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विज्ञापन की दुनिया में फसे हम और तुम

प्रस्तुति- सचिन यादव
विज्ञापन ने एक आदमी की जिंदगी को कुछ इस प्रकार प्रभावित किया है जिसकी एक कहानी बानगी के रूप में प्रस्तुत है। सुबह के पांच बजे थे कि अचानक राहुल की अजन्ता की अलार्म घड़ी ने उसके सपनों को तोड़ते हुए सुबह मार्निंग वाक के लिए उठा दिया। राहुल भी बेमन से उठा और अपनी बाटा की स्लीपर पहन कर फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चला गया। उसका बाथरूम ओडिनल की खुशबू से महक रहा था। फ्रेश होकर डिटोल के हेंड वाश से हाथ धोए और ओरल बी के ब्रश पर क्लोज अप पेस्ट लगा लिया।ओरल बी के ब्रश ने उसके दॉतों को चारों दिशाओं में खड़पड़ा दिया और कर दी खूब सफाई । मुंह धोने के लिए उसने जेक्वर का वाशिंग बेस लगा रखा था। टहलने के लिए जाने से पहले उसने रिबॉक का ट्रेक सूट निकाला और एडीडास के जूते पहन कर अपनी वेगनार कार में मार्निंग वाक के लिए चल दिया। वापस लौट कर घर आने पर कुर्सी पर बैठ कर अखबारों पर अपनी नजर डालने लगा और बेगम साहिबा को चाय के लिए भी बोल दिया । अंदर किचन से टाटा टी की चाय की महक बाहर तक आने लगी थी । राहुल के हाथों में कुछ देर बाद चाय का प्याला था जोकि कुछ ही देर में गायब हो गया। कल राहुल शापिंग के लिए बाहर गया और कुछ सामान भी ले आया । अब राहुल नहाने के लिए तैयारी कर रहा था कल ही उसने जॉकी की अंडरवियर और वेस्ट खरीदे थे और बड़ी चमकती ऑखों से उन्हें देख रहा था। नहाने से पहले उसने जिलेट के मॉक-3 से शेव बनायी और चल दिया नहाने के लिए। बाथरूम में लगी कजारिया की टाइल्स में वो अपने आप को निहारता और मन ही मन खुश होता । बदन पर पानी पड़ने के बाद सिथॉल का साबुन धीरे-धीरे अपने शरीर पर लगा लेता और बन जाता है बाथरूम सिंगर। दूसरी तरफ राहुल की श्रीमती अनामिका भी राहुल के लिए नाश्ता तैयार करने लगी। एलजी के माइक्रोओवेन में राहुल की मनपंसद डिस पकने के लिए रख दी। राहुल नहाकर बाहर निकला और अपने रूम की ओर कदम बढा़ दिए । पीटर इंग्लैड की शर्ट और ट्राउजर निकाल कर पहनने की तैयारी करने लगा। उसने अपनी गोदरेज की अलामारी खोली और प्लेबॉय का स्प्रे निकाल कर उसका ऊपर से नीचे तक तक पूरा धुंआ निकाल दिया। उसके स्प्रे से इतनी महक आ रही थी जैसे वो अभी उसमें डुबकी लगा कर आया हो। अब नाश्ते की टेबल पर बैठा नाश्ते का इंतजार करने लगा, वहीं अनामिका ने राहुल को पहले ट्रोपिकाना का जूस दिया और फिर धारा रिफांइड में बने गरमा-गरम पराठे खिलाए। अनामिका ने राहुल के लिए सिएलो के हॉट केस में खाना भी लगा दिया था। राहुल अब आफिस जाने के लिए तैयार था। राहुल ने अपना रे-बेन का चश्मा , हांडा सिटी गाड़ी की चाभी और टिफिन उठाकर आफिस के लिए चल दिया। कड़ी धूप और तगड़े ट्रेफिक जाम के कारण रास्ते में ही राहुल का गला सूखने लगा। आफिस पंहुच कर तुंरत चपरासी को बिसलेरी की एक ठंडी बोतल लाने के लिए कहा और अपनें केबिन में लगे वीडियोकॉन के एसी का टम्परेर्चर डाउन कर दिया। अपने सोनी के लेपटॉप को ऑन किया और एयरटेल के अनप्लग नेट सर्विस को अपने नेट से कंनेट कर दिया। दिन भर काम में व्यस्त रहने के बाद जैसे ही राहुल खाली हुआ तभी अनमिका ने अपने रिलायंस के फोन से राहुल के बीएसएनल पर फोन किया लेकिन राहुल अपने ब्लैकबेरी पर अपने बॉस से बात कर रहा था। राहुल ने बॉस से बात करने के बाद अपने रिलायंस के फोन से अनामिका को फोन किया। अनामिका ने एक लंबी-चौड़ी लिस्ट राहुल को बता दी। राहुल आफिस से निकला और सीधे बिग बाजार पहुँच गया। उसने अनामिका को खुश करने के लिए लेकमे की नेल्स पालिस और लिपिस्टक ली साथ ही घर में बाकी समान भी ले गया। घर पहुँच कर उसने अनामिका को सरप्राइज दिया तो अनामिका ने भी रात के खाने में राहुल को आशीर्वाद आटे की फार्च्यून रिफांइड में बनी गरमा -गरम पूड़ियां और छोले खिलाएं। अब रात को टेलीविजन पर कुछ प्रोग्राम देखने के बाद दोनों सोने चल दिए। गर्मी के मौसम में मच्छरों से बचने के लिए आल आउट का प्लगी लगा लिया और स्पीलवेल के मुलायम गद्दे पर ऑख बंद अपने हसीन सपनों मे खो गए।
( लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान में हिन्दी पत्रकारिता के छात्र हैं )

राहुल गाँधी इन जे एन यू


युवा कांग्रेस लीडर राहुल गाँधी जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के केम्पस में एक पब्लिक मीटिंग करने के लिए २९ सितम्बर को पहुंचे । समय था रात १० बजे । स्टुडेंट राहुल को सुनने और देखने आए थे । यहाँ हर जगह की तरह समर्थक तो थे मगर उससे कई ज्यादा गुना विरोधी भी मौजूद  थे । तो जाहिर सी बात है की राहुल बाबा के लिए चुनोती भी बढ़ ही गई थी । अपनी बात राहुल शुरू ही करने वाले थे की बीच में बेठे कुछ स्टुडेंट काले झंडे दिखने लगे मगर राहुल गाँधी ने विरोध का सम्मान करते हुए विरोधियों की बात को मंच से नीचे आकर ध्यान से सुना, तो लगा की नही कम से कम राहुल राजनीति की पाठशाला की तालीम ठीक तरह से ले रहे हैं और आने वाले समय में कुछ आशाएं हम कर सकते हैं । मगर जब सवाल यक्ष प्रश्न बन जाए तो बेचारे राहुल की भी क्या बिसात की सही जबाव दे पाते । सो उलझ गए कई बार । कई मुद्दे जेसे सेनगुप्ता आयोग की रिपोर्ट , मंहगाई , कलावती , नक्सलिस्म, कार्पोरेट्स को फंड , राजनीति में वंशवाद । जबाव घुमा फिर कर देने लगे । कभी कभी असहज भी नजर आए । मीडिया के मायावी हीरो राहुल कितने कमजोर हैं यह भी देखने को मिला । इसका यह मतलब नही की जो कमुनिस्ट स्टुडेंट सवाल कर रहे उनके पास कोई सार्थक जवाब था . लेकिन राहुल से स्टुडेंट उम्मीद कर रहे थे की वे एक अच्छी बहस तो जरूर करेंगे . लेकिन ऐसा कुछ हुआ नही, और कहीं न कहीं ये बात लोगों मन में घर कर गई की क्या राहुल प्रधानमंत्री पद के उमीदवार भी हो सकते हैं. या सिर्फ़ ये मीडिया की एक रणनीति है की राहुल के प्रमोशन में कोई भी कमी नही होना चाहिए. सवाल उठाना तो लाजमी है क्योनी बात कलावती से शुरू होकर मायावती को चुनोती तक आ गई है. हमे इस बात से तकलीफ नही की राहुल गाँधी दलित के घर रात क्यों गुजार रहे हैं. एक और कई राजनेता जहाँ कहीं और रातें रोशन कर रहे हैं वहां राहुल का ये प्रयास तो सराहनीय है . मगर सवाल ये है की उस दलित के घर वह खाना कहाँ से आता है जो राहुल गाँधी को खिलाया जाता है. क्या वो दलित इस महगाई में दो वक्त की रोटी जुटा पा रहा है...........................

मोमोस अ़ब चायनीज हो गए हैं

मोमोस हमारी दिल्ली के हर मार्केट मिलते हैं । लोग बड़े शोक से खाते हैं । हर इस्टाल(कभी खोप्चों में भी ) पे ये चायनीज डिश के रूप में परोसे जाता है । और हम लोग उसे चायनीज ही समझ कर खाते हैं । कोई ये नही जनता की ये चायनीज नही तिब्बत की डिश है और तिब्बत चीन का हिस्सा नही है । ये अलग बात है चीन उसे अपना हिस्सा मानता है लेकिन दोस्तों आप को हम ये बता दें की अगर आप किसी व्यंजन का स्वाद सिर्फ़ पैसों में लेने चाहते हैं तो ये सही नही है । क्योंकि हर व्यंजन की एक संस्कृति और परिवेश होता है और आप को उसे जानना चाहिए, और एसे अवसर पर जब की कोई देश किसी का इतिहास बदल रहा हो और उसकी संस्कृति को ख़तम कर रहा हो । आप लोगों को पता होगा की तिब्बत अपने अस्तित्व की लडाई लड़ रहा है । और चायना उसे और उसके कल्चर को भी ख़तम कर रहा है । जेसे की मोमोस अब चायनीज होने लगे । मेरा आप लोगों से अनुरोध है की मोमोस तिब्बत की डिश है न की चायना की । खाने साथ थोड़ा साजिदा होने की जरुरत है और हाँ यदि आप भी तिब्बत के चौके ( रसोई ) के बारे में जानना चाहते हैं तो इस लिंक पर देखें http://recipes.wikia.com/wiki/Tibetan_Cuisine चटकारे लगायें
औ आपको मोमो कैसे लगते हैं बताइयेगा

ऑनलाइन मिली माँ दुर्गा

दिल्ली जेसे शहर में रहना कई मायनों में बहुत अलग हो जाता है । रोज की उथल पुथल में पुरा दिन कब बीत जाता है पता ही नही चलता । अभी कुछ दिन पहले गणेश उत्सव इसे ही चला ही गया कहीं कोई गणपति जी की प्रतिमा नही , न ही कोई भजन , न कोई उत्सव । फ़िर पुरखों के दिन भी यूँ ही निकल गए । १ दिन भी नही मिला की याद कर लें उन लोगों को जिनकी वजह से आज हम हैं लेकिन ये दुनिया इसी ही है यारों । अब जब की नवरात्र के ५ दिन निकल गए हैं कहीं कोई हलचल नही सुनाई दी । इन्टरनेट पर बेठे बेठे लगा की अचानक यौतुबे पे माँ दुर्गा के भजन सुनने लगे और पुराने दिन की याद तजा हो गई । दोस्तों से चेट करते करते लगा की माँ दुर्गा ऑनलाइन आ गई हैं और कह रही हैं की बेटे मै तो तुम्हारे पास ही हूँ बस तुम आपने से दूर चले गए हो । लेकिन तुम परेशां मत हो ये तकनीक भी मैंने ही बनाई इसलिए आज मुझे ऑनलाइन आना पड़ा क्योंकि तुम ऑफ़ लाइन थे । जय माता की ।

ऑनलाइन मिली माँ दुर्गा


original artical on http://sarparast.blogspot.com/2009/09/blog-post_1475.html

हजारों साल नर्गिस आपनी बेनुरी पे ........

आज का दिन बहुत सारे मायनो में ख़ास हो सकता है । कई लोगों के लिए ये नई- नई यादों के साथ आया होगा . हम -आप ,सभी रोज कई जद्दोजहद से गुजरते हैं इसलिए कई घटनाएँ हमारे लिए नई नही होती है , तो इस हिसाब से मृणाल पाण्डेय की विदाई भी बहुत सामान्य सी घटना हो सकती है , और खासकर आज की इस दौर में जब की मीडिया सबसे खतरनाक दौर से गुजर रहा है । कोई यह सोचने वाला नही है की ये घटनाएँ क्या भविष्य बनायेंगी ? वैसे अपन इतने बड़े नही की प्रभाष जोशी की तरह मीडिया पर कोई टिपण्णी कर सकें न ही अफलातूनी सुधीश पचौरी हैं की मीडिया की हद नाप सकें पर अल्प दिमाग से जो लग रहा है , वो यहाँ कहना चाहतें है- मृणाल पाण्डेय का जाना थोड़ा दुःखदाई तो है क्योंकि यह सब एक हादसे की तरह हुआ है और हादसे हमेशा दुखद होते हैं , हर जगह लोग अपने अनुभवों के आधार पर आपनी राय दे रहे है , शशि शेखर जी ठीक आदमी हैं इसमे कोई नही शक है पर मृणाल पाण्डेय जी की विदाई सुखद है यह बात पूरी तरह गलत है के हमने उनके आंचल में पलने वाले हिनुस्तान अखबार को देखा है उसमे किए गए प्रयोग भी देखे हैं हो न हो वे पत्रकारिता के नए मापदंड थे और उन्हें खारिज नही किया जा सकता , लेआउट से लेकर कंटेंट तक में एक रचनात्मकता थी इसे कोई नकार नही सकता , हजारों साल नर्गिस आपनी बेनुरी पर तरसती है बड़ी मुश्किल से पैदा होता चमन में दीदावर , यह लेख म्रणाल पाण्डेय की इस्तुती नही है और न ही शशि शेखर के आने का गम । हम उम्मीद करतें हैं की शेखर जी हमे निराश नही करेंगे और मृणाल पाण्डेय जी जल्दी ही नई कसौटी हमारे सामने प्रस्तुत करेंगी । दिल्ली डायरी