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भारतीय लोकतंत्र में चुनाव सुधार - निष्कर्ष एवं सुझाव

आज इस शोध कार्य का निष्कर्ष अंक है , ब्लॉग पर शोध कार्य प्रस्तुत करने का विचार बहुत ही नाज़ुक था और कारण बहुत ही व्यापक, हिन्दी में अन्तर जाल खोजने पर बेहतर परिणाम आएं और उसमें हम भी भागीदार होना चाहते थे ।
इस शोध कार्य के पिछले लेखों की लिंक यहाँ मौजूद है ।
  1. चुनाव प्रक्रिया एवं चुनाव सुधार - शोध कार्य
  2. भारतीय लोकतंत्र की चुनाव प्रक्रिया
  3. भारतीय चुनाव सुधार
आज का ये अंक निष्कर्षों पर आधारित है .
भारत इतना विशाल और विभिन्नताओं से भरा देश है कि यहां एक साथ इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराना एक आश्चर्य है। पहाड़, नदी, रेगिस्तान, जंगल, मौसम आदि कई समस्याएं चुनाव आयोग के सामने आती हैं।
किसी भी व्यवस्था में सुधार या संसोधन उस व्यवस्था को संपूर्णता प्रदान करती है। इस लिहाज से लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव सुधार काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। चुनाव सुधार भी एक सतत चलने वाली लंबी प्रक्रिया है और परिस्थितियों के हिसाब से इसमें लगातार परिवर्तन आते रहेंगे।

भोपाल में " लोकतंत्र की उभरती चुनौतियां और हमारा संविधान " विषय पर अक्षरा बसंत व्याख्यान माला में बोलते हुए वरिष्ठ संविधानविद् श्री सुभाष कश्यप ने कहा कि पिछले 15 लोकसभा चुनाव और सैकड़ों विधानसभा चुनाव की सफलता को भारतीय लोकतंत्र के लिए बड़ी उपलब्धि है। हालांकि वे मानते हैं कि निर्वाचन प्रक्रिया और राजनैतिक दल व्यवस्था में अब भी काफी सुधार की गुंजाइश है।
आज भी जमीनी स्तर पर चुनाव प्रक्रिया को दुरूस्त करना बेहद जरूरी है। लोकसभा के पूर्व महासचिव श्री सीके जैन इसे मिशन के रूप में आगे बढ़ाने की अपेक्षा कर रहे हैं। सबसे बड़ी समस्या है कि अपराधियों को चुनाव लड़ने और संसद एवं विधानसभाओं तक पहुंचने से कैसे रोका जाएर्षोर्षो इसका हल ढूंढने में वक्त लग सकता है लेकिन यह हमारे लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है। इसके अलावा एक बड़ी चुनौती है लगातार महंगे हो रहे चुनावों से निपटने की। एक अनुमान के अनुसार 2009 के आम चुनाव में 2,100 करोड़ रूपये फूंके गये जबकि 2004 के आम चुनाव में 1,300 करोड़ रूपये खर्च हुए थे। चुनाव आयोग को इस ओर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
वक्त की कमी के कारण चुनाव सुधार संबंधी कुछ सुझाव देकर अपना शोध पूरा करना चाहूंगा।
  • चुनाव के वक्त शराब बांटने की प्रवृत्ति को देखते हुए शराब बिक्री पर लगभग मतदान के 3 दिन पहले से पाबंदीलगाई जाए।
  • वोटिंग सिस्टम में और सुधार की जरूरत है, कई नौजवान अपना वोट नहीं दे पाते क्योंकि अपने काम केसिलसिले में वे किसी अन्य शहर में होते हैं। ऑनलाइन वोटिंग प्रणाली भी शुरू की जानी चाहिए।
  • मतदान को अनिवार्य किया जाना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा मत पड़ सकें और बेहतर जनप्रतिनिधि चुनकरआ सकें।
  • विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ-साथ हों तो इससे चुनाव पर खर्च होने वाला पैसा और समय दोनों बचायाजा सकता है।
  • आचार संहिता को और ज्यादा कठोर बनाया जाए ताकि किसी भी तरीके के दुरूपयोग को रोका जा सके।
  • चुनाव आयोग को और अधिक अधिकार देने होंगे, साथ ही चुनाव आयोग को गंभीर मसलों पर कड़े कदम उठाने कीआवश्यकता है।
"हर बार सही इस बार तो सुनेगा दिलबर,काश तेरे देश का दिल मेरे देश के जैसा होता "

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भारतीय चुनाव सुधार

पिछले अंक में हमने भारत में चुनाव प्रक्रिया को समझा , लोकतंत्र में संविधान को प्रमुख और सर्वोच्च मान कर लोकतान्त्रिक कार्यों का संचालन होता है, चुनाव प्रक्रिया में हम एक महत्वपूर्ण बात बताना चूक गए जिस पर हमारा ध्यान राज भाटिया जी ने एक टिपण्णी के मध्यम से दिलाया के - span style="font-style: italic;">बहुमत वाले दल को ५४३ सीटो मे से कितनी सीटे चाहिये अपना बहुमत साबित करने के लिये, ओर कम से कम कितने प्रतिशत मत दान होना चाहिये - सभी भारतीय चुनावों में बहुमत वाले दल अपना बहुमत साबित करने के लिए कम से कम 50% मतों या सीटों का मिलना ज़रूरी होता है । लोकसभा के 543 सदस्यों वाले सदन में कम से कम 272 सीटें अपना बहुमत साबित करने आवश्यक हैं । पर फिलहाल तो हम भी ये ढूँढने में असमर्थ रहे के न्यूनतम मतदान प्रतिशत कितना होना चाहिए एक चुनाव को वैध कहलाने के लिए ।
आज हम चुनाव सुधारों पर बात करेंगे
चुनाव सुधार के मुद्दे पर इस मुल्क में पिछले कई दशकों से बहस जारी है। चुनाव सुधार की बातें प्राय: सभी पार्टियां कर रही हैं और करती रहीं हैं। लेकिन आवश्यक सुधार आज तक नहीं हुए।
भारत के चुनावों में 1967 के बाद वृहद रूप से गलत प्रवृत्तियां उभरीं। यह प्रवृत्तियां थीं- धन, बल, जोर-जबर्दस्ती, जाति, चुनावी हिंसा, दलबदल, संप्रदाय और सत्ता के दुरूपयोग की प्रतृत्ति। यह प्रवृत्तियां चुनाव प्रणाली को दूषित करने लगी। संसद और विधानसभाओं के लिए होने वाले चुनावों में इसकी स्पष्ट छाप दिखाई देने लगी और अब इन तंत्रों के सहारे लोकतंत्र के इन सर्वोच्च संस्थाओं में अपराधियों की भरमार होने लगी है।
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने 10 फरवरी 1992 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने चुनाव सुधार पर मई 1990 में पेश पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री दिनेश गोस्वामी समीति की रिपोर्ट को लागू करने की सिफारिश की थी। ऐसा नहीं है कि यह चुनाव सुधार के लिए पहली रिपोर्ट थी, इससे पहले भी इस कार्य हेतु कई रिपोर्ट आ चुकी हैं।
चुनाव आयोग ने 1970 में विधि मंत्रालय को चुनाव सुधार से संबंधित अपना पहला विस्तृत प्रस्ताव प्रारूप सहित भेजा था। 1975 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, जनसंघ, अन्नाद्रमुक आदि दलों की संयुक्त समीति ने अनेक सुझाव दिये। 1975 में आठ दलों ने एक स्मार पत्र दिया, जिसमें कई सुझाव दिए गए थे। स्व. जयप्रकाश नारायण ने प्रसिद्ध न्यायविद् वीएम तारकुंडे की अध्यक्षता में चुनाव सुधार पर विचार के लिए एक कमेटी गठित की। चुनाव आयोग ने 1977 में पूर्व के सभी सुधारों से संबंधित प्रस्तावों की समीक्षा कर 22 अक्टूबर 1977 को एक समग्र प्रतिवेदन भारत सरकार को भेजा। 1982 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एसएल शकधर ने पूर्व के सभी सुझावों की समीक्षा के बाद एक नया प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा। इस तरह लगातार इस संबंध में सुझाव आयोग द्वारा भारत सरकार को भेजे जाते रहे, जिनमें कुछ पर ही अमल हो पाया।
कई संसोधन तो केवल लाभ उठाने के उद्देश्य से ही किए गए, जैसे लगभग 23 वर्ष पहले जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 77 की उपधारा (1) में स्पष्टीकरण 1 जोड़ा गया था। इसके अंतर्गत उम्मीदवार के अलावा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा जिसमें उसकी राजनीतिक पार्टी, मित्र और समर्थक शामिल हैं, खर्च किया गया धन, उम्मीदवार के चुनाव खर्च में शामिल नहीं किया जाएगा। इस स्पष्टीकरण के अंतर्गत किसी उम्मीदवार के चुनाव में उसकी पार्टी या समर्थकों द्वारा बेहिसाब धन खर्च किया जा सकता है। अनेक लोगों और उच्चतम न्यायालय ने इस स्पष्टीकरण की आलोचना की है लेकिन निहित स्वार्थ के कारण इसे अभी तक हटाया नहीं गया है।

प्रमुख चुनाव सुधार - एक नजर में

• 1995 के बाद मतदाताओं के पहचान पत्र का उपयोग होने लगा। प्रारंभ में यह केवल मतदान के उद्देश्य को लेकर बनाए गए लेकिन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस रमा देवी ने इसे बहुद्देशीय बनाने की वकालत की और फिर ऐसा ही हुआ। इसकी अनुशंसा प्राय: सभी समीतियों ने की थी। अब तो पूरे भारत में फोटो पहचान पत्र बनाने का कार्य पूरा हो चुका है।
• अस्सी के दशक में मतदान की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई, इससे मतदाताओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी हूई है।
• जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 में संसोधन करके 15 मार्च 1989 से मतदान में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल शुरू करने की व्यवस्था की गई। हाल के आम चुनाव में पूरे भारत में ईवीएम के जरिये ही वोटिंग की गई।
• शांतिपूर्ण चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग ने चुनावों से पहले लोगों के हथियार नजदीकी पुलिस थाने में दर्ज कराने की परंपरा शुरू की।
• मतदान के दिन आयोग ने शराब की बिक्री पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा दिया।
• उम्मीदवार अपने प्रचार में अंधाधुंध धन खर्च ना करें इसके लिए निर्वाचन आयोग ने चुनाव प्रचार संबंधी गतिविधियों की वीडियों रिकॉर्डिंग करवाना शुरू की है।
• चुनाव खर्च पर नजर रखने के लिए आयोग ने लेखा परीक्षकों को प्रेक्षक के रूप में नियुक्त करना शुरू किया है।
• जुलाई 1998 में निर्वाचन आयोग ने सिफारिश की थी कि जिन व्यक्तियों के खिलाफ अदालत आरोप पत्र दायर कर दे, उन्हें विधानमंडल या संसद का चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाए।
• चुनाव आयोग ने उम्मीदवार के एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने पर, एिक्जट पोल और ओपिनियन पोल पर प्रतिबंध लगाने, राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपनी आय और खर्च का अनिवार्य रूप से हिसाब रखने और उसकी लेखा परीक्षा कराने की भी सिफारिश की।
• चुनावों को पारदशीZ बनाने के लिए निर्वाचन आयोग ने यह आदेश जारी किया है कि चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार को अपनी नामजदगी के पर्चे के साथ शपथ पत्र में अपनी पित्न और आश्रितों की कुल चल और अचल संपत्ति और देनदारियों का विवरण, अपनी शिक्षा, योग्यता का विवरण और यदि कोई आपराधिक पृष्ठभूमी हो तो उसकी जानकारी और अपने खिलाफ दायर आपराधिक मामलों का विवरण देना होगा।
• सरकार ने मतदाता को पहचान पत्र देने के साथ-साथ जाली मतदान रोकने के लिए मतदाता सूचियों में मतदाता की तस्वीर लगाने की व्यवस्था की है। निर्वाचन आयोग के प्रेक्षकों की जांच के परिणामस्वरूप मतदाता सूचियों से लाखों मृतकों के नाम हटाए गए हैं और लाखों नए नाम शामिल किए गए हैं।
• दलबदल कानून 1985 में संसोधन कर इसे और कठोर बनाया गया है।
इसके अलावा भी कई छोटे किंतु महत्वपूर्ण चुनाव सुधार को अंजाम दिया गया है, जिन्हें इस शोध पत्र में सम्मिलित करना संभव नहीं है।
उन सुधारों और प्रस्तावित सुधार प्रस्ताव जो करीब पन्द्रह विषयों में हैं ,इसके आलावा भी करीब सात विषयों में चुनाव सुधार प्रस्ताव लंबित हैं उन विषयों की सूची और वर्णन भारत के चुनाव आयोग की वेबसाइट पर या इस लिंक पर जा का देख सकते हैं ।

आपकी सुविधा के लिए इस पोस्ट के साथ भी Proposed Indian Electoral Reforms नामक फाइल संलग्न है

हमारा प्रयास कैसा लगा इसे बताते रहे और कोई त्रुटी पे जाने पर अवश्य सूचित करें
Proposed Indian Electoral Reforms


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भारतीय लोकतंत्र की चुनाव प्रक्रिया

भारतीय लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया के अलग-अलग स्तर हैं लेकिन मुख्य तौर पर संविधान में पूरे देश के लिए एक लोकसभा तथा पृथक-पृथक राज्यों के लिए अलग विधानसभा का प्रावधान है।
भारतीय संविधान के भाग 15 में अनुच्छेद 324 से अनुच्छेद 329 तक निर्वाचन की व्याख्या की गई है। अनुच्छेद 324 निर्वाचनों का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना बताता है। संविधान ने अनुच्छेद 324 में ही निर्वाचन आयोग को चुनाव संपन्न कराने की जिम्मेदारी दी है। 1989 तक निर्वाचन आयोग केवल एक सदस्यीय संगठन था लेकिन 16 अक्टूबर 1989 को एक राष्ट्रपतीय अधिसूचना के द्वारा दो और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की गई।
लोकसभा की कुल 543 सीटों में से विभिन्न राज्यों से अलग-अलग संख्या में प्रतिनिधि चुने जाते हैं। इसी प्रकार अलग-अलग राज्यों की विधानसभाओं के लिए अलग-अलग संख्या में विधायक चुने जाते हैं। नगरीय निकाय चुनावों का प्रबंध राज्य निर्वाचन आयोग करता है, जबकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव भारत निर्वाचन आयोग के नियंत्रण में होते हैं, जिनमें वयस्क मताधिकार प्राप्त मतदाता प्रत्यक्ष मतदान के माध्यम से सांसद एवं विधायक चुनते हैं। लोकसभा तथा विधानसभा दोनों का ही कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। इनके चुनाव के लिए सबसे पहले निर्वाचन आयोग अधिसूचना जारी करता है। अधिसूचना जारी होने के बाद संपूर्ण निर्वाचन प्रक्रिया के तीन भाग होते हैं- नामांकन, निर्वाचन तथा मतगणना। निर्वाचन की अधिसूचना जारी होने के बाद नामांकन पत्रों को दाखिल करने के लिए सात दिनों का समय मिलता है। उसके बाद एक दिन उनकी जांच पड़ताल के लिए रखा जाता है। इसमें अन्यान्य कारणों से नामांकन पत्र रद्द भी हो सकते हैं। तत्पश्चात दो दिन नाम वापसी के लिए दिए जाते है ताकि जिन्हे चुनाव नहीं लड़ना है वे आवश्यक विचार विनिमय के बाद अपने नामांकन पत्र वापस ले सकें। 1993 के विधानसभा चुनावों तथा 1996 के लोकसभा चुनावों के लिए विशिष्ट कारणों से चार-चार दिनों का समय दिया गया था। परंतु सामान्यत: यह कार्य दो दिनों में संपन्न करने का प्रयास किया जाता है। कभी कभार किसी क्षेत्र में पुन: मतदान की स्थिति पैदा होने पर उसके लिए अलग से दिन तय किया जाता है। मतदान के लिए तय किये गए मतदान केंद्रों में मतदान का समय सामान्यत: सुबह 7 बजे से सायं 5 बजे तक रखा जाता है।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन आने के बाद मतगणना के लिए सामान्यत: एक दिन का समय रखा जाता है। मतगणना लगातार चलती है तथा इसके लिए विशिष्ट मतगणना केंद्र तय किए जाते हैं जिसमें मतदान केंद्रों के समान ही अनाधिकृत व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित रहता है। सभी प्रत्याशियों, उनके प्रतिनिधियों तथा पत्रकारों आदि के लिए निर्वाचन अधिकारियों द्वारा प्रवेश पत्र जारी किए जाते हैं। वर्तमान में निर्वाचन क्षेत्रानुसार मतगणना की जाती है तथा उसके लिए उसके सभी मतदान केंद्रो के मत की गणना कर परिणाम घोषित किया जाता है। परिणाम के अनुसार जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है, वह केंद्र या राज्य में अपनी सरकार का गठन करता है। भारत में वोट डालने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है और यह नागरिकों का अधिकार है, कर्तव्य नहीं।
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा सदस्यों के चुनाव प्रत्यक्ष होकर अप्रत्यक्ष रूप से होते हैं। इन्हें जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि चुनते हैं।
चुनाव के वक्त पूरी प्रशासनिक मशीनरी चुनाव आयोग के नियंत्रण में कार्य करती है। चुनाव की घोषणा होने के पश्चात आचार संहिता लागू हो जाती है और हर राजनैतिक दल, उसके कार्यकर्ता और उम्मीदवार को इसका पालन करना होता है।
ये कल जारी पहली कड़ी का अंश है , इस कड़ी को आप लगातार पढ़ सकते हैं , यहीं,
अपने विचारों से हमें अवगत कराएं। धन्यवाद


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चुनाव प्रक्रिया एवं चुनाव सुधार - शोध कार्य

क्रिकेट और चुनाव होते तो भारत को एक बेरौनक देश कहा जाता। थोड़े-थोड़े अंतराल में यहां चुनाव होते रहते हैं, इतने बड़े देश में चुनाव संपन्न करवाना कोई मामूली बात नहीं है।गत 57 वर्षों में लोकसभा के लिए 15 आम चुनाव तथा विभिन्न राज्यों के लिए अनेक विधानसभा चुनाव हुए लेकिन कुछ कठिनाइयों के बावजूद यह चुनाव निष्पक्ष, स्वतंत्र और सफल रहे हैं।
शोर शराबा, उम्मीदें, भावुकता, गुस्सा, चिंता, खुशी सब कुछ चुनाव में एक साथ नजर आते हैं। इन सब मानव भावनाओं को एक साथ संभालना चुनाव प्रबंधकों के लिए एक टेढ़ी खीर बन जाता है। प्रस्तुत शोध पत्र में भारतीय चुनाव प्रणाली की व्याख्या की गई है। एक चुनाव किस तरह संपन्न होता है, इसे समझाया गया है।
मानव की तरह चुनाव में भी सुधार की हमेशा गुंजाइश रहती है और भारत में भी इसकी जरूरत 1967 से समझी जाने लगी थी, तब से लेकर आज तक किए गए सुधारों को समझकर आगे की जरूरतों का पता लगाने की कोशिश की गई है।


क्रिकेट और चुनाव होते तो भारत को एक बेरौनक देश कहा जाता। थोड़े-थोड़े अंतराल में यहां चुनाव होते रहते हैं, इतने बड़े देश में चुनाव संपन्न करवाना कोई मामूली बात नहीं है।गत 57 वर्षों में लोकसभा के लिए 15 आम चुनाव तथा विभिन्न राज्यों के लिए अनेक विधानसभा चुनाव हुए लेकिन कुछ कठिनाइयों के बावजूद यह चुनाव निष्पक्ष, स्वतंत्र और सफल रहे हैं।
शोर शराबा, उम्मीदें, भावुकता, गुस्सा, चिंता, खुशी सब कुछ चुनाव में एक साथ नजर आते हैं। इन सब मानव भावनाओं को एक साथ संभालना चुनाव प्रबंधकों के लिए एक टेढ़ी खीर बन जाता है। प्रस्तुत शोध पत्र में भारतीय चुनाव प्रणाली की व्याख्या की गई है। एक चुनाव किस तरह संपन्न होता है, इसे समझाया गया है।
मानव की तरह चुनाव में भी सुधार की हमेशा गुंजाइश रहती है और भारत में भी इसकी जरूरत 1967 से समझी जाने लगी थी, तब से लेकर आज तक किए गए सुधारों को समझकर आगे की जरूरतों का पता लगाने की कोशिश की गई है।
शोध के द्वारा पता लगाने का प्रयत्न किया गया है कि भारतीय चुनाव प्रणाली में कहां खामी है और इसमें किन सुधारों की आवश्यकता है। साथ ही भारतीय लोकतंत्र के लिए प्रमुख चुनौतियों को भी ढूंढा गया है। कुल मिलाकर प्रस्तुत शोध पत्र में इस लोकतंत्र के महापर्व की प्रक्रिया यानि चुनाव प्रक्रिया और उसके सुधारों की वर्तमान स्थिति का जायजा लेने की कोशिश की गई है।

भारतीय लोकतंत्र में `चुनाव प्रक्रिया एवं चुनाव सुधार` यह एक ऐसा विषय है जो हमारी संपूर्ण गतिविधियों एवं क्रियाकलापों से किसी किसी रूप में जुड़ा हुआ है। भारत में आजादी के तीन वर्ष बाद लोकतंत्र की स्थापना हुई और इसके लगभग दो साल बाद चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ हुई।
भारतीय लोकतंत्र की कल्पना करते ही हमारे मस्तिष्क में संविधान का ध्यान आता है, जिसमें भारत की समस्त लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के साथ चुनाव प्रक्रिया का भी वर्णन है। लोकतंत्र राज्य व्यवस्था को बुनियादी ढंग से चलाने की व्यवस्था है, जिसमें जनता `स्व` से शासित होना चाहती है।
लोकतंत्र की व्यवस्था को अनवरत बनाए रखने के लिए ही चुनाव का प्रावधान हमारे संविधान में किया गया है, फिर लोकतंत्र की जीवंतता के लिए चुनाव सुधार की आवश्यकता पड़ती है। यह एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। गौरतलब है भारत अपनी आजादी के 62 साल पूरे कर चुका है और यह विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यही नहीं इसके लोकतंत्र की मजबूती की मिसाल पूरी दुनिया के लिए प्रेरणादायक है। इसका कारण भी है कि लोकतंत्र को ताक पर रखने वाले और तानाशाही से संचालित होने वाले पड़ोसी देशों से घिरे होने के बावजूद भारत के लोकतंत्र की बुनियाद काफी मजबूत है। प्रस्तुत शोध पत्र में इस लोकतंत्र के महापर्व की प्रक्रिया यानि चुनाव प्रक्रिया और उसके सुधारों की वर्तमान स्थिति का जायजा लेने की कोशिश की गई है।
भारतीय लोकतंत्र वर्षों के संघर्षों का परिणाम है, जिसकी बुनियाद में हमारे देश के शहीदों की यादें दबी पड़ी हैं। हालांकि भारत में प्राचीन काल से गणतंत्रों का वर्णन है जिसमें सोलह महाजनपदों का विवरण मिलता है। इसके बाद वर्षों तक हम गुलाम रहे। गुलामी की बेड़ियां तोड़ने और सुंदर भारत का सपना अपनी आंखों में सजाये भारत के वीर सपूतों ने अपने प्राणों की तिलांजलि तक दे दी। इसी क्रम में बापू, नेहरू, भगत सिंह, पटेल और तमाम लोगों ने भारत को आजादी का सवेरा दिखाया।
1947 के बाद भारत ने अपना नया अध्याय शुरू किया और स्वच्छंद माहौल में आजादी के तीन वर्षों बाद भारत ने खुद को गणतंत्र घोषित कर दिया। तब से लेकर अब तक भारत का लोकतंत्र निरंतर समृद्ध और सुदृढ़ ही हुआ है। बीते 62 वर्षों में भारत ने लोकतंत्र की मजबूती एवं सतत विकास की प्रक्रिया के लिए अपना सारा कुछ न्यौछावर किया है। विश्व के उभरते हुए राष्ट्रों में 1950 के दशक में लोकतंत्र एकमात्र पसंद थी। तब से अनेकों बार ऐसे अवसर आये हैं जब प्रश्न किए गए हैं कि क्या भारतीय लोकतंत्र परिस्थितियों की कसौटी पर खरा उतरेगा ? तब प्रत्येक अवसर पर भारत ने सकारात्मक तरीके से हामी भरी है और सभी सवालों के जवाब दिए हैं।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत वयस्क मताधिकार देता है। यह अधिकार प्रत्येक वयस्क नागरिक को बिना किसी भेदभाव के दिया गया है, जो मजबूत लोकतंत्र को उंचाईयों पर ले जाने की पहली सीढ़ी है।

इस श्रंखला में हम आपको भारतीय चुनाव प्रक्रिया और चुनाव सुधार पर किए गए शोध कार्य से अवगत कराएँगे आपके अनुभव और सुझाव सदैव आमंत्रित हैं


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