टाइम मशीन और यादों की जुगाली


अक्सर लोगों की जिन्दगी में यादों का कारवां हमे घेरे रहता है । यादें कभी खुशी के साथ आती है कभी दुखों की शाम दे जाती है । हमने बीते हुए लम्हों को बचने के लिए कई तकनीक विकसित कर ली मगर वो एहसास नही खोज पाए । एच जी वेल्स ने १८८५ में टाइम मशीन नाम की १ बुक लिखी थी जिसमे नायक टाइम मशीन के जरिये बीते हुए वक्त में चला जाता है । और उसके पुराने एहसास फ़िर जिन्दा हो जाते हैं । इस बुक पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं । परिस्थितियां हमेशा तकनीक के विकास में मददगार साबित होती हैं लेकिन अफ़सोस की यादों को फ़िर उसी एहसास के साथ जीने के लिए कोई तकनीक विकसित नही हो पाई है और हमेशा उदास दिल यूँ ही खामोश हो जाता है । शामें अकसर गंगा ढाबे या इसे ही किसी जुगाली स्पॉट पे गुजर जाती हैं । बहुत याद आया है वो घर , वो दोस्त और मोहल्ला । वक़त और दूरी के बीच हम बहुत अकेले रहते हैं क्योंकि न तो बीते हुए वक्त की वापसी होना और न ही यादों की जुगाली में निकालने वाले आंसू थामेंगे । कोई लोटा दे मेरे बीते हुए दिन । इन्ही यादों के साथ ये गीत भी सुनते चलें ।और ये विडियो देखें


3 comments:

  1. बस, गीत सुन रहे हैं!!

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  2. यादों को उन्हीं एहसास के साथ जीने की कोई मशीन तो नही बनी परीक्षित ,पर आज का इंसान मशीनों में ही अपनी यादें क़ैद करना सीख चुका है,क्योंकि रिश्तों को हमने "समय" रुपी "खाद" देना जो बंद कर दिया है| अच्छा है कि अब तक हम अपने "एहसास" को क़ैद कर पाने की मशीन नहीं दूंढ़ पाए, नहीं तो "हम" में और मशीनों में कोई फर्क नहीं बच पायेगा |

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  3. बहुत सुन्दर गीत है आपको दशहरे की बहुत बहुत बधाई

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