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होली आई रे कन्हाई ((रंग बरसे आप झूमे श्रृंखला भाग ३)

तो आज हम सफर के तीसरे मुकाम पर जा पहुंचे हैं,भोले के अट्ठारह डिब्बों मैं पहुंचे हैं फिल्मो मैं होली मनाने। शब्दों की तरुनाई सबसे बड़ी ठंडक देती है कबीर दास जी ने कहा भी है की
ऐसी वाणी बोलिए,मन का आपा खोये ,औरन को सीतल करे,आपहु सीतल होए।
तो चलिए फिर एक बार रंगीन हो जायें
होली आई रे कन्हाई रंग छलके , सुना दे जरा बांसुरी...। फिल्म मदर इंडिया में शकील बदायुनी का लिखा और नौशाद के संगीत से सजा यह गाना अनायास ही मन में उमड़ती हुई सैकड़ों उमंगों को जगा जाता है और हम झूमते हुए निकल जाते हैं उल्लास व अल्हड़ देशों की यात्रा पर। सिनेमा हमारे समाज, परिवेश, देश और सभ्यता का दर्पण होता है। भारतीय फिल्मों में होली के रंगों की छाप हमेशा से ही दिखाई देती है और एक चिंतनीय तथ्य यह भी है कि आज जब सिनेमा तकनीकी सफलता के युग में जी रहा है वहीं फिल्मों से होली और उसके रंग बिल्कुल जुदा हो चुके हैं। पुरानी फिल्मों में होली के लिए बाकायदा पूरा एक गीत तैयार किया जाता था। आजकल होली के रंग एक शॉट तक सिमट गए हैं। फिल्म रब ने बना दी जोड़ी में होली का सिर्फ एक शॉट ही है। फिल्म शोले में गब्बर का डायलॉग `होली कब है` आज तक लोगों की जुबान पर है साथ ही प्रसिद्ध गाना `होली के दिन दिल खिल जाते हैं` सुनते ही पैर थिरकने पर मजबूर हो जाते हैं। पराया धन फिल्म का गाना ` होली रे होली रंगो की डोली` अपने आप में अद्भुत है। फिल्म सिलसिला का `रंग बरसे`, बागबान का `होली खेले रघुवीरा` सहित कई गाने हैं जो आपको होली उत्सव के आनंद में आनंदित कर देते हैं। शायद वो फिल्मकार, गीतकार और कलाकार सभी उत्सवों में जीने की इच्छा भी रखते थे इसलिए इतने उत्सव गीत लिखे जा सकें हैं।
आजकल रंगो से ज्यादातर फिल्मकार परहेज ही करते हैं। चार साल पहले आई फिल्म वक्त में होली के ऊपर तथाकथित संगीतकार अनु मलिक ने भी गाना तैयार किया था- `लेट्स प्ले होली` जो उनकी तरह ही तथाकथित होली गीत था। खैर हमारे पूर्वज सिनेमाकारों ने हमें होली के उत्सवों में झूमने के लिए इतना कुछ दिया है कि इन नक्कारों की जरूरत नहीं है। पेश-ए-खिदमत है फिल्म मदर इंडिया का नौशाद साहब द्वारा संगीतबद्ध किया यह गीत-



बनारस की होली (रंग बरसे आप झूमे श्रृंखला भाग २ )

तो आइये अपने सफर के दूसरे पड़ाव पर चलते हैं पड़ाव है बनारस,भगवन भोले नाथ की नगरी में . मैं यकीं दिलाता हूँ की ये आनंद अभी और बढता ही जाएगा मील दर मील ,कोस दर कोस तो चलिए बनारस होली मानाने .
वैसे तो बनारस की बात ही निराली है, चाहे बनारसी पान हो, बनारसी साड़ी हो या वहां की गलियां, मंदिर, लंगड़ाआम, गंगा घाट या बनारसी चाई (ठग)- यह सभी बनारस को अनूठेपन से भरने का काम करते हैं। इन सब के बीच काशी की होली का अपना अलग ही महत्व है। फागुन के मौसम का सुहानापन संपूर्ण बनारस को जीवंतता से भर देता है। इस शहर की फिजाओं में रंगो का अहसास बहुत आसानी से किया जा सकता है। वैसे भी रंगों में अपना रंग नहीं होता परंतु काशी के वातावरण में संपूर्ण शहर रंगमय हो जाता है। बाबा विश्वनाथ की इस नगरी में आप फागुनी बयार को देखकर भारतीय संस्कृति का दीदार कर सकते हैं। इस शहर की संकरी गलियों से होली के गीतों की सुरीली धुन अथवा चौराहों पर के होली मिलन समारोह अपने आप में बेजोड़ हैं। बनारस को फागुन में महादेव का भरपूर आशीर्वाद मिलने से गंगा के घाटों पर प्रेम का नशा चढ़ सा जाता है। काशीवासियों के साथ-साथ भारत केअन्य हिस्सों से आये लोगों के अलावा दूर देशों के सेलानियों से काशी संजीदगी से भर उठता है। खास तौर पर होली के दिन काशी की मटका फोड़ होली और संपूर्ण शहर में गाए जाने वाले होली के लोकगीत शहर को उर्जामय और प्रेम से सराबोर कर देते हैं। काशी की विद्वत परंपरा के साथ-साथ हम फाल्गुन में गंगा की लहरों में एक उमंग का दीदार कर सकते हैं। रंगो के मौसम में आप गंगा तट पर खड़े होकर सुबह--बनारस को अपनी आंखों में संजो कर रख सकते हैं। काशी में आप इस मौसम में पाएंगे कि संपूर्ण कायनात आपका स्वागत कर रही है। गंगा की अविरल धारा में आप अतीत की यादों के झरोखे में आसानी से गोते लगा सकते हैं। फाग के इस त्यौहार में बनारस का रंगनिरंतर प्रगाढ़ होता जाता है। बनारस की हवाओं में आप एक सिहरन महसूस कर सकते हैं, जो शहर की विविधताओं का अहसास कराती हैं। इस मौसम में शहर में मिठाई की दुकानों पर दही, लस्सी, लोंगलता और गुजिया की भरमार से वास्ता पड़ने पर इस शहर का स्वाद भी अंतरंग में गहरे उतरता है। विश्व की प्राचीन नगरी को सदैव दैवीय पुण्य मिलता रहा है। इसी कारण इस नगरी में हम रंगों में डूबकर होली के रंगों से खेल पाते हैं . बाबा भोले की नगरी में गंगा-जमुना तहजीब का नजारा बरबस ही दिखने लगता है। मालवीय जी के कर्म क्षेत्र से रौशन यह शहर लोगों के दिलों को एक रंग में रंग देता है, जिसको आसानी से देखा जा सकता है।
वर्तमान दौर में तमाम प्रगतियों के बावजूद लोगों के दिलों की दूरियां बढ़ती जा रही है। ऐसे में अगर शिव के त्रिशूल पर बसे नगर की होली से हम शहर की होली से हम दिलेरी और प्रेम को आत्मसात कर सकें तो शायद हमारी होली भी सही अर्थों में नायाब बन जाए।
कूचा--यार ऐन काशी है।
जोगिए दिल वहां का वासी है ।
वली दकनी जैसे मशहूर शायर की इन पंक्तियों से हम देश की संस्कृति और परंपरा के प्रति त्याग और मोह पैदा कर सकें तो सचमुच मानवता से भरे इस पर्व का रंग सब पर चढ़ेगा और हम प्रेम की अविरल गंगा कहीं भी बहा सकेंगे।
बम बम बोल रहा है कशी तो आप भी बोलिए ब बम बम्ब बम ब बम बम्ब बम बम बम बम और झूम उठिए भोले बाबा के इस गीत के साथ ।
जो बोले भोलेनाथ जय जय विश्वनाथ
रविशंकर सिंह


रंग बरसे ...आप झूमें श्रंखला भाग १

होली रंगो का त्यौहार है। रंग जीवन के विविध रुपों का प्रतीक माने जाते हैं। खुशी और उल्लास के प्रतीक इस पर्व पर हम भी आपके साथ शरीक होना चाहते हैं। रंगों के इस उत्सव को बहुरंगी बनाने के लिए हम एक नई श्रृंखला शुरु कर रहे हैं। इसमें हम कलम के साथ संगीत की भी तान छेड़ेंगे। उम्मीद है हमारी इस महफिल में आप बोर नहीं होंगे।
आज पहला दिन है और शुरुआत अगर राधे के नाम से हो तो आगे आते आते श्री कृष्ण का आना तय माना जा सकता है , अपनी नित्य निकुंज बिहारणी राधा मैया बरसाने वाली है और फिर बरसाने की होली तो वैसे ही प्रसिद्ध है ,आपने कभी बरसाने की होली देखी हो तो आप जानते ही होंगे , जब नंदग्राम के गोपी राधे के गाँव बरसाने जाते हैं और वहां की गोपियाँ उनका स्वागत लट्ठ से करती हैं ,आहा!! फिर क्या है आप बजने दीजिये सुर और ताल और झूमिए श्रीराधे जी का नाम लेकर ,अगले दिन फिर बारी पुरुषों की होती है और होती है रंग और गुलालों की होली . इसी बीच सुंदर संगीत मन को बार बार छू जाता है हमारी कोशिश है ब्रज से दूर बैठे उन लाखों लोगों को श्री राधे रानी से और उनकी होली से जोड़ने की ,आगे हम और भी प्रस्तुतियां देंगे जिसमे कोशिश होगी देशभर की होली के रंग में रंगने की और कुछ मधुर मधुर संगीत प्रेषित करने की तो फिर क्या है श्री राधे का नाम लीजिये
नीचे श्री राधे का एक मधुर गीत है सुनी और कही श्री राधा राधा .....
होली पर यदि आप भी कुछ लिख कर देना चाहें और कुछ गाने सुझाने चाहें तो ज़रूर बताएं .
श्री राधा राधा .....


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यदि फायर फॉक्स पर गाना सुनाई नही दे रहा हो तो इन्टरनेट एक्स्प्लोरर पर देखें

संसद की दीवारों से

कहाँ हो सर एडविन लुटियन्स तुम ही थे जिसने हमें ये आकर दिया था क्या तुम जानते थे की तुम्हारी इस आकृति को इतना सम्नानीय स्थान और नाम मिलेगा तुम देख रहे हो की तुम्हारा सृजन आज फिर से सृजित होने का लालायित है पहले तो हम दीवारें कुछ बातों पर ठहाके भी लगा लेती थी ,एक दूसरे की चुटकी भी ले लेती थीं ,मगर जब से लोकतंत्र की पाठशाला मैं प्रवेश लिया हम भी मर्यादित आचरण करने लगी ,इसका ये मतलब नही की हम ठहाके नही लगा सकते थे ,या चुटकी नही ले सकते थे अब जनता के प्रतिनिधि हमारी गोद मैं बैठ कर भारत निर्माण की इबारत लिखने लगे
शुरूआती दौर मैं हमने आज़ादी के उत्साह और सृजन की इक्षा शक्ति से प्रफुल्लित स्वरों को सुना और मनो ऐसा महसूस हो रहा था की हम द्वापर की उस पत्थर रूपी अहिल्या से ज्यादा भाग्यशाली तो नही ,जो की राम की चरण राज लगने पर पुनः नारी बनी ,पर हम कठोर दीवारें उन महान स्वरों की अनुगूंज की टकराहट से अपने आप को भाग्यशाली महसूस करने लगीं थी

समय बढता गया और और स्वरों मैं भी बदलाव आता गया कभी किसानो की दुर्दशा पर स्वर उठे तो कभी कभी उद्योगों के विकास के लिए थपथपाती मेजों ने गला फाड़कर आवाज़ को तीखा किया बरस गुज़रे की स्वरों मैं बदलाव आया ,भाषा के नाम पर ,छेत्र के नाम पर तो हम दीवारों को लगा की देर रात तक दोने की वजह से हम पूरे होश मैं नही है मगर उन स्वरों की निरंतरता ने हमें स्तब्ध कर दिया पर उन दिनों कुछ जन प्रतिनिधियों की आवाज़ हमारे कलेजे को ठंडक देती थीं जिन्हें पक्ष और विपक्ष ध्यान से सुनते थे ,ऐसे प्रतिनिधि 90 के दशक तक आते आते काफी कम हुए उसके बाद साफ़ स्वर सुने आना बंद हो गए ,सिर्फ़ चीखें सुने देती थीं और उन चीखों मैं जनता का दर्द नही आपरी स्वार्थ ज्यादा प्रबल थे बहस शुरू नही होती की अचानक सदस्य सदन से वाकआउट कर के चले जाते ,खैर हम दीवारों को तो इससे राहत होती है,पर क्या ये बात देश को राहत दे सकती है नही चीखों के साथ कभी लत घूँसे चले ,दस्तावेज़ छींटे हुए प्रतिनिधि ,और सुना था एक दिन तो उन स्वरों और चीखों के लिए जनता से पैसे लिए गए हद तो तब हो गई जब हमारे आँगन मैं कुछ सदस्य पैसों से भरे बैग लेकर गए क्या यहाँ संविधान की आत्मा नीलम हो रही थी ,क्या वे गाँधी को दोबारा मार रहे थे या फिर उन लोगों को तमाचा मर रहे थे जिन्होंने उन्हें चुना है

आजकल मैं लोकसभा अधयाखा ने इन्ही के बारे मैं कहा है की "भगवन करे आप लोग हार जायें " अध्यक्ष महोदय की इस बात पर हम दीवारों ने भी मर्यद्दा तोडी और ठहाके लगते हुए कहा की नक्कारों के बीच टूटी का कोई असर नही होता है और यही हुआ अध्यक्ष जी के इस अमृत वचन को मीडियाई लोगों ने शाप बता दिया और कुछ लोगों ने पान ठेलों ,चाय की दुकानों पर 10 मिनट की चर्चा मैं इस विषय को क्लोस कर दिया मगर हम दीवारों को पता चला है की अध्यक्ष जी की इस बात के बाद हमारे चरों स्तम्भ की मौलिक आत्मा गहरे सदमे मैं है और बाहर आने से इनकार कर रही है

क्या वेटिंग क्लीअर होगी ?



"नेट प्रेमी " राजनेता ' पी .एम . इन वेटिंग ' याने की लाल कृष्ण अडवाणी का प्रचार अभियान हाई टेक तरीके से शुरू हो चुका है । दो दिन पहले ख़बरों से पता चला की पार्टी लगभग 2 हज़ार वेबसाइटों के मध्यम से अभियान को मजबूती प्रदान करेगी । जिसमे दुनिया भर की लोकप्रिय वेबसाइट शामिल की जाएँगी । प्रचार का काम गूगल एडसेंस को दिया गया है । आपको यह याद दिला दूँ कि भाजपा के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन ने भी देश के लोगों को शाइनिंग इंडिया की पञ्च लाइन थमाई थी , हुआ क्या बेचारे अटल जी की गाड़ी को ब्रेक लग गया। अब अडवाणी की बारी है । गौर तलब है की पिछले साल इसी नेता ने अपनी वेबसाइट शुरू की और कुछ ही दिन बाद इन्तेराक्टिवे ब्लॉग भी शुरू कर दिया । यहाँ दिलचस्प बात यह है की दुनिया के सबसे बड़े रेल तंत्र में जहाँ ज्यादातर लोगों की वेटिंग क्लीअर हो जाती है वहां अडवाणी की वेटिंग क्लेअर होगी या नही । वक्त आने दो सब पता चल जाएगा ।


कुछ रिश्ते टाई की तरह होते हैं

कुछ रिश्ते टाई की तरह होते हैं अक्सर इन रिश्तों के निशान टाई पर न होकर शर्ट पर होते हैं । टाई जब सही बंधी हो समझो की बहुत ग़लत हो रहा है ,जैसे ही जश्न ख़त्म और आदमी अकेला होता है वह अपनी टाई निकलता है तो पहले उसके आकार को परिवर्तित कर उसे थोड़ा व्यापक कर देता है फ़िर तेज़ी से खींचता है और तुंरत बन्धनों से मुक्त टाई सीधी और सपाट हो जाती है ,उस पर न पुराने वक्त की सिलवटें हैं न चहरे पर कुछ खोने का गम , सब कुछ सामान्य सा दिखाई देता है । मगर कमीज़ के कालर पर निशान अक्सर छुट जाते हैं ,कुछ छोटे तो कुछ लंबे जैसे किसी ने पीठ पर हंटर चलायें हों ,लेकिन जब टाई सही नही बंधी हो तो अक्सर आसानी से नही छूटती और इसी कशमकश में वह गले का स्पर्श भी कर लेती है और जब खुलती है तो उसके सीने पर फ्रेंडशिप बैंड बंधे होते हैं ,जो कुछ पागलपन भरे रिश्तों की शुरुआत लिए होते हैं ।अब सवाल है की क्या टाई कभी इतनी सख्त हो सकती है की वह किसी की जान ले सके ,अभी तक ऐसे हादसों की ख़बर अखबारों में छपी नही ,चॅनल वालों को मालूम नही । आस पड़ोस की महिलाओं और बुजुर्गों को ये टाई का किस्सा समझ नही आया । वाकई क्या हम इतने आधुनिक हों गए है की परम्पराओं मैं दम घुटने लगे । मगर नही कल ही मैंने शव यात्रा में लाश को खामोश और खली हाथ जाते हुए देखा है ।

पुरानी कविताएँ जो की हेडर पर रह चुकी हैं

यह पोस्ट नियमित रूप से अपडेट होगी उन कविताओं से जो की ऊपर हेडर पर लगी हों

आज की कविता- साथी, सब कुछ सहना होगा!-हरिवंश राय बच्चन

मानव पर जगती का शासन,
जगती पर संसृति का बंधन,
संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधों में रहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!

हम क्या हैं जगती के सर में!
जगती क्या, संसृति सागर में!
एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!

आओ, अपनी लघुता जानें,
अपनी निर्बलता पहचानें,
जैसे जग रहता आया है उसी तरह से रहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!





आज की कविता- मुझे पुकार लो-हरिवंश राय बच्चन

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!

ज़मीन है न बोलती न आसमान बोलता,
जहान देखकर मुझे नहीं जबान खोलता,
नहीं जगह कहीं जहाँ न अजनबी गिना गया,
कहाँ-कहाँ न फिर चुका दिमाग-दिल टटोलता,
कहाँ मनुष्य है कि जो उमीद छोड़कर जिया,
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!

तिमिर-समुद्र कर सकी न पार नेत्र की तरी,
विनष्ट स्वप्न से लदी, विषाद याद से भरी,
न कूल भूमि का मिला, न कोर भोर की मिली,
न कट सकी, न घट सकी विरह-घिरी विभावरी,
कहाँ मनुष्य है जिसे कमी खली न प्यार की,
इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे दुलार लो!

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!

उजाड़ से लगा चुका उमीद मैं बहार की,
निदघ से उमीद की बसंत के बयार की,
मरुस्थली मरीचिका सुधामयी मुझे लगी,
अंगार से लगा चुका उमीद मै तुषार की,
कहाँ मनुष्य है जिसे न भूल शूल-सी गड़ी
इसीलिए खड़ा रहा कि भूल तुम सुधार लो!

इसीलिए खड़ा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
पुकार कर दुलार लो, दुलार कर सुधार लो!





आज की कविता-गुलाबी चूड़ियाँ-नागार्जुन

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी
बस की रफ़्तार के मुताबिक
हिलती रहती हैं…
झुककर मैंने पूछ लिया
खा गया मानो झटका
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा
आहिस्ते से बोला: हाँ सा’ब
लाख कहता हूँ नहीं मानती मुनिया
टाँगे हुए है कई दिनों से
अपनी अमानत
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने
मैं भी सोचता हूँ
क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ
किस ज़ुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से?
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा
और मैंने एक नज़र उसे देखा
छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में
तरलता हावी थी सीधे-साधे प्रश्न पर
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर
और मैंने झुककर कहा -
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे
वर्ना किसे नहीं भाएँगी?
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!


आज की कविता-रिश्तों के पिंजरे-डॉ। जगतार

वह मेरे जिस्म के इस पार झांकी उस पार झांकी और कहने लगी, ‘तुम मेरे बाप जैसे भी नहीं जो दारू की नदी तैर कर डुबो देता है उदासी में घर सारा। तुम मेरे पति जैसे भी नहीं जो मेरी रूह तक पहुंचने से पहले ही बदन में तैर कर नींद में डूब जाता है। तुम मेरे भाई जैसे भी नहीं जो चाहता है कि मैं बेरंग जीवन ही गुज़ारूं मगर फिर भी तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो। मगर क्या नाम रखूं इस रिश्ते का मैंने जो रिश्ते जिए, पिंजरे हैं या कब्रें हैं या खंडहर हैं।

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देल्ली 6

जब किसी बडे बॉलीवुड स्टार की फिल्म प्रर्दशन के लिए तैयार होती है तो उसके हाथ पांव फुलने लगती है। कुछ ऐसा हाल है आजकल छोटे सरकार अभिषेक बच्चन का ........... जैसे-जैसे ‘देहली-6’ की रिलीज की तारीख जितनी नजदीक आने लगी है वे अपने को कुछ ज्यादा ही नर्वस महूसस कर रहे।
राकेश ॐ प्रकाश मेहरा की रंग दे बसंती के बाद इस फ़िल्म से बहुत उम्मीदें जताई जा रही है ।संगीत आर रहमान का है और गीत प्रसून जोशी की ताजगी लिए हुए हैं ,उनका मसक्काली मताक्काली वैसे भी धूम मचा रहा है,इस जगाने के बारे मैं एक फ़िल्म समीक्षक ने सही ही लिखा है की इस से कबूतरों की एक बार फिर वापसी हुई है ,देहली-6 में अभिषेक बच्चन एक अमेरिकी नौजावान रोशन की भुमिका निभा रहे है जो
भारत पहली बार आया है। sonam-abhi-in-delli6-wallpaper
उसके यहां आने का कारण है उसकी दादी, जो बहुत बीमार है और अपना आखिर समय भारत में बिताना चाहती है जहॉ वे पैदा हुई है। रोशन जहां पाश्चात्य जीवनशैली का आदी है....... उसे भारतीय संस्कृति, विश्वास और धर्म के बारे में ज्यादा पता नही हैं। यहां आकर उसे पता चलता है कि भारत के खाने और सुगंध की खासयित है।
भारत आने से पहले वह सोचता है कि क्या उसकी दादी अमेरिका छोड़कर गलती तो नही कर रही है, लेकिन उसे यहॉ कर महसूस होता है कि वह गलत था।
वही सोनम कपूर ने देहली-6 में बिट्टू का किरदार निभा रही है जो अपनी पहचान की तलाश में भटक रही हैं और परंपरा के नाम पर उन बेडियों को तोडना चाहती है...... जिन्होंने उसे जकड़ रख होता है। इसी बीच बिट्टू की मुलाकात होती है रोशन से........ वह रोशन को चाहनी लगती है। रोशन की मुलाकात होती है गोबर यानि अतुल कुलकर्णी, जलेबी यानि दिव्या दत्त और नवाब साहब अली यानि ऋषि कपूर से, जो उसे समझाते है कि वो अपने प्यार बिट्टू को छोड़कर न जाए.......... क्योंकि जिदंगी में प्यार बार-बार नही मिलता है।
फिल्म में दिल्ली के उस हिस्से को दिखाया गया है जिसका पिनकोड 110006। इसलिए फिल्म की कहानी नाम दिया गया है ‘देहली-6’। यह शहर इस फिल्म में एक किरदार की तरह मौजूद है।
क्या ये फिल्म अभिषेक और सोनम के कैरियर में एक वरदान साबित होगी ये तो आना वाला समय ही बताएगा।
कास्ट इस प्रकार है :-
अभिषेक बच्चन...रोशन
शीबा चड्ढा... निर्मला ( लोव्लीन मिश्रा)
दीपक दोब्रियाल ... मांडू
दिव्या दुत्ता ... जलेबी
ऋषि कपूर
सोनम कपूर ...बिट्टू
अतुल कुलकर्णी ... गोबर
पवन मल्होत्रा जय गोपाल
सुप्रिया पाठक...विमला
ॐ पुरी ... मदनगोपाल
वहीदा रहमान ... दादी ।
प्रस्तुति सहयोग
उदित गोयल, दिल्ली।