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टाइम मशीन और यादों की जुगाली


अक्सर लोगों की जिन्दगी में यादों का कारवां हमे घेरे रहता है । यादें कभी खुशी के साथ आती है कभी दुखों की शाम दे जाती है । हमने बीते हुए लम्हों को बचने के लिए कई तकनीक विकसित कर ली मगर वो एहसास नही खोज पाए । एच जी वेल्स ने १८८५ में टाइम मशीन नाम की १ बुक लिखी थी जिसमे नायक टाइम मशीन के जरिये बीते हुए वक्त में चला जाता है । और उसके पुराने एहसास फ़िर जिन्दा हो जाते हैं । इस बुक पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं । परिस्थितियां हमेशा तकनीक के विकास में मददगार साबित होती हैं लेकिन अफ़सोस की यादों को फ़िर उसी एहसास के साथ जीने के लिए कोई तकनीक विकसित नही हो पाई है और हमेशा उदास दिल यूँ ही खामोश हो जाता है । शामें अकसर गंगा ढाबे या इसे ही किसी जुगाली स्पॉट पे गुजर जाती हैं । बहुत याद आया है वो घर , वो दोस्त और मोहल्ला । वक़त और दूरी के बीच हम बहुत अकेले रहते हैं क्योंकि न तो बीते हुए वक्त की वापसी होना और न ही यादों की जुगाली में निकालने वाले आंसू थामेंगे । कोई लोटा दे मेरे बीते हुए दिन । इन्ही यादों के साथ ये गीत भी सुनते चलें ।और ये विडियो देखें


बदल कर फ़कीरों का हम भेस .........................

ग़ालिब ने खूब कहा है ...........................

बदल कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब,
तमाशा-ऐ-एहले करम देखते हैं .
ये दुनिया बड़ी अजीब है बाबू , यहाँ कोई आपकी सुनने वाला नही है , अगर खामोश रह गए तो समझो के सुब कुछ ख़तम।और अगर लोकतंत्र में रहना है तो राजनीति तो करनी ही होगी , और फ़िर योगेन्द्र यादव ने कहा भी है की राजनीति तो आज का युग धर्म है । ये बात सच है की जब-जब अच्छे काम की शुरुआत होती है परेशानियाँ हमेशा हमारा रास्ता रोकती है । मगर ये आदमी ही है जो बिना रुके आपना सफर तय करता है । हम हमेशा डर क्यों जातें हैं, जब ये बात तय है की एक दिन मौत आनी है। जब एक वक्त तय है मौत के लिए तो यूँ रोज - रोज मरना क्या । और माफ़ कीजिये , न हमे मौत का खोफ है न ही घुट-घुट के जीने की ख्वाहिश । ये बात तय है की पत्थर पिघल नही सकता पर हम बेकरार हैं आवाज के असर के लिए । कोई हमे हलके में न ले । हम अगर खामोश हैं तो इस वजह की हम लोगों की बात सुनना चाहते हैं पर इसका ये मतलब बिल्कुल नही की हम कुछ नही जानते । क्या हम सिर्फ़ कुछ मतलबी कारणों की वजह से पुरी जिंदगी के जशन को गम की दावत में बदल देते हैं ? उठो और उठके निजामे जहाँ बदल डालो । ये लेख किसी हादसे की भड़ास नही और न ही किसी नीद से जागे हुई डबडबाईआँखों का बयान । और आप लोगों को लगता है की यही जीना है तो इससे तो बेहतर के हम मर जायें यारों ।