपचुनाव के लिए भी रामपाल सिंह को उनसे बेहतर उम्मीदवार माना गया। वरूण गांधी इस मामले में पार्टी से रूठे तो थे ही लेकिन अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने में भी वो नाकाम हो रहे थे। बेटे की हालत पतली देख मां का दिल पिघल गया और मेनका गांधी ने इस बार उनके लिए पीलीभीत सीट छोड़ दी। इस लंबे समय के दौरान वरूण भारतीय राजनीतिक पटल से लगभग गायब ही रहे। खबरों में आने के लिए उनके पास कुछ नहीं था। पार्टी ने भी कोई महती जिम्मेदारी उन्हें नहीं दी थी। वरूण ठहरे गांधी परिवार के जो लगातार खबरों में रहता है। लगातार अपने को उपेक्षित महसूस करने के बाद जब अपने चुनाव क्षेत्र में वे प्रचार के लिए पहुंचे तो उनके पास अपनी निजी उपलब्धि कुछ भी नहीं थी। वे केवल भाजपा के एजेण्डे को लोगों तक पहुंचा सकते थे।
उन्हें कुछ तो ऐसा करना था कि वे लाइम लाइट में आ जाएं और ज्यादा से ज्यादा वोट अपनी तरफ मोड़ सकें। इस लिहाज से उनके पास हिंदुत्व से अच्छा कोई मुद्दा नहीं था लेकिन इसी से काम नहीं चलने वाला था। लोगों को बरगलाने के लिए थोड़ा जहर भी उगलना पड़ा। जब तक कोई नेता हिंदुत्व और आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं करेगा तब तक राजनीतिक क्षितिज पर कैसे छाएगा।
अब तो बिल्ली के भाग से छींका भी टूट गया है, संघ और धुर दक्षिण पंथी पार्टी शिवसेना ने भी वरूण के वक्तव्य का समर्थन कर उन्हें अच्छा खासा महत्व प्रदान कर दिया है और चुनाव में भाजपा को मुसीबत में डाल दिया। रही बात एफआईआर और चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की तो वह किसी राजनेता के लिए अब नई बात नहीं रह गई है। और अब तो उन्हें अग्रिम जमानत भी मिल गई है .....



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हिंदुत्व और मैं

मैं हिंदू हूँ या नहीं, यह मैं नहीं जानता। फिर भी कहीं कहीं फॉर्म में हिंदू ही लिखता हूँ पर सच कहूं तो मुझे इसका अर्थ नहीं पता कि हिंदू कौन है? हिंदुत्व क्या है? आदि।
फिर निहत्थे की हत्या, भिक्षुणी से बलात्कार, गर्भवती स्त्रियों के पेट चीरना, बच्चों बूढ़ों को काटा जाना शायद मेरी समझ से किसी धर्मग्रंथों में या धर्मों में उल्लेखित नहीं है। गुजरात के दंगे उड़ीसा में कुछ समय पहले की घटनाएं शायद कलंक हैं। गोधरा लक्ष्मणानंद के हत्यारे खुले तौर पर घूम रहे हैं पर दलित ईसाइयों को पकड़ कर मारना क्या बयां करता है?
तथाकथित हिंदुत्व के समर्थक क्यों जंगलों में जाकर लक्ष्मणानंद के हत्यारों से लड़ते? क्यों नहीं वे हथियारों का मुकाबला हथियारों से करते? यदि वे ऐसा कर पाते तो हिंदुत्व के कलंक धो डालते पर वे गुजरात दोहरा रहे थे। उड़ीसा और कर्नाटक की घटना ने हिंदुत्व के माथे पर और कालिख पोतने का काम किया है।lord-ram-denigrated-slumdog
सबसे बड़ी बात मेरे समझ से परे है कि अगर लक्ष्मणानंद की हत्या हुई तो उनके अनुयायियों को फैसले का अधिकार किसने दिया? बात यहीं नहीं रूकेगी- जो अपने को हिंदू बताते हैं वे अपने को इससे अलग क्यों रखे रहे हैं? क्या उनका धर्म कहता है कि गलत हो रहा है तो चुप रहना चाहिए। मुझे एक बात समझ नहीं आती कि देश के विद्वानों बुद्धिजीवियों ने व्यापक तौर पर इसका विरोध क्यों नहीं किया? अगर हम मान भी लें कि देश के नेताओं को सिर्फ वोटों से मतलब है फिर भी देश के बुद्धिजीवी तबके से देश को जो उम्मीदें थी वे भी इस प्रकरण में धुंधली हुई है।
गुजरात की घटना के बाद अटलबिहारी ने मोदी को राजधर्म की याद दिलाई थी पर अफसोस कि आज कोई नहीं है उड़ीसा कर्नाटक या कश्मीर की घटना के बारे में विरोध जताने वाला। असम, मणिपुर महाराष्ट्र में जो हो रहा है, उसे क्या माना जाए? मुझे यह कहने से कोई गुरेज नहीं भारत में राष्ट्र की अवधारणा मंद पड़ चुकी है। फिर शायद इस देश के राज्यों को जबर्दस्ती एकसाथ रखा जा रहा है। आखिर जब हम अपने देश में ही सुरक्षित नहीं है तो परमाणु महाशक्ति बनकर हम क्या कर लेंगे? जब निर्दोष मासूम जिंदगियां तबाह हो रही हैं कहीं से कोई आवाज नहीं उठ रही तो तय मानों भारतवंशियों तुम खतरे में हो। मैं एक घटना का उल्लेख जरूर करूंगा कि भोपाल में अपने क्लास में मैंने कहा था कि हिंदू मैं हूं या नहीं तथा हिंदू शब्द ने मुझे क्या दिया है, पता नहीं। इस पर पूरी क्लास में मेरा मखौल उड़ा पर मुझे लगता है कि शायद मैं सही था। अगर हम दूसरों के दुख से दुखी हो पायें , राष्ट्र की अस्मिता पर संकट के वक्त बोल पायें , भिक्षुणी से बलात्कार हो, मासूमों से जिंदगियां छीनी जा रही हों और मैं(भारतीय) चुप रहूं तो शायद मैं अपने अस्तित्व से खिलवाड़ कर रहा हूँ। अगर देश की धरती को रौंदते हुए हम जी रहे हैं तो उसकी अहमियत हमें शायद हर साल में समझनी होगी। वरन् मैं तो इस धरती से दूर हूँ. इसे कहने से हमें कोई गुरेज नहीं होना चाहिए।

रवि शंकर, छात्र ,माखन लाल यूनिवर्सिटी भोपाल

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किसी भी साईट से लिंक करने से पहले एक बार ज़रूर देखें

अगर आपको गूगल एडसेंस से विज्ञापन मिले हुए हैं तो किसी भी साईट से अपने ब्लॉग या साईट को जोड़ने से पहले देखलें की कहीं वो गूगल एडसेंस या गूगल सर्च इंजन से प्रतिबंधित तो नही है क्योंकि ऐसा होने पर आपको भी इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है और अपने विज्ञापन खो सकते हैं यहाँ तक की गूगल आपको सर्च करना भी बंद कर सकता है ।

गूगल सर्च की सेवा शर्तें और एडसेंस की सेवा शर्तें आप यहाँ देख सकते हैं । इन को पढ़ने के बाद भी कई ऐसे बिन्दु हैं जो गूगल बताता नही है पर यदि आप ऐसा करते पाए जाते हैं तो जुर्माना भरना पड़ सकता है, जैसे किसी ऐसे एडसेंस अकाउंट धारक की वेबसाइट से लिंक करना जो गूगल से प्रतिबंधित हो . यदि आप चाहते हैं की बाद मैं आपको गूगल को अकाउंट बंद कर दिया और न जाने कितने ही डॉलर खा गया तो अब से किसी नई वेबसाइट या ब्लॉग से लिंक करने से पहले यहाँ चटका लगा कर (click) चेक जरूर कर लें ।
पता है :-http://www.bannedcheck.com/

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अब बारी आपकी पोस्ट कैसी लगी ज़रूर बताएं हमारा कमेन्ट बाक्स आपका इंतज़ार कर रहा है

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चुनाव तक हमऊ दलित बना दई

पिछले कई दिनों से कांग्रेस महासचिव राहुल गाँधी अपने दलित प्रेम को लेकर चर्चा में रहे हैं, उनके इस अंदाज़ से हर कोई प्रभावित हो रहा है। वे दलितों के घर जाकर खाना खाते हैं और बाकायदा रात भी गुजारते हैं। उनके साथ पिछले दिनों भारत आए ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड मिलिबंद भी एक दलित के घर यात्रा पर गाँव पहुंचे और वहां खाना खाया। दलित के घर का खाना विशुद्ध उसी परिवेश का था या नहीं अभी इस तथ्य का खुलासा नही हुआ है। बहरहाल हमारे मध्य प्रदेश में भी उन्ही के साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया 'महाराज' भी पिछले दिनों गुना के एक गाँव में दलित के यहाँ पहुँच गए, फिर क्या था अपने महाराज को देख प्रजा हर्षित हुई, मन प्रफुल्लित हुआ। सिंधिया ने उनके घर भोजन ग्रहण किया। अब इस घटना के बाद हमारे गाँव के किसान राम जीवन जो हालत से दलित है और जाती से सवर्ण। कहने लगा कि कोई सरकारी योजना नही है जो हमें चुनाव तक दलित बना सके। कम से कम गाँधी और सिंधिया नही तो हमारे विधायक भइया जी या सरपंच साहब हमारे घर पधार जायें और थोडी मदद कर दें, तवे पर रोटी डालने में। क्योंकि हमारे पास तो अपने दो बच्चों को भर पेट देने के लिए भोजन ही नही है हम दूसरो को क्या खिलाएंगे इसलिए हम कह रहे हैं चुनाव तक हम भी दलित हैं, हमारी भी मदद करो।

गूगल कनेक्ट का सोशल बार लगायें

पिछले दिनों गूगल ने ब्लॉगर में एक अहम् परिवर्तन करते हुए फालोवर्स को हटा कर उसकी जगह गूगल फ्रेंड कनेक्ट को स्थान दिया है । गूगल ने फालोवर्स को ब्लॉगर में अगस्त 2008 में स्थान दिया था जिसके बाद कई बल्कि सभी ब्लॉगों ने इसका भरपूर इस्तेमाल किया अपनी धाक ज़माने को .अब जब गूगल ने 4 दिसम्बर को गूगल ने गूगल फ्रेंड कनेक्ट का बीटा वर्जन लॉन्च किया तो ब्लागरों को दोनों फ्रेंड कनेक्ट और फालोवर्स का उपयाग करने के लिए खोल दिया ।
27 फरवरी 2009 को गूगल ने फालोवेर्स को हटा कर उसकी जगह पूरी तरह से गूगल फ्रेंड कनेक्ट को जगह दी है ।
गूगल फ्रेंड कनेक्ट कुछ ज्यादा तकनिकी समर्थ है और कई ऐसी भ्रांतियों के बाद के ये जावास्क्रिप्ट है और लोड होने में टाइम लेता है ,फालोवर्स से अधिक उपयोगी है । इसमे आप कुछ रिपोर्ट्स का भी अध्यन कर अपने ब्लॉग या साईट को ज्यादा बेहतर बना सकते हैं .

इसका पूरा उपयोग करने के लिए आपको कुछ टिप्स दे रहा हूँ और साथ ही गूगल सोशल बार कैसे लगायें देखें

फ्रेंड कनेक्ट में रजिस्टर करें
सबसे पहले यहाँ क्लिक कर गूगल फ्रेंड कनेक्ट साईट पर जायें और अपनी साईट को रजिस्टर कराएं
यदि ऊपर की लिंक काम न करे तो http://www.google.com/friendconnect/home/intro ये लिंक है इसे कॉपी कर अपने ब्राउजर के एड्रेस बार में पेस्ट करें ।

http://mayurdubey2003.anycanvas.net/1


मेंबर गेजेट लगायें
अब निचे दिए मेंबर गजेट पर क्लिक करें

http://mayurdubey2003.anycanvas.net/2

अपने ब्लॉग के लेआउट के हिसाब से लम्बाई चौडाई और रंग सेलेक्ट कर लें और निचे जनरेट कोड पर क्लिक करें और निचे आए कोड को कॉपी कर लें .
http://www.google.com/friendconnect/admin/site/membersgadget?id=04123606426722734527

कॉपी करने के बाद अपने ब्लॉग पर जा कर लेआउट में नया गजेट जोडें और कॉपी किये हुए कोड को पेस्ट कर दें । इसी प्रकार सोशल गेजेट्स में से भी अपनी पसंद अनुसार दिए गए आप्शंस में से चुन कर सकते हैं .

http://mayurdubey2003.anycanvas.net/3

सोशल बार कैसे पाएं
इसके अलावा सबसे प्रमुख है फ्रेंड कनेक्ट का सोशल बार । इसे पाने के लिए साइड में दिए गए ऑप्शन्स में से SOCIAL BAR को सेलेक्ट करें .

http://mayurdubey2003.anycanvas.net/4

इसे अपने हिसाब से पर्सनालिज़ कर दोबारा Genetate Code पर क्लिक करें और उसे कॉपी करें
ब्लॉगर खोलें और edit HTML पर आयें .
http://www.blogger.com/html?blogID=1003205703605241903

यहाँ CTRL+F की सहायता से <body> को ढूँढें और उसके ठीक निचे कॉपी किया हुआ कोड पेस्ट कर दें ।

पहले Preview देखें और अगर सब कुछ ठीक है तो Save सेव कर लें .
अब आपकी बारी-
हमारा यह प्रयास कैसा लगा बताएं और कुछ समस्या हो तो बताएं ,और कुछ ज़रूरत हो तो कमेन्ट कर पूछें .यदि अच्छा लगे तो ज़रूर बताएं

होली पर बढ़ती हुडदंग और चिंता की फ्रिक्वेंसी


हिन्दुस्तान के कुछेक इलाकों की होली के बारे में जानकर कम से कम इतना कहने की स्थिति में तो हैं कि होली एक विशिष्ट पर्व है, रागद्वेष से मुक्त होकर उल्लास और उमंग में डूब जाने का। लेकिन जब हम खुद के भीतर झॉंकते हैं तो पाते हैं कि बदलते दौर के साथ हमने वो सब खो दिया है जिसके मायने हम खोजते रहते हैं। सब कुछ बदल गया है। इतना बदल गया है कि थोड़ी बहुत कोशिश से हम उस स्थिति को फिर वापस नहीं पा सकते। अब तो होली आई तो चंदे के नाम पर हत्या, शराब के नशे में दुर्घटना और ऐसी ही दर्ज़नों खबरों से अखबार रंगे रहते हैं। क्या वाकई मस्ती के इस पर्व में हमें इतना मस्त होने की जरुरत है कि अपनी सुधबुध ही खो जाएं। अभी बीते चार दिनों से भोपाल में होली की तैयारियों को समझने की कोशिश कर रहा हूँ । होली क्या आई। पुलिस के लिए तो जैसे आफत आ गई। पुलिस महकमा हर दिन बैठकें कर होली पर सांप्रदायिक सदभाव बिगड़ने से रोकने की कोशिशों में जुटा हुआ है। ईदमिलादुन्नबी का जुलूस क्या निकला राजधानी की सड़कें छावनी में तब्दील हो गई। पुलिस का भय है कि इसी दिन रात में होलिका दहन है। स्थिति बिगड़ सकती है। दरअसल ऊपर लिखी पूरी बात को मैं यहॉं सम्बद्ध करना चाहता हूँ कि दो धर्मों के परस्पर त्यौहार किसी स्थिति बिगड़ने का प्रतीक कैसे बने। हमने ऐसा क्या कर दिया कि अब प्रशासन को इस बात की चिंता करनी पड़ रही है कि स्थिति बिगड़ सकती है। इसके लिए हमें खुद के भीतर झॉंकना होगा। हमने चीजों के मायने खो दिए हैं। चीजों को अपनी सुविधा के लिहाज से डायवर्ट कर दिया है। हमें लगा कि मस्ती बिना शराब की नहीं हो सकती। बिना हुडदंग के नहीं हो सकती। बिना जबरदस्ती किए होली का मजा फीका पड़ जाएगा। जब किसी पर्व पर इतने लांछन हो तो जाहिर सी बात है कि उसमें उमंग और उल्लास की फ्रिक्वेंसी कम और हुडदंग और चिंता की फ्रिक्वेंसी ज्यादा होगी।विराम...(श्रृंखला रंग बरसे आप झूमें )
होलिका दहन के साथ ही कलम और संगीत की जुगलबंदी की यह होली अब खत्म हुई। इस श्रृंखला में हमने हर दिन एक नई होली देखी और होली से पहले होली के उमंग का अहसास किया। हमारा प्रयास आपको कैसा लगा, इसमें कहॉं कमी रही और आगे हम कैसे बेहतर कर सकते हैं। अपने सुझावों से अवगत कराएं तो सही मायने में हमारा प्रयास अपनी परिणति की ओर पहला कदम साबित होगा। आप सभी को होली की शुभकामनाओं के साथ सरपरस्त .....

नवाबों की होली सोने की पिचकारी से

प्रस्तुति -फैजान सिद्दीकी

भोपाल गंगा जमुनी तहजीब का शहर है, यहाँ सभी धर्मों के त्यौहार मिलजुल कर मनाने की रिवायत रही है। इस परम्परा की शुरूआत नवाबी दौर से हुई। रंगों और उल्लास के पर्व होली को मनाने का इतिहास भी शहर में अनौखा रहा है। नवाब शाहजहां बेगम के शासन काल में ताजमहल में बने सावन-भादों में जाफरानी रंगों से होली खेली जाती थी। होली पर बड़े औहदेदारों को रियासत की ओर से सोने की पिचकारियां होली खेलने के लिए भेंट की जाती थीं।taj mahal bhopal
नवाब शाहजहाँ बेगम का निवास ताजमहल में हुआ करता था। महल में हर वर्ष हुलियारों की महफिल जमती थी। रियासत के औहदेदार और आम लोग ताजमहल के प्रांगढ़ में बने खूबसूरत चौकोर फव्वारों जिन्हें सांवन-भादों कहा जाता है, में जमा होते थे। यहाँ चांदी के कटोरों में जाफरान (कैसर) व केवड़े के मिश्रण से बने रंग से होली खेली जाती थी। शाहजहां बेगम खुद इस जश्न में शामिल होती थी। उनके द्वारा रियासत के खास लोगों को सोने से बनी पिचकारियां होली खेलने के लिए दी जाती थीं।
बाद में भी रहा यह सिलसिला जारी
नवाब शाहजहां बेगम के बाद होली मनाये जाने का सिलसिला बाद के नवाबों दौर में भी जारी रहा। इतिहासकारों के मुताबिक नवाब हमीदुल्ला खान के कोहेफिजा स्थित महल कस्र-ए-सुल्तानी में होली के दूसरे दिन होली मनाने का कार्यक्रम आयोजित किया जाता था।
इसमें भोपाल रियासत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अवद नारायण बिसारिया, नवाबी खानदान के फेमिली ज्वेलर्स मदनलाल अग्रवाल व घड़ी साज(घड़ियां सुधाने वाले) गुलास राय सहित शाही परिवार से जुड़ी शहर की विभिन्न हस्तियाँ शामिल होती थीं। नवाब हमीदुल्ला खान इनके साथ होली मनाने के बाद सीहोर होली मनाने जाया करते थे। जो उस वक्त रियासत का एक हिस्सा हुआ करता था,सीहोर के कई हिस्सों में यहाँ से शुरू हुई परम्परा को आज भी पूरा किया जाता है और दूसरे दिन भी होली मनाई जाती है।


रियासतकाल में होली मनाने की अनोखी परम्परा थी। पहले ताजमहल में और बाद में अहमदाबाद पैलेस में होली मनाई जाती थी। इसमें धर्मो के लोग धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर होली खेला करते थे। सोने की पिचकारियों से होली खेलने की परम्परा भोपाल के अलावा ओर कहीं नहीं मिलती।

एसएम हुसैन आर्किटेक्ट और नवाबी परिवार से संबंधित
ताजमहल के सावन-भादों में होली मनाई जाती थी। सावन-भादों के अंदर तांबे की नलकियों से पानी इस तरह बहता था जैसे सावन की झड़ी लगी है। इस माहौल में होली खेलने का अपना अलग ही महत्व होता था।
सैयद अख्तर हुसैन, द रायल जनी आफ भोपाल के लेखक

ब्लॉग में पेज नम्बर ,वाह क्या बात है !

क्या आपको अपने ब्लॉग के पहले पेज पर ज्यादा पोस्ट रखना पसंद नही ,और चाहते हैं की हर कोई ब्लॉग की और पोस्ट भी पढ़े , तो एक तरीका है की ब्लॉग पर पेज नम्बर लगायें .तरीका हम बताते हैं। ब्लॉगर एक पब्लिशिंग का मध्यम है पर इस मैं इस प्रकार के पेज नैविगेशन का थोड़ा कम ही ख्याल रखा गया है ,जबकि वर्डप्रेस मैं ऐसा नही है ,वहां ज्यादा आज़ादी है ।

फ़िर भी उदास हुए बिना हम कुछ जुगत भिडा कर अपने ब्लॉग पेज पर पेज नम्बर लगा सकते हैं ,इसमे मोहम्मद रिआस ने एक कोड लिखा है जिसका हम इस्तेमाल कर सकते हैं

http://sarparast.blogspot.com/search?updated-max=2009-03-08T00%3A00%3A00%2B08%3A00&max-results=5
कुछ ऐसा दिखेगा

इस कोड मैं कुछ जावा स्क्रिप्ट और जे एस एन तकनीकों का इस्तेमाल किया है

अब करना कैसे है
.ब्लॉगर खोलें
.लेआउट पर क्लिक करें
.add a gadget पर क्लिक करें
.html/javascript को सेलेक्ट करें
.अब निचे दिए गए कोड को कॉपी कर उसमे पेस्ट कर दें





६.इसे सेव कर लें और अपने पोस्ट एलेमेन्ट के ठीक निचे ले आयें

http://www.blogger.com/rearrange?blogID=1003205703605241903

ब्लॉग पोस्ट के ठीक निचे

७. Preview देखें और सेव करलें .

अब आपकी ब्लॉग में पेज नम्बर डिसप्ले होने लगेंगे

अब बारी आपकी

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