श्रीलंका-तमिल संघर्ष पर एक नज़र " और हम "

श्रीलंका में क्या घट रहा है ,हम सभी शायद इससे अनभिग्य भी हों पर कुछ करते भी नही , स्वयं को जिम्मेदार समझने वाली हमारी मीडिया भी चुप्पी सी सधी हुई है , यहाँ मैं इन्टरनेट पर उपलब्ध दो लेख जो इस विषय को थोड़ा-थोड़ा समझाते हैं दे रहा हूँ साथ ही कुछ तस्वीरें हैं जो वहां हो रही विभत्सक हत्याओं पर ध्यान दिलाती हैं एक मित्र के मेल से ये तस्वीरें मिलीं , इतनी हिंसक हैं की ब्लॉग पर प्रकाशित नही कर सकता इसलिए इनकी सिर्फ़ लिंक देख रहा हूँ आप इसे क्लिक कर देख सकते हैं
फिलहाल श्रीलंका में स्थिति इतनी ख़राब है की उसे हिटलर की दोबारा वापसी कहना अतिशयोक्ति नही होगी , श्रीलंकन आर्मी आम तमिल निवासियों के बीच बम गिरा रही है ,हालत सचमुच बहुत ख़राब हैं । बच्चे गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों किसी को नही छोडा जा रहा । संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार 4000 से ज्यादा तमिलों को पिछले तीन महीनों में मारा है जिसमे 900 से ज्यादा तो बच्चे ही हैं । संयुक्त राष्ट्र ,अमेरिका और भारत जैसे देश क्या कर रहे हैं ,कब तक श्रीलंका इसे अपना अंदरूनी मामला कह कर और बचता फिरेगा ।

मेरी नाराज़गी हमारे नागरिकों से भी है , हम में से कुछ लोग इराक के राष्ट्रपति - सद्दाम हुसैन को फांसी देने का विरोध करते हैं और श्रीलंका में मारे जा रहे नागरिकों के लिए कुछ नही कर सकते ? जरुरत है हम अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर प्रेशर बनाएं , मानव अधिकारों की बात करने वाले आगे आयें , कोई सिर्फ़ आतंकवाद या अतिवाद से निपटने के लिए इतना बर्बर कैसे हो सकता है॥

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स्वीरें - श्रीलंका में नरसंहार
क्या
है श्रीलंका का तमिल संकट-साभार-शांत प्रकाश
कौन हैं श्रीलंका के तमिल?

श्रीलंका में देश के उत्तर और पूर्वी भाग में तमिल अल्पसंख्यक बरसों से रह रहे हैं. बाद में अंग्रेज़ों ने भी चाय और कॉफ़ी की खेती के लिए तमिलों को यहाँ बसाना शुरू किया.

विवाद की शुरूआत कैसे हुई?

श्रीलंका में सिंहला समुदाय के लोगों की आबादी सबसे अधिक है और ये लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं. ब्रिटिश राज के दौरान सिंहला लोगों में ये असंतोष घर करने लगा कि ब्रिटिश शासक देश में तमिलों को बढ़ावा दे रहे हैं जो मुख्य रूप से हिंदू हैं. बात बढ़ने लगी और 1948 में श्रीलंका की आज़ादी के बाद सिंहला राष्ट्रवाद ने ज़ोर पकड़ना
शुरू किया.

तमिल क्यों भड़के?

स्वतंत्रता के बाद सत्ता सिंहला समुदाय के हाथ आई और उसने सिंहला हितों को बढ़ावा देना शुरू किया. सिंहला भाषा को देश की राष्ट्रीय भाषा बनाया गया. नौकरियों में सबसे अच्छे पद सिंहला आबादी के लिए आरक्षित कर दिए गए. 1972 में श्रीलंका में बौद्ध धर्म को देश का प्राथमिक धर्म मान लिया गया. साथ ही विश्वविद्यालयों में तमिलों के लिए सीटों की संख्या भी घटा दी गई.

तमिलों ने क्या किया?

तमिल विद्रोहियों ने देश के उत्तरी हिस्से पर अपना प्रभाव बनाया हुआ है
सिंहला शासकों की नीति के कारण तमिलों में नाराज़गी बढ़ी और उन्होंने देश के उत्तर और पूर्वी हिस्सों में स्वायत्तता की माँग करनी शुरू कर दी. वे अपने अलग और स्वतंत्र देश की माँग करने लगे. आँदोलन ने हिंसक रूप लिया और तमिल क्षेत्रों में सिंहला सुरक्षाबलों और तमिलों के बीच झड़पें होने लगीं. 1976 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल इलम (एलटीटीई) अस्तित्व में आया.

सरकार का क्या रूख रहा?

1977 में जूनियस रिचर्ड जयवर्धने सत्ता में आए. उनकी सरकार ने तमिल क्षेत्रों में तमिल भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया. उन्होंने स्थानीय सरकारों में तमिलों को ज़्यादा अधिकार भी दिए. मगर हिंसा बढ़ती गई.

बात कैसे बिगड़ी?

1983 में तमिल विद्रोही संगठन, एलटीटीई के अलगाववादियों ने सेना के एक गश्ती दल पर हमला कर 13 सैनिकों को मार डाला. इसके बाद सिंहला लोग उग्र हो उठे और उन्होंने दो दिनों तक जमकर हमले किए. हज़ारों तमिल मारे गए और संपत्ति की बड़े पैमाने पर लूट हुई. यहाँ से बात बिगड़ गई. तमिल उत्तर की ओर तमिल प्रभाव वाले इलाक़ों में जाने लगे और सिंहला लोग जाफ़ना के तमिल क्षेत्रों से बाहर निकलने लगे.

भारत ने कब दखल दिया?

राष्ट्रपति प्रेमदासा की 1993 में हत्या हुई
1985 तक श्रीलंका में तो 50,000 शरणार्थी थे ही, वहाँ से लगभग एक लाख तमिल शरणार्थी भारत भी गए. 1987 में दोनों देशों में समझौता हुआ कि श्रीलंका सरकार पीछे हटेगी और देश के उत्तरी इलाकों में भारतीय शांति सेना क़ानून और व्यवस्था पर नज़र रखेगी. इस समझौते का श्रीलंका की सिंहला और मुस्लिम आबादी ने जमकर विरोध किया जिसके बाद दंगे भी हुए.

शांतिसेना कैसे लौटी?
1989 में श्रीलंका के दक्षिणी हिस्सों में सिंहला आबादी ने विद्रोह कर दिया और वहाँ के मार्क्सवादी गुट जेवीपी ने भी हड़ताल और हिंसा तेज़ कर दी. सरकार ने जेवीपी से बातचीत की मगर वार्ता नाक़ाम रहने के बाद सरकार ने जेवीपी के लोगों को मरवाना शुरू किया. हज़ारों लोग मारे गए. भारतीय शांति सेना 1990 में वापस गई.

हिंसा कैसे बढ़ी?

भारतीय शांति सेना जब श्रीलंका में थी तो एलटीटीई संघर्षविराम के लिए तैयार हो गई थी मगर उसके एक गुट ने एकरफ़ा तौर पर स्वतंत्र राष्ट्र का एलान कर दिया जिसके बाद हिंसा भड़क उठी.शांति सेना के वापस आने के बाद 1991 में राजीव गांधी की हत्या हुई. दो साल बाद 1993 में श्रीलंका के राष्ट्रपति प्रेमदासा को भी मार डाला गया.

संघर्षविराम और शांति के प्रयासों का क्या हुआ?

कुमारतुंगा पर एक चुनावी रैली में बम हमला हुआ जिसमें उनकी एक आँख चली गई
चंद्रिका कुमारतुंगा 1994 में देश की प्रधानमंत्री और 1995 में देश की राष्ट्रपति बनीं. कुमारतुंगा ने तमिलों के साथ शांतिवार्ता शुरू की. मगर सफलता नहीं मिली. 1995 में एलटीटीई संघर्षविराम से पीछे हटा और इसके बाद दोनों पक्षों के बीच हिंसा का नया दौर शुरू हुआ. 1999 में एक सभा में बम हमला कर कुमारतुंगा को मारने का भी प्रयास किया गया.कुमारतुंगा फिर राष्ट्रपति चुनी गईं.

नॉर्वे की क्या भूमिका है?

नॉर्वे सन् 2000 में मध्यस्थ की भूमिका निभाने आया. मगर बात बनी 2002 में जाकर जब तमिल विद्रोहियों और सरकार के बीच एक स्थायी संघर्षविराम पर सहमति हुई. इसी वर्ष सरकार ने एलटीटीई पर लगा प्रतिबंध भी हटा लिया जो कि तमिलों की एक प्रमुख माँग थी. इसी वर्ष थाईलैंड में बातचीत का पहला दौर शुरू हुआ. तब से मार्च 2003 तक बातचीत के छह दौर हो चुके हैं. बातचीत की प्रक्रिया चल रही है और तमिल विद्रोही अलग राज्य की अपनी माँग छोड़कर और क्षेत्रीय स्वायत्तता पर सहमत होने के लिए तैयार हो गए हैं.



श्रीलंका में युद्ध का मूक आतंक- साभार-NVO

श्रीलंका में जो आतंक बढ़ रहा है वह आस पास की चुप्पी की वजह से संभव हुआ है. इसमें भारतीय मुख्य मीडिया में लगभग कोई रिपोर्ट नहीं की गई है - या वास्तव में अंतरराष्ट्रीय प्रेस में भी - इस के बारे में की वहाँ क्या हो रहा है. यह क्यों हो रहा है? ये गंभीर चिंता का विषय है. जो थोडी बहुत जानकारी निस्पंदित हुई है इससे पता चलता है की हालांकि श्रीलंकाई सरकारआतंकवाद पर युद्धका प्रचार कर रही है लेकिन उसका बेईमान उपयोग हो रहा है देश में लोकतंत्र को विघटित करने के लिए, और तमिल लोगों के खिलाफ अकथ्य अपराध को अंजाम देने के लिए. इस सिद्धांत पर कार्यवाही हो रही है कि हर एक तमिल, जब तक वह अन्यथा साबित कर सके, आतंकवादी है. असैनिक क्षेत्रों, अस्पतालों और आश्रयों में बमबारी की जा रही है और इन्हें एक युद्ध क्षेत्र में बदल दिया गया है. विश्वसनीय अनुमान है की 200,000 से ज्यादा की तादात में नागरिक फंसे हुए हैं. श्रीलंका की सेना, टैंकों और लड़ाकू विमानों से सज्ज आगे बढ़ रही है. इस बीच, वहाँ आधिकारिक रिपोर्ट है कि विस्थापितों को आश्रय देने के लिए वावुनिया और मन्नार जिलों में कईकल्याण गावंबनाये गए है. डेली टेलीग्राफ में एक रिपोर्ट (फ़रवरी 14, 2009) के अनुसार, “ये गावं सभी लड़ाकू और भगेडू नागरिकों के लिए अनिवार्य अवलंबन केंद्र है”. क्या यह सकेंद्रित नजरबंद क्षेत्र के लिए अच्छे शब्दों का प्रयोग है? श्रीलंका के पूर्व विदेश मंत्री, मंगला समरवीरा ने डेली टेलीग्राफ से कहा है की: ”कुछ महीने पहले सरकार ने इस आधार पर कोलंबो में सभी तमिलों का पंजीकरण शुरू किया कि वे देश की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकते हें, लेकिन इसका इस्तेमाल 1930 के दशक में नाजियों की तरह अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है. वे मूलतः पूरी असैनिक तमिल आबादी को संभवित आतंकवादियों के रूप में पेश करना चाहते हें. तमिल व्याध्रों (एल टी टी ) को समाप्त करने के अपने घोषित उद्देश्य, नागरिकों और आतंकवादियों के इस द्रोही पतन को देखते दिखाई पड़ता है की श्रीलंका की सरकार नरसंहार के कगार पर है. संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के अनुसार कई हजार लोगों को पहले ही मार दिया गया है. और हजारों अधिक गंभीर रूप से घायल हैं. जो कुछ प्रत्यक्षदर्शी रिपोर्ट बाहर गए हैं वह नरक से एक डरावनी हकीकत का वर्णन है. हम जो देख रहे हैं, या हमें कहना चाहिए की जो श्रीलंका में हो रहा है वह बहुत प्रभावी ढंग से सार्वजनिक जांच से छुपाया जा रहा, एक खुलेआम बेशर्म जातिवाद युद्ध है. जिस दंडभाव से श्रीलंकाई सरकार यह अपराध कर रही है ,ये गहरा दीर्घस्थायी जातिवाद पक्षपात है जो श्रीलंका के तमिलों को अधिकारहीन और अलग कर रहा है. यह नस्लवाद का एक लंबा इतिहास रहा है, सामाजिक भेदभाव, आर्थिक पाबन्दी , और अत्याचार का. अहिंसक शांतिपूर्ण विरोध के रूप में शुरू हुए दशकों लंबे चले गृहयुद्ध के क्रूर स्वभाव ने जिसमें अपनी जड़ें की है. यह मौन क्यों है? एक और मुलाकात में मंगला समरवीरा ने कहा की , असल में श्रीलंका में स्वतंत्र मीडिया गैर वर्तमान है. समरवीरामौत दस्तोंऔरसफेद वैन अपहरणके बारे में बातें बताते है की जिसकी वजह से समाज डर से ठिठुर गया है. कई पत्रकारों के सहित इनके खिलाफ विरोध की आवाज उठाने वालो का अपहरण किया गया है और हत्या की गयी है. अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार संघठन के पत्रकारों ने श्रीलंका की सरकार पर पत्रकारों को खामोश करने के लिए आतंकवाद विरोधी कानून का प्रयोग , गायब करने और हत्या करने के संयोजन का आरोप लगाया. वहाँ व्यथित करने वाला लेकिन अपुष्ट रिपोर्ट है कि भारत सरकार ने श्रीलंका की सरकार को मानवता के खिलाफ इन अपराधों में सामग्री और साजो समर्थन उपलब्ध कराया है. यदि यह सच है, यह घोर अन्याय है. अन्य देशों की सरकारें? पाकिस्तान? चीन? इस स्थिति में मदद या नुकसान क्या कर रहे हैं? तमिलनाडु में श्रीलंका में युद्ध की स्थिति मैं जुनून भड़क उठा है और १० से अधिक लोगों ने स्वयं बलि चढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया है. जनता के क्रोध और वेदना, अधिक तौर पर वास्तविक, कुछ स्पष्ट रूप से राजनीतिक छल कपट, एक चुनावी मुद्दा बन गया है. यह असाधारण है कि यह चिंता का विषय भारत के अन्य इलको मैं अभी तक क्यों प्रकाश मैं नहीं आया है . वहाँ क्यों मौन है? वहां कोईसफेद वैन अपहरणका मामला नहीं है - कम से कम नहीं इस मुद्दे पर तो नहीं. जो श्रीलंका में इस पैमाने में हो रहा है इसको देखते हुए यह चुप्पी अक्षम्य है. अतिरिक्त में यह भारतीय सरकार के लंबे लापरवाह दिखावटी इतिहास, “पहले एक ओर और फिर दूसरी ओर”, की वजह से हो रहा है. मेरे साथ हम में से कुछ और भी शामिल है, जो काफी पहले कुछ बोलने चाहिए थे, यदि ये उन्होंने नहीं किया है तो युद्ध के बारे में जानकारी की कमी की वजह से. तो, जबकि हत्या जारी है, दसियों हजारों लोगों को संकेंद्रित शिविरों में बंदी किया गया है. जबकि अधिक २००,००० भुखमरी का सामना कर रहे हैं और एक नरसंहार होने के लिए इंतजार कर रहे है, इस महान देश से पूर्ण मौन है. यह एक बड़ी मानवीय त्रासदी है. दुनिया को अब कदम उठाना होगा. इससे पहले कि बहुत देर हो चुकी हो

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3 comments:

  1. आप ने इन तथ्यों को सामने ला कर बहुत नेक काम किया है। कुछ पाठकों को तो सोचने का अवसर मिलेगा। फरवरी-मार्च में मद्रास उच्चनयायालय में काम ठप्प रहा उस के पीछे भी मूल कारण यही था कि वहाँ के वकीलों ने श्रीलंकाई तमिलों के नरसंहार की और भारत सरकार का ध्यान आकृष्ठ करना चाहा था।

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  2. Thanks for your comment on my blog.

    Your blog is very informative. The title-image is good!

    God bless
    RC

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  3. समग्र जानकारी के लिए धन्यवाद.

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