हमारे भोपाल मैं पिछले कई दिनों से फोटो खिंचाओ महोत्सव चल रहा है ,जिसमे लोग बड़े तालाब पर सज-धज के आते हैं फावडा तागादी उठाते हैं,थोडी सी मिटटी उठाते निकलते हैं ,फिर मुस्कुराते हुए फोटू खिचाते हैं और निकल जाते हैं ,ऐसा सिलसिला चल रहा है फोटू खिचाने का । रोजाना कई वीभागों के ,स्कूल-कॉलेजों के और स्वयं सेवी संस्थाओं के मॉडल आते हैं ,थोड़ा कैट वाक किया और खड़े हो गए पोस देने । अब इन तथाकथित मजदूरों को कैसे समझाएँ की भइया यहाँ फोटो खिंचाओ महोत्सव नही श्रमदान उत्सव चल रहा है । हमारे शहर के अखबारों को और तथाकथित न्यूज़ चैनलों को भी चैन नही ,लगे हैं फोटो खीचने और शूटिंग करने मैं ,अरे साहब जितना समय इस काम मैं दे रहे हैं उतना अगर श्रमदान मैं देते तो ज़्यादा सार्थक पत्रकारिता होती । रोजाना अख़बारों मैं एक फुल पेज श्रमदान के नाम रहता है अलग अलग नामों के सरोकारों से । तालाब सोच रहा होगा की अच्छे लोग हैं एक तो मैं बीमार अवस्था मैं हूँ ऊपर से ये मेरी छाती पर मूंग दल रहे हैं । क्या ये सब अनुपम मिश्रा देख रहे हैं , शायद नही वरना उनके कदम यहाँ आने के लिए रुकते नही, कोई उन तक पुकार पहुँचा दे तो कुछ बात बने । अभी लिखा ही था की पड़ोस से आवाज़ आई ऐ जी सुनती हो तैयार हो जाओ सन्डे है श्रमदान करने चलना है नै सदी पहन लेना वरना फोटो ठीक नही आएगी ।
एक सुंदर फोटो
No comments:
Post a Comment