प्रस्तुति -फैजान सिद्दीकी
भोपाल गंगा जमुनी तहजीब का शहर है, यहाँ सभी धर्मों के त्यौहार मिलजुल कर मनाने की रिवायत रही है। इस परम्परा की शुरूआत नवाबी दौर से हुई। रंगों और उल्लास के पर्व होली को मनाने का इतिहास भी शहर में अनौखा रहा है। नवाब शाहजहां बेगम के शासन काल में ताजमहल में बने सावन-भादों में जाफरानी रंगों से होली खेली जाती थी। होली पर बड़े औहदेदारों को रियासत की ओर से सोने की पिचकारियां होली खेलने के लिए भेंट की जाती थीं।
नवाब शाहजहाँ बेगम का निवास ताजमहल में हुआ करता था। महल में हर वर्ष हुलियारों की महफिल जमती थी। रियासत के औहदेदार और आम लोग ताजमहल के प्रांगढ़ में बने खूबसूरत चौकोर फव्वारों जिन्हें सांवन-भादों कहा जाता है, में जमा होते थे। यहाँ चांदी के कटोरों में जाफरान (कैसर) व केवड़े के मिश्रण से बने रंग से होली खेली जाती थी। शाहजहां बेगम खुद इस जश्न में शामिल होती थी। उनके द्वारा रियासत के खास लोगों को सोने से बनी पिचकारियां होली खेलने के लिए दी जाती थीं।
बाद में भी रहा यह सिलसिला जारी
नवाब शाहजहां बेगम के बाद होली मनाये जाने का सिलसिला बाद के नवाबों दौर में भी जारी रहा। इतिहासकारों के मुताबिक नवाब हमीदुल्ला खान के कोहेफिजा स्थित महल कस्र-ए-सुल्तानी में होली के दूसरे दिन होली मनाने का कार्यक्रम आयोजित किया जाता था।
इसमें भोपाल रियासत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अवद नारायण बिसारिया, नवाबी खानदान के फेमिली ज्वेलर्स मदनलाल अग्रवाल व घड़ी साज(घड़ियां सुधाने वाले) गुलास राय सहित शाही परिवार से जुड़ी शहर की विभिन्न हस्तियाँ शामिल होती थीं। नवाब हमीदुल्ला खान इनके साथ होली मनाने के बाद सीहोर होली मनाने जाया करते थे। जो उस वक्त रियासत का एक हिस्सा हुआ करता था,सीहोर के कई हिस्सों में यहाँ से शुरू हुई परम्परा को आज भी पूरा किया जाता है और दूसरे दिन भी होली मनाई जाती है।
रियासतकाल में होली मनाने की अनोखी परम्परा थी। पहले ताजमहल में और बाद में अहमदाबाद पैलेस में होली मनाई जाती थी। इसमें धर्मो के लोग धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर होली खेला करते थे। सोने की पिचकारियों से होली खेलने की परम्परा भोपाल के अलावा ओर कहीं नहीं मिलती।
एसएम हुसैन आर्किटेक्ट और नवाबी परिवार से संबंधित
ताजमहल के सावन-भादों में होली मनाई जाती थी। सावन-भादों के अंदर तांबे की नलकियों से पानी इस तरह बहता था जैसे सावन की झड़ी लगी है। इस माहौल में होली खेलने का अपना अलग ही महत्व होता था।
सैयद अख्तर हुसैन, द रायल जनी आफ भोपाल के लेखक
जानकारी रोचक लगी। आपको होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteनवाब घराने भी होली खेला करते थे ये नायाब जानकारी लगी !
ReplyDeleteआप सभी को होली की शुभ कामनाएं
दिलचस्प जानकारी का आभार.
ReplyDeleteहोली महापर्व की बहुत बहुत बधाई एवं मुबारक़बाद !!!
होली पर शुभकामनाएँ कीजिए मेरी क़ुबूल
ReplyDeleteयह वह गुलदस्ता है जिसमें हैँ कई रंगोँ के फूल
है सभी फूलोँ की ख़ुशबू और रंगत भिन्न भिन्न
आइए मिल कर मनाएँ ईद-ए-मीलाद-ए-रसूल
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
मयूर जी आपने नवावों की होली के बारे में अच्छी जानकारी दी है , आप को होली की बधाईयाँ .........
ReplyDeleteसोने की न सही
ReplyDeleteसोने की ही सही
मना लेंगे हम
सोकर के सोने की होली
जगेंगे तब जब होलेगी होली
बरसेंगे रंग, झूमेंगे हम
रंगकामनायें स्वीकारें।
मैं तो बस इतना ही अर्ज़ करना चाहूंगा कि होली वाले दिन तो भैया, हर कोई नवाब होता है।
ReplyDeleteबहुत लाजवाब जानकारी दी आपने. शुभकामनाएं
ReplyDeleteऔर आपको होली की घणी रामराम.
शुक्रिया इस जानकारी से अवगत कराने के लिए
ReplyDeleteहोली वाले दिन तो भैया, हर कोई नवाब होता है।
ReplyDeleteहोली महापर्व की बहुत बहुत बधाई
जानकारी रोचक है।
अच्छी जानकारी। होली मुबारक!
ReplyDeleteआपकी गलत व भ्रामक जानकारी में सुधार कर लीजिये, नवाब के कारण तो होली संकट में है::::
ReplyDeleteनवाब हमीदुल्ला को होली का शोक था इसमें हमें इंकार नहीं है, वह सोने की पिचकारियों से होली खेलते थे इससे भी हमें कोई सरोकार नहीं ।
लेकिन नवाब साहब की सरपरस्ती कसीदे घड़ने वालों ने जो यह लिख दिया है कि नवाब साहब दूसरे दिन होली खेलने सीहोर जाते थे और आज भी इस कारण सीहोर में दूसरे दिन होली खेलने की परम्परा कायम है, वह लोग अपनी इस नाजायज भूल में सुधार कर लें ।
अव्वल तो इतिहास लिखने वाले को संस्कृति व परम्पराओं का भी ज्ञान होना चाहिये लेकिन जो सिर्फ साहब जी हजूरी करने के लिये ही लिख रहा हो उससे ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती ।
तथैव – यह समझ लें की होली कोई एक दिन का त्यौहार नहीं है बल्कि पूरे 5 दिन का त्यौहार तो तिथियों के मान से ही है। यह भी बता देना उचित है कि सीहोर में होली भोपाल से कई गुना ज्यादा उत्साह, उमंग व अपनी अनेक परम्पराओं के साथ मनाई जाती है, इसमें किसी राजा या नवाब की कोई देन नहीं है ।
होली की यह अतिसामान्य जानकारी भी वह कथित इतिहासकार जान लें कि होली की पड़वा एकम को ‘‘गमी’’ की होली रहती है, पूरे देश में ही गमी की होली मनाई जाती है, सीहोर में आज भी पहले दिन गमी की होली पर विभिन्न जाति समाज के लोग अपनी-अपनी ‘’गैर’’ निकालते हैं, और उन घरों में जाते हैं जहां बीते वर्ष गमी अर्थात किसी की मृत्यु हुई हो ।
हिन्दु धर्म में यह परम्परा बता देना उचित होगा कि गमी वाले घरों के लिये सारे त्यौहार सामान्य रहते हैं लेकिन यदि वर्ष के बीच में होली आ जाये तो होली की एकम को जब समाज की गैर गमी वाले घर के लोगों को बाहर निकालकर गम भूल जाने की समझाईश देती तो इस दिन बाद आगामी सारे त्यौहार वह परिवार मना सकता है ।
मूल बात यह है कि सीहोर में ही नहीं बल्कि आसपास क्षेत्रों में पहले दिन गमी की होली मनती है और दूसरे ऐसी शानदार होली मनती है कि वह लोग जिन्हे होली खेलने का शोक हो, वह स्वयं ही सीहोर खींचे चले आते है। सीहोर में पूर्व वर्षों में 5 दिन की होली मनती थी, कथित इतिहासकार सोचे की क्या बाकी के 3 दिन क्या नवाब की याद में होली मनती होगी।
इसे नोट कर लें – कि अभी 9-10 वर्ष वर्ष 2000 के पूर्व तक सीहोर से लगी हुई आष्टा तहसील में तो होली की धूम इतनी जबर्दस्त रहती थी कि पूरे 5 दिन तक बाजार बंद रहता था प्रतिदिन होली होती थी, लेकिन अभी 10 वर्ष पूर्व बैठक करके निर्णय लिया गया कि 5 दिन होली शहर के अलग-अलग हिस्सों में बांटकर होगी, अब वहां भी जिसे होली पसंद होती है वह पूराने आष्टा नगर को छोड़ जहां होली हो रही होती है उस मोहल्ले क्षेत्र में चला जाता है, ठीक वैसे ही है जैसे नवाब सीहोर आ जाते थे ।
यदि नवाब सीहोर में आकर होली खेलता था तो यही कहा जाना चाहिये कि नवाब होली खेलने के शोक में सीहोर में होली खेलने चले जाया करते थे, उनके कारण सीहोर में होली होती यह कहना ना सिर्फ गलत, भ्रामक, असत्य है बल्कि इतिहास के साथ छेड़छाड़ भी है
इन्ही कथित इतिहासकारों के कारण आज सीहोर में दूसरे दिन की होली संकट के दौर से गुजर रही है, क्योंकि यहां पहले दिन गमी की होली का इतना महत्व है कि इस दिन सामान्य कम लोग होली खेलते हैं लेकिन दूसरे दिन हर हुरियारा सड़क पर होता है, ऐसे में प्रशासन, पुलिस बल हर कोई यह चाहता है कि होली की मस्ती कम हो, प्रशासन व पुलिस बल लगातार होली के सप्ताह भर पहले से यह कहना शुरु कर देता है कि सीहोर के लोग आज भी नवाब की याद में होली खेल रहे हैं, एक नया सिपाही भी यहां आता है जिसे सीहोर का इतिहास नहीं मालूम हो, वह तक नई उम्र के हुरियारों से कहता है कि नवाब खेलते आते थे इसलिये यहां होली हो रही है, कुछ नये लोग जिन्हे होली से घबराहट होती है वह भी खुद को बचाने के लिये कह देते हैं कि हम नवाब की होली क्यों खेलें:::::::
मूर्ख इतिहासकारों के कारण आज आम स्वाभिमानी सीहोर का नागरिक पारम्परिक होली खेलते हुए परेशानी महसूस करता है, उसे चारों और होली के विरोधियों द्वारा यह स्वर सुनाई देता है कि नवाब की होली खेल रहे हो।
क्षमा प्रार्थना सहित – निवेदन है कि आपके चिट्ठे पर सरपरस्ती में लिखा गया उक्त लेख व विषय उचित है लेकिन उसमें यह उल्लेख किया जाना गलत है कि सीहोर के कई हिस्सो मे आज भी वह परम्परा निभाई जाती है........ । अरे आपको मालूम भी नहीं है कि दूसरे दिन सीहोर के हर एक हिस्से में, हर घर में होली होती है, और इतनी होती है कि एक बार हिम्मत करके आप आकर तो देखिये........रंगपंचमी पर भी चाहे तो आ सकते हैं । सोने की पिचकारियां भूल जायेंगे।