पोस्ट का पहला अक्षर बड़ा बनाएं

इस पोस्ट में आपने कुछ अलग नोटिस किया ,जी हाँ पहला अक्षर ,इस पोस्ट का पहला अक्षर बड़ा है , बहुतदिनों से अपने ब्लॉग की स्टाइल शीत पर कोई काम नही किया था, वडनेरकर जी के सफर में पोस्ट के शुरुआतहमेशा बड़े अक्षर से ही होती है , बचपन से अखबार की सम्पादकीय में भी ऐसा ही कुछ देखते रहे हैं सोचा क्यों अपने ब्लॉग पर लगाया जाए

Drop Caps - जी हाँ यही कहते हैं इसे , हम इसे बरसों से अपने वर्ड डाक्यूमेंट सुंदर बनने के लिए कर ही रहे हैं , और यदि आप वर्ड पर लिख सीधे किसी सॉफ्टवेर से प्रकाशित करते हों तो आप जानते ही होंगे


कैसे - इसको अपने ब्लॉग पर लगना कोई कठिन काम नही है , चूँकि हमारा ब्लॉग को css style sheet से हीसमझता है , तो हमें पहले ब्लॉग को ये बताना होगा, फ़िर वोह ख़ुद--ख़ुद सिर्फ़ एक बार में समझ लिया करेगा तो ज्यादा समय नही लेते हुए विधि पर आते हैं

Step 1 - अपने ब्लॉग के edit HTML सेक्शन में जायें .
Photobucket

Step 2 - यहाँ आपके कोड लिखे दिखेंगे यहाँ CTRL+F की सहायता से

]]</b:skin>

को ढूंढें

Step 3- ]]</b:skin> के ठीक ऊपर निचे दिया हुआ कोड पेस्ट कर दें
.post aad {
float:left; color:
headerBgColor;
font-size:100px;
line-height:80px;
padding-top:1px;
padding-right:5px; }

अब निचे दिए हुए सेव टेम्पलेट पर क्लिक करें - आपका काम हो चुका है

अपनी पोस्ट पर आकर पहले अक्षर को एडिट एच टी एम् एल पर आकर इस कोड में बंद कर लें <aad>अ</aad>


लगातार
उपयोग के लिए

सेटिंग में जा कर - फॉरमेटिंग पर क्लिक कर सबसे निचे पोस्ट टेम्पलेट में इस तरह से कोड पेस्ट कर दें और सेवकर लें इस से आपको ये कोड याद रखने में
दिक्कत नही होगी
http://www.blogger.com/blog-formatting.g?blogID=1003205703605241903

अब जब भी आप नई पोस्ट लिखेंगे तो आपको ये पहले से ही वहां मिलेगा , आपको सिर्फ़ बीच में जगह पर अपनीपोस्ट का पहला अक्षर लिखना है

ये पोस्ट कैसी लगी , ज़रूर बताइए

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लोकलज्जा भंग होने का प्रतीक है जरनैल का जूता

बड़ा ही अहम सवाल है कि क्या जरनैल जैसे पत्रकारों का एक जूता भारतीय राजनीति की दिशा को बदल सकताहै? इस जूते के कई मायने हैं। एक तो ये कि क्या एक पत्रकार के लिए ऐसा करना ठीक है ? दूसरा ये कि क्या एकजुता भारतीय राजनीति में किसी की टिकट कटा सकता है। निसंदेह जरनैल के जूते ने भारतीय राजनीति, पत्रकारिता और ब्लागर्स के मध्य एक नई बहस को जन्म दिया है। लेकिन थोड़ा सा सापेक्ष होकर सोचें तो क्या यहसही नहीं है कि ये जरनैल के जूते का ही असर है कि सिक्ख दंगों के लिए दोषी टाइटलर और सज्जन के हाथ सेकांग्रेस की टिकट फिसल गई।
थोड़ा सा और गहरे में जाएं तो क्या ये भी सही नहीं है कि 60 साल के लोकतंत्र की हालत अब भी इस कदर कमजोर है कि एक पत्रकार का जूता इसमें हिलोरें पैदा कर सकता है। सवाल जरनैल के जूते से सज्जन और टाइटलर के टिकट काटकर जन भावनाओं के सम्मान का नहीं है (जैसा कांग्रेस कह रही है) यदि हिंदुस्तान के राजनीतिक दलों को जनभावनाओं की इतनी ही कदर है तो फिर दोषी ठहराए जाने के बावजूद सज्जन और टाइटलर आज इस मुकाम पर कैसे पहुंचे । यहाँ तो राजनीतिक पार्टियों का ये एक सूत्रीय ऐजेंडा है सत्ता सुख का भोग। चाहे उसके लिए उन्हें कुछ करना पड़े। इस आम चुनाव में कौनसा ऐसा मुद्दा है जो आम आदमी से सीधा जुड़ा है। यदि सिक्ख दंगों के लिए दोषी ठहराए जाने के बावजूद सज्जन और टाइटलर को टिकट मिल रही थी तो शर्म आना चाहिए हमारे लोकतंत्र के पुराधाओं को , हम बहस इस विषय पर कर रहे हैं कि जरनैल का चिंदबरम पर जूता उछालना कितना जायज है। हम ये नहीं जानना चाहते कि भारतीय राजनीति में ऐसे न जाने कितने टाइटलर और सज्जन हैं जिन्होंने अपनी पार्टी के फायदे के लिए क्या-क्या नहीं किया। इसीलिए तो अब लोकतंत्र में लोकलज्जा भंग हो रही है।
जरनैल का एक पत्रकार होते हुए चिदंबरम पर जूता उछालना इसी बात का प्रमाण है। चाहे कोई किसी पेशे में हो लेकिन सबसे पहले वह एक इंसान है। इंसान के भीतर उसके अपनी संवेदनाएं है। यदि जरनैल का मामला प्लांटेड नहीं हुआ तब तो ये पूरी राजनीतिक बिरादरी पर फेंका गया एक जुता है। यदि इस जूते ने कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के निर्णय को प्रभावित किया है तब तो निश्चित रुप से जरनैल का कृत्य काबिले तारीफ है। इराक में जार्ज़बुश पर फेंके गए जैदी के जूते की इसीलिए वहॉं जय-जयकार हुई थी। दरअसल ये जूता नहीं जनभावनाओं का प्रतीक है।

अब आपके लिए भी ये एक जूता छोडे जा रहे हैं , मन चाहे पत्रकारों पर मारें, मन चाहे हमारी राजनीती पर मारें , या चाहें तो उस पर क्लिक करें और हमें गरिया दें या कमेन्ट दे दें


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गूगल एनालिटिक्स पर रजिस्टर करें-रिपोर्ट्स का विवरण अगली पोस्ट मैं

र ब्लॉगर के लिए आज ये जानना ज़रूरी हो गया है की उसके पाठक कौन हैं कहाँ से आते हैं , कितना समय वेबसाइट पर बिताते हैं और किन किन लेखों को ज्यादा तवज्जो देते हैं । दरअसल इन आंकडो से एक ब्लॉगर को दिशा मिल सकती है की वो किस ओर अपनी उर्जा लगाये की उसका पाठक आधार और मजबूत हो , साथ ही ये भी पता चलता है की किस क्षेत्र में और काम किया जा सकता है , पर कैसे ? इसके लिए इन्टरनेट पर तमाम उपाय मौजूद हैं , जैसे www.statcounter.com , www.histats.com और भी कई । इनसे अलग गूगल का एक उत्पाद है जो इस तरह के तकनीकी अनालिसिस में आपकी मदद कर सकता है । google.com/analytics
इस पोस्ट मैं सिर्फ़ गूगल एनालिटिक्स मैं रजिस्टर कैसे करें है और अगली पोस्ट कैसे इस्तेमाल करें इस पर आधारित होगी क्योंकि जब आपके पास डाटा होगा तब ही तो आप उसका इस्तेमाल करेंगे और गूगल एनालिटिक्स
मैं डाटा इकट्ठे होने मैं एक दिन का समय लगता है । गूगल एनालिटिक्स मैं तमाम तरह की सुविधाएं हैं और advanced reports देखी जा सकती हैं ।

तो देखें कैसे रजिस्टर करें
  1. google.com/analytics पर क्लिक करें और रजिस्टर करें । इस पर रजिस्टर करने के लिए आपके पास सिर्फ़ एक गूगल खता और एक ब्लॉग का होना ज़रूरी है .Photobucket
  2. रजिस्टर करने के बाद दूसरी कड़ी अपने चिट्ठे के बारे में अनालिस्टिक को बताना होता है । यहाँ सिर्फ़ चिट्ठे का नाम , url और अपने देश का नाम देना होता है । डिटेल देने के बाद continue पर क्लिक करें । Photobucket
  3. तीसरी स्टेप में अपनी निजी जानकारी जिससे अनाल्य्स्टिक आपको पहचानेगा डालें और continue करें । Photobucket
  4. अगली कड़ी में गूगल की सेवा शर्तों को मानें क्योंकि बिना उसके हम आगे नही जा सकते . Photobucket
  5. निचे डाटा शरिंग लिंक पर क्लिक करें और अपने हिसाब से तय करें की आप अपना डाटा किसी के साथ शेयर करना चाहते हैं या नही , मेरे ब्लॉग पर तो जो भी है बाँटने के लिए ही है इसलिए मैंने इस प्रकार शेयर किया है । इस स्टेप के बाद निचे create new account पर क्लिक करें । Photobucket
  6. अब आप इस पेज पर आ जायेंगे , यहाँ दो तेबों में दो दो कोड दिए हुए हैं New Tracking Code(ga.js) और Legacy Tracking Code (urchin.js) । हमें एक एक करके दोनों का इस्तेमाल करना है , एक दूसरी विंडो में ब्लॉगर खोल लें Photobucket
कॉपी किया हुआ कोड ब्लॉगर में </body> टैग के ठीक ऊपर पेस्ट कर दें । </body> को ढूँढने के लिए इस तरह layout में जा कर edit html पर क्लिक करें और ctrl+f कर ढूंढेंPhotobucket




जहाँ कोड पेस्ट करें उसके ठीक निचे urchin.js का कोड पेस्ट कर दें । urchin.js कोड के लिए दिए हुए चित्र की तरह दिए हुए कोड को कॉपी कर पेस्ट कर दें । Photobucket
आपके ब्लॉग पर दूसरा कोड कुछ ऐसा दिखेगा . अब save template पर क्लिक करें । Photobucket
7. जब कोड सेव कर लें , दोबारा अनाल्य्स्टिक की वेबसाइट पर जा कर continue पर क्लिक करें ।
Photobucket

आपका कार्य हो चुका है , आधे घंटे बाद दोबारा गूगल एनालिटिक्स को एक्सेस करें आपको ये सही का निशान दिख जाएगा
https://www.google.com/analytics/settings/?et=reset&hl=en-US

एक बार आपका अकाउंट बन जाए आप इस सेवा से कई रिपोर्ट्स देख सकते हैं ,

अब रिपोर्ट्स कैसे देखें और क्या रिपोर्ट्स हैं इसे पढने और समझने के लिए अगली पोस्ट पढ़ें , जो शीघ्र ही प्रकाशित होगी । मैं यहाँ बताना चाहता हूँ की ये रिपोर्ट ब्लोग्गेर्स से ज्यादा उन वेबसाइट्स जो इन्टरनेट व्यापार आदि कार्यों मैं लगी हैं के काम का है । तो अगली पोस्ट का इंतज़ार करें ।


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श्रीलंका-तमिल संघर्ष पर एक नज़र " और हम "

श्रीलंका में क्या घट रहा है ,हम सभी शायद इससे अनभिग्य भी हों पर कुछ करते भी नही , स्वयं को जिम्मेदार समझने वाली हमारी मीडिया भी चुप्पी सी सधी हुई है , यहाँ मैं इन्टरनेट पर उपलब्ध दो लेख जो इस विषय को थोड़ा-थोड़ा समझाते हैं दे रहा हूँ साथ ही कुछ तस्वीरें हैं जो वहां हो रही विभत्सक हत्याओं पर ध्यान दिलाती हैं एक मित्र के मेल से ये तस्वीरें मिलीं , इतनी हिंसक हैं की ब्लॉग पर प्रकाशित नही कर सकता इसलिए इनकी सिर्फ़ लिंक देख रहा हूँ आप इसे क्लिक कर देख सकते हैं
फिलहाल श्रीलंका में स्थिति इतनी ख़राब है की उसे हिटलर की दोबारा वापसी कहना अतिशयोक्ति नही होगी , श्रीलंकन आर्मी आम तमिल निवासियों के बीच बम गिरा रही है ,हालत सचमुच बहुत ख़राब हैं । बच्चे गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों किसी को नही छोडा जा रहा । संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 4000 से ज्यादा तमिलों को पिछले तीन महीनों में मारा है जिसमे 900 से ज्यादा तो बच्चे ही हैं । संयुक्त राष्ट्र ,अमेरिका और भारत जैसे देश क्या कर रहे हैं ,कब तक श्रीलंका इसे अपना अंदरूनी मामला कह कर और बचता फिरेगा ।

मेरी नाराज़गी हमारे नागरिकों से भी है , हम में से कुछ लोग इराक के राष्ट्रपति - सद्दाम हुसैन को फांसी देने का विरोध करते हैं और श्रीलंका में मारे जा रहे नागरिकों के लिए कुछ नही कर सकते ? जरुरत है हम अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर प्रेशर बनाएं , मानव अधिकारों की बात करने वाले आगे आयें , कोई सिर्फ़ आतंकवाद या अतिवाद से निपटने के लिए इतना बर्बर कैसे हो सकता है॥

पढें और देखें
स्वीरें - श्रीलंका में नरसंहार
क्या
है श्रीलंका का तमिल संकट-साभार-शांत प्रकाश
कौन हैं श्रीलंका के तमिल?

श्रीलंका में देश के उत्तर और पूर्वी भाग में तमिल अल्पसंख्यक बरसों से रह रहे हैं. बाद में अंग्रेज़ों ने भी चाय और कॉफ़ी की खेती के लिए तमिलों को यहाँ बसाना शुरू किया.

विवाद की शुरूआत कैसे हुई?

श्रीलंका में सिंहला समुदाय के लोगों की आबादी सबसे अधिक है और ये लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं. ब्रिटिश राज के दौरान सिंहला लोगों में ये असंतोष घर करने लगा कि ब्रिटिश शासक देश में तमिलों को बढ़ावा दे रहे हैं जो मुख्य रूप से हिंदू हैं. बात बढ़ने लगी और 1948 में श्रीलंका की आज़ादी के बाद सिंहला राष्ट्रवाद ने ज़ोर पकड़ना
शुरू किया.

तमिल क्यों भड़के?

स्वतंत्रता के बाद सत्ता सिंहला समुदाय के हाथ आई और उसने सिंहला हितों को बढ़ावा देना शुरू किया. सिंहला भाषा को देश की राष्ट्रीय भाषा बनाया गया. नौकरियों में सबसे अच्छे पद सिंहला आबादी के लिए आरक्षित कर दिए गए. 1972 में श्रीलंका में बौद्ध धर्म को देश का प्राथमिक धर्म मान लिया गया. साथ ही विश्वविद्यालयों में तमिलों के लिए सीटों की संख्या भी घटा दी गई.

तमिलों ने क्या किया?

तमिल विद्रोहियों ने देश के उत्तरी हिस्से पर अपना प्रभाव बनाया हुआ है
सिंहला शासकों की नीति के कारण तमिलों में नाराज़गी बढ़ी और उन्होंने देश के उत्तर और पूर्वी हिस्सों में स्वायत्तता की माँग करनी शुरू कर दी. वे अपने अलग और स्वतंत्र देश की माँग करने लगे. आँदोलन ने हिंसक रूप लिया और तमिल क्षेत्रों में सिंहला सुरक्षाबलों और तमिलों के बीच झड़पें होने लगीं. 1976 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल इलम (एलटीटीई) अस्तित्व में आया.

सरकार का क्या रूख रहा?

1977 में जूनियस रिचर्ड जयवर्धने सत्ता में आए. उनकी सरकार ने तमिल क्षेत्रों में तमिल भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया. उन्होंने स्थानीय सरकारों में तमिलों को ज़्यादा अधिकार भी दिए. मगर हिंसा बढ़ती गई.

बात कैसे बिगड़ी?

1983 में तमिल विद्रोही संगठन, एलटीटीई के अलगाववादियों ने सेना के एक गश्ती दल पर हमला कर 13 सैनिकों को मार डाला. इसके बाद सिंहला लोग उग्र हो उठे और उन्होंने दो दिनों तक जमकर हमले किए. हज़ारों तमिल मारे गए और संपत्ति की बड़े पैमाने पर लूट हुई. यहाँ से बात बिगड़ गई. तमिल उत्तर की ओर तमिल प्रभाव वाले इलाक़ों में जाने लगे और सिंहला लोग जाफ़ना के तमिल क्षेत्रों से बाहर निकलने लगे.

भारत ने कब दखल दिया?

राष्ट्रपति प्रेमदासा की 1993 में हत्या हुई
1985 तक श्रीलंका में तो 50,000 शरणार्थी थे ही, वहाँ से लगभग एक लाख तमिल शरणार्थी भारत भी गए. 1987 में दोनों देशों में समझौता हुआ कि श्रीलंका सरकार पीछे हटेगी और देश के उत्तरी इलाकों में भारतीय शांति सेना क़ानून और व्यवस्था पर नज़र रखेगी. इस समझौते का श्रीलंका की सिंहला और मुस्लिम आबादी ने जमकर विरोध किया जिसके बाद दंगे भी हुए.

शांतिसेना कैसे लौटी?
1989 में श्रीलंका के दक्षिणी हिस्सों में सिंहला आबादी ने विद्रोह कर दिया और वहाँ के मार्क्सवादी गुट जेवीपी ने भी हड़ताल और हिंसा तेज़ कर दी. सरकार ने जेवीपी से बातचीत की मगर वार्ता नाक़ाम रहने के बाद सरकार ने जेवीपी के लोगों को मरवाना शुरू किया. हज़ारों लोग मारे गए. भारतीय शांति सेना 1990 में वापस गई.

हिंसा कैसे बढ़ी?

भारतीय शांति सेना जब श्रीलंका में थी तो एलटीटीई संघर्षविराम के लिए तैयार हो गई थी मगर उसके एक गुट ने एकरफ़ा तौर पर स्वतंत्र राष्ट्र का एलान कर दिया जिसके बाद हिंसा भड़क उठी.शांति सेना के वापस आने के बाद 1991 में राजीव गांधी की हत्या हुई. दो साल बाद 1993 में श्रीलंका के राष्ट्रपति प्रेमदासा को भी मार डाला गया.

संघर्षविराम और शांति के प्रयासों का क्या हुआ?

कुमारतुंगा पर एक चुनावी रैली में बम हमला हुआ जिसमें उनकी एक आँख चली गई
चंद्रिका कुमारतुंगा 1994 में देश की प्रधानमंत्री और 1995 में देश की राष्ट्रपति बनीं. कुमारतुंगा ने तमिलों के साथ शांतिवार्ता शुरू की. मगर सफलता नहीं मिली. 1995 में एलटीटीई संघर्षविराम से पीछे हटा और इसके बाद दोनों पक्षों के बीच हिंसा का नया दौर शुरू हुआ. 1999 में एक सभा में बम हमला कर कुमारतुंगा को मारने का भी प्रयास किया गया.कुमारतुंगा फिर राष्ट्रपति चुनी गईं.

नॉर्वे की क्या भूमिका है?

नॉर्वे सन् 2000 में मध्यस्थ की भूमिका निभाने आया. मगर बात बनी 2002 में जाकर जब तमिल विद्रोहियों और सरकार के बीच एक स्थायी संघर्षविराम पर सहमति हुई. इसी वर्ष सरकार ने एलटीटीई पर लगा प्रतिबंध भी हटा लिया जो कि तमिलों की एक प्रमुख माँग थी. इसी वर्ष थाईलैंड में बातचीत का पहला दौर शुरू हुआ. तब से मार्च 2003 तक बातचीत के छह दौर हो चुके हैं. बातचीत की प्रक्रिया चल रही है और तमिल विद्रोही अलग राज्य की अपनी माँग छोड़कर और क्षेत्रीय स्वायत्तता पर सहमत होने के लिए तैयार हो गए हैं.



श्रीलंका में युद्ध का मूक आतंक- साभार-NVO

श्रीलंका में जो आतंक बढ़ रहा है वह आस पास की चुप्पी की वजह से संभव हुआ है. इसमें भारतीय मुख्य मीडिया में लगभग कोई रिपोर्ट नहीं की गई है - या वास्तव में अंतरराष्ट्रीय प्रेस में भी - इस के बारे में की वहाँ क्या हो रहा है. यह क्यों हो रहा है? ये गंभीर चिंता का विषय है. जो थोडी बहुत जानकारी निस्पंदित हुई है इससे पता चलता है की हालांकि श्रीलंकाई सरकारआतंकवाद पर युद्धका प्रचार कर रही है लेकिन उसका बेईमान उपयोग हो रहा है देश में लोकतंत्र को विघटित करने के लिए, और तमिल लोगों के खिलाफ अकथ्य अपराध को अंजाम देने के लिए. इस सिद्धांत पर कार्यवाही हो रही है कि हर एक तमिल, जब तक वह अन्यथा साबित कर सके, आतंकवादी है. असैनिक क्षेत्रों, अस्पतालों और आश्रयों में बमबारी की जा रही है और इन्हें एक युद्ध क्षेत्र में बदल दिया गया है. विश्वसनीय अनुमान है की 200,000 से ज्यादा की तादात में नागरिक फंसे हुए हैं. श्रीलंका की सेना, टैंकों और लड़ाकू विमानों से सज्ज आगे बढ़ रही है. इस बीच, वहाँ आधिकारिक रिपोर्ट है कि विस्थापितों को आश्रय देने के लिए वावुनिया और मन्नार जिलों में कईकल्याण गावंबनाये गए है. डेली टेलीग्राफ में एक रिपोर्ट (फ़रवरी 14, 2009) के अनुसार, “ये गावं सभी लड़ाकू और भगेडू नागरिकों के लिए अनिवार्य अवलंबन केंद्र है”. क्या यह सकेंद्रित नजरबंद क्षेत्र के लिए अच्छे शब्दों का प्रयोग है? श्रीलंका के पूर्व विदेश मंत्री, मंगला समरवीरा ने डेली टेलीग्राफ से कहा है की: ”कुछ महीने पहले सरकार ने इस आधार पर कोलंबो में सभी तमिलों का पंजीकरण शुरू किया कि वे देश की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकते हें, लेकिन इसका इस्तेमाल 1930 के दशक में नाजियों की तरह अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है. वे मूलतः पूरी असैनिक तमिल आबादी को संभवित आतंकवादियों के रूप में पेश करना चाहते हें. तमिल व्याध्रों (एल टी टी ) को समाप्त करने के अपने घोषित उद्देश्य, नागरिकों और आतंकवादियों के इस द्रोही पतन को देखते दिखाई पड़ता है की श्रीलंका की सरकार नरसंहार के कगार पर है. संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के अनुसार कई हजार लोगों को पहले ही मार दिया गया है. और हजारों अधिक गंभीर रूप से घायल हैं. जो कुछ प्रत्यक्षदर्शी रिपोर्ट बाहर गए हैं वह नरक से एक डरावनी हकीकत का वर्णन है. हम जो देख रहे हैं, या हमें कहना चाहिए की जो श्रीलंका में हो रहा है वह बहुत प्रभावी ढंग से सार्वजनिक जांच से छुपाया जा रहा, एक खुलेआम बेशर्म जातिवाद युद्ध है. जिस दंडभाव से श्रीलंकाई सरकार यह अपराध कर रही है ,ये गहरा दीर्घस्थायी जातिवाद पक्षपात है जो श्रीलंका के तमिलों को अधिकारहीन और अलग कर रहा है. यह नस्लवाद का एक लंबा इतिहास रहा है, सामाजिक भेदभाव, आर्थिक पाबन्दी , और अत्याचार का. अहिंसक शांतिपूर्ण विरोध के रूप में शुरू हुए दशकों लंबे चले गृहयुद्ध के क्रूर स्वभाव ने जिसमें अपनी जड़ें की है. यह मौन क्यों है? एक और मुलाकात में मंगला समरवीरा ने कहा की , असल में श्रीलंका में स्वतंत्र मीडिया गैर वर्तमान है. समरवीरामौत दस्तोंऔरसफेद वैन अपहरणके बारे में बातें बताते है की जिसकी वजह से समाज डर से ठिठुर गया है. कई पत्रकारों के सहित इनके खिलाफ विरोध की आवाज उठाने वालो का अपहरण किया गया है और हत्या की गयी है. अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार संघठन के पत्रकारों ने श्रीलंका की सरकार पर पत्रकारों को खामोश करने के लिए आतंकवाद विरोधी कानून का प्रयोग , गायब करने और हत्या करने के संयोजन का आरोप लगाया. वहाँ व्यथित करने वाला लेकिन अपुष्ट रिपोर्ट है कि भारत सरकार ने श्रीलंका की सरकार को मानवता के खिलाफ इन अपराधों में सामग्री और साजो समर्थन उपलब्ध कराया है. यदि यह सच है, यह घोर अन्याय है. अन्य देशों की सरकारें? पाकिस्तान? चीन? इस स्थिति में मदद या नुकसान क्या कर रहे हैं? तमिलनाडु में श्रीलंका में युद्ध की स्थिति मैं जुनून भड़क उठा है और १० से अधिक लोगों ने स्वयं बलि चढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया है. जनता के क्रोध और वेदना, अधिक तौर पर वास्तविक, कुछ स्पष्ट रूप से राजनीतिक छल कपट, एक चुनावी मुद्दा बन गया है. यह असाधारण है कि यह चिंता का विषय भारत के अन्य इलको मैं अभी तक क्यों प्रकाश मैं नहीं आया है . वहाँ क्यों मौन है? वहां कोईसफेद वैन अपहरणका मामला नहीं है - कम से कम नहीं इस मुद्दे पर तो नहीं. जो श्रीलंका में इस पैमाने में हो रहा है इसको देखते हुए यह चुप्पी अक्षम्य है. अतिरिक्त में यह भारतीय सरकार के लंबे लापरवाह दिखावटी इतिहास, “पहले एक ओर और फिर दूसरी ओर”, की वजह से हो रहा है. मेरे साथ हम में से कुछ और भी शामिल है, जो काफी पहले कुछ बोलने चाहिए थे, यदि ये उन्होंने नहीं किया है तो युद्ध के बारे में जानकारी की कमी की वजह से. तो, जबकि हत्या जारी है, दसियों हजारों लोगों को संकेंद्रित शिविरों में बंदी किया गया है. जबकि अधिक २००,००० भुखमरी का सामना कर रहे हैं और एक नरसंहार होने के लिए इंतजार कर रहे है, इस महान देश से पूर्ण मौन है. यह एक बड़ी मानवीय त्रासदी है. दुनिया को अब कदम उठाना होगा. इससे पहले कि बहुत देर हो चुकी हो

हम ब्लागर क्या कर सकते हैं ज़रूर बताएं -हमें कुछ तो करना ही चाहिए
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google trends-गूगल ट्रेंड्स -कौन कहाँ जा रहा है -कितना जा रहा है .

गूगल लेब्स का एक शानदार उत्पाद ' गूगल ट्रेंड्स ' के नाम से उपलब्ध है । इस उत्पाद से आप इन्टरनेट पर क्या कितना सर्च होता है इसे आंकडों मैं देख सकते हैं । इसके आलावा ये भी देख सकते हैं की कब क्या कितना सर्च हुआ है । गूगल ट्रेंड्स बहुत से मजेदार आंकडे दिखता है ।गूगल ट्रेंड रोजाना कितना क्या सर्च हो रहा है इस पर ध्यान रखता है और उसकी एक रपट बना कर दे देता है -- इस सेवा से हम कुछ मजेदार आंकडे तो जान ही सकते हैं, साथ ही कुछ विश्लेषण भी कर सकते हैं आइये इसे उदाहरणों से समझने की किशिश करें ::

कहा जाता है भारत त्योहारों का देश है , ये देखिये हम अपने त्योहारों को इन्टरनेट पर कितना ढूँढने की कोशिश करते हैं । हम दिवाली सिर्फ़ साल मैं एक बार ही ढूंढते हैं ये देखिये वो भी ठीक दिवाली पर

http://www.google.com/trends?q=diwali

देखा आपने दिवाली हमारे लिए कितनी ज़रूरी है
ज़रा होली को देखिये
http://www.google.com/trends?q=holi&ctab=0&geo=all&date=all&sort=0

होली भी वहि साल मैं एक बार देखी जाती है ॥

कुम्भ का मेला तो चार साल में ही लगता है

http://www.google.com/trends?q=kumbh


इस सेवा का एक बड़ा ही मजेदार पक्ष शब्दों की तुलना की सुविधा है : आइये इसे भी समझते हैं -मान लीजिये हमें जानना है की कोका कोला और पेप्सी मैं से ज्यादा कौनसी सर्च होती है तो cocacola,pepsi लिख कर सर्च करें
http://www.google.com/trends?q=coca-cola%2Cpepsi

मुझे तो इससे ये ही समझ आता है कि पेप्सी हमेशा से कोका कोला से ज्यादा पापुलर शब्द रहा है । वैसे मुझे तो कोकाकोला ही पसंद है ।

चलिए हिन्दी ब्लाग और अंग्रेजी ब्लॉग कि आपस मैं तुलना करते हैं कि कब क्या ज्यादा ढूँढा गया

दुनिया भर में

http://www.google.com/trends?q=hindi+blog%2Cenglish+blog&ctab=0&geo=all&date=all&sort=0

सिर्फ़ भारत में

http://www.google.com/trends?q=hindi+blog,english+blog&date=all&geo=ind&ctab=0&sort=0&sa=N

इसके आलावा भी आप कई चीजों को जैसे सोनिया,अडवाणी,पवार,मायावती और प्रकाश करात कि आपस में तुलना कर सकते हैं ।
ये देखिये
भारत भर में
http://www.google.co.in/trends?q=sonia+gandhi%2Clal+krishna+advani%2Csharad+pawar%2Cmayavati%2Cprakash+karat%2C

  1. सोनिया गाँधी 2004 में सरकार में आम चुनाव बाद हुए घटना क्रम से कितनी पब्लिसिटी पा चुकी हैं आप देखसकते हैं
  2. अपने हाई टेक अडवाणी जी काटो कुछ पता ही नही चलता
  3. शरद पवार सिर्फ़ 2006 के अंत में जब बीसीसीआई में आए तब ही चमके हैं
  4. मायावती का पता नही
  5. प्रकाश करात का पता नही
इस रिपोर्ट के मध्यम से हम ये भी देख सकते हैं के कौन कितना किस छेत्र से ढूँढा गया है
http://www.google.co.in/trends?q=sonia+gandhi%2Clal+krishna+advani%2Csharad+pawar%2Cmayavati%2Cprakash+karat%2C&ctab=0&geo=all&date=all&sort=4
यहाँ तक कि किसी देश के विशेष शहरों को भी देख सकते हैं
ये देखिये
http://www.google.co.in/trends?q=sonia+gandhi%2Clal+krishna+advani%2Csharad+pawar%2Cmayavati%2Cprakash+karat%2C&ctab=0&geo=all&date=all&sort=4

कार, ट्रक, बैक, स्कूटर या साइकल
http://www.google.com/trends?q=bike%2Ccar%2Ctruck%2Cscooter%2Ccycle

इसके आलावा भी कई प्रकार के अनालिसिस के लिए है गूगल ट्रेंड ।
अब ये ही देखिये कि इन्टरनेट पर वेब दुनिया ज्यादा प्रचलित है या दैनिक भास्कर
http://www.google.co.in/trends?q=web+dunia%2C+dainik+bhaskar&ctab=0&geo=all&date=all&sort=0

दैनिक भास्कर जहाँ 2004 से ज्यादा प्रचलित है ,वहीं वेब दुनिया 2007 के मध्य से कुछ उभरा है

ये देखिये ऑरकुट और फेसबुक कि तुलना
http://www.google.com/trends?q=orkut%2Cfacebook&ctab=0&geo=all&date=all&sort=0

उम्मीद है जानकारी आपको काम आएगी ।
वैसे ये सेवा मार्केटिंग, विज्ञापन आदि पर सर्च कर रहे लोगों को काफी जमेगी क्योंकि उन्हें कुछ न कुछ सर्वे करते रहना पड़ता है ।
आपने क्या नया ढूँढा ज़रूर बताईएगा

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इन्टरनेट स्पीड क्या ? क्यों ? कैसे ?
अब दूर बैठे यार की तकनीकी मुश्किल आसानी से हल करें
किसी भी साईट से लिंक करने से पहले एक बार ज़रूर देखें
गूगल कनेक्ट का सोशल बार लगायें
ब्लॉग में पेज नम्बर ,वाह क्या बात है !