जोर्ज फोर्म्बी (George Formby)

जोर्ज फोर्म्बी (George Formby)(26 May 1904 – 6 March 1961) को देखना और सुनना एक सुखद अनुभूति और बेहतरीन अनुभव है, और उनके बारे में जानना और भी अच्छा है, इंग्लॅण्ड में पैदा हुए है इस कलाकार को अक्सर बेन्जोलेले ,बेन्जोनुमा यंत्र बजाते, हलके फुल्के मजाकिया गाने गाते , लोगों को हंसते सुनाने वाले के रूप में याद किया जाता है 1920-30 के दशक में उनका संगीत अपने चरम पर था। और बाकी आज जिन लोगों ने उन्हें नहीं सुना है, उनके लिए मौका है यू-ट्यूब पर
ये संगीत दरअसल मुझे बुर्ज दुबई के एक विडियो से देखने को मिला, जिज्ञासा जगी तो जोर्ज फोर्म्बी साहब के बारे में कुछ जानने कि इक्षा हुई,और सही बता रहा हूँ अभी तो दिल बस खिड़कियाँ ही साफ़ कर रहा है.और कुछ करने को कर ही नहीं रहा है, तो यहाँ में आपको छोड़े जा रहा हूँ, उन्ही के कुछ चल चित्रों के सहारे , ज़रूर देखिए। मै क्या करूँगा, जी आज ही सारे के सारे उपलब्ध चल चित्र देख डालूँगा
George Formby - When i'm cleaning windows


George Formby plays his ukulele banjo.



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आमिरनुमा कबाब हिरानी भाई की दुकान में


भारतीय सिनेमा की पहली बोलती फिल्म "राजा हरिशचंद्र" से लेकर रेंचो तक के सिनेमाई सफ़र में नायक हमेशा आम आदमी पर हावी रहा है. इसे आम आदमी की मज़बूरी कहें या बाज़ार का सच, कहना मुश्किल है। हालिया रिलीज़ " थ्री इडियट्स " में निर्देशक राजकुमार हिरानी ने व्यवस्था पर चोट करते हुए बताया है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था में कितनी खामियां है और किस तरह सृजनशील दिमाग रटने वाली मशीन में तब्दील होते जा रहे हैं। कहानी दिल्ली में इंजीयनियरिंग की पढाई करने वाले दोस्तों को लेकर बुनी गई है, मगर फ्रेम में ज्यादातर समय रेंचो ही छाए रहते हैं, अन्य दो किरदारों में शरमन जोशी और आर माधवन के लिए कुछ खास करने को नहीं था। दोनों हर समय रेंचो के इर्द गिर्द मंडराते रहते हैं अब सवाल यह है जब की बाज़ार के साथ पूरी व्यवस्था आम आदमी के खिलाफ हो वहां सिनेमा से ये उम्मीद तो जगाई ही जा सकती है की वो आम आदमी को ख़ारिज नहीं करेगा, मगर अफ़सोस आज भी हर किसी को नायक की तलाश है उसे कोई राम, कोई गाँधी और कोई नेहरू चाहिए जो उसकी आवाज उठाए, वरना स्वयं कभी नही जागने वाला है। यह फिल्म भी कुछ इस तरह ही है की रेंचो में दम है बाकी सब पानी कम है।
इस फिल्म को हम राजकुमार हिरानी की कहने के बजाय इसे आमिरनुमा कबाब कहें, जो की हिरानी भाई की दूकान में बेचा जा रहा है तो कोई गलत नहीं होगा। फिल्म में शिक्षा व्यवस्था से जुड़े सवालों को तो उठाया गया है मगर पात्रों को जिस नाटकीयता के साथ पेश किया गया है उससे सवालों की तीव्रता बेहद कम रही। अब जब की हर प्रोडक्ट को व्यक्ति के सपनों से जोड़कर बेचा जा रहा है, उसी तरह फिल्म में भी काल्पनिकता की चाशनी इतनी मीठी थी की आम आदमी जो की ५० रु किलो की शक्कर नहीं खरीद पता है उसके लिए बेमानी साबित होगी। कालेज के प्रिंसपल की भूमिका में बोमन इरानी भी पहले वाला कमाल नहीं दिखा पाए।
इन तमाम बातों से इत्तर देखें तो फिल्म कई अर्थों में सार्थक भी रही है जब की नायक कहता है की हमे कामयाबी पर नहीं, काबिलियत पर ध्यान देना चाहिए। वर्त्तमान समय में हर तरफ कामयाबी की लिए भागता हुआ इंसान अगर आमिर के इस प्रयास को देख आपनी रफ़्तार को कुछ कम कर ले तो फिल्म काफी हद तक सफल हो सकती है। जैसा की बाज़ार ने नया फार्मूला बनाया है की प्रोडक्ट की साथ भावनाओं का इस्तेमाल करें। वैसा ही आमिर का फ़ॉर्मूला है, फोर्मुले के साथ सामाजिकता को जोड़ दो तो आल इज वेल हो जाता है, पर असल यथार्थ में देखें तो ऐसी फ़िल्में आदमी को प्रोत्साहित करने के बजाय कमज़ोर बनाती हैं की वो किसी ओर के प्रयासों पर निर्भर रहे। ज़रूरत आज आम आदमी के सामूहिक नायकत्व प्रभावों की है जिससे पूंजी ओर ज्ञान का विकेंद्रीकरण संभव हो सके। संगीत के लिहाज़ से गानों का कम्पोजीशन भी बहुत हद तक फ़ॉर्मूला बेस्ड ही रहा जिसमे एक गाना नायक का गुणगान करता है एक गाना " जाने नहीं देंगे" कुछ हद तक अँधेरे में बैठे दर्शकों की आँखे नम करने में सफल रहा . जुबी -डूबी पहले ही लोगों की जुबान पर चढ़ चुका था। करीना कपूर ने पुनः "जब वि मेट " वाला रूप दर्शकों दिखा मगर वो पूरी फिल्म में शो-पीस ही साबित हुई। अंत में बस इतना ही कह सकते हैं की इस नक्कारखाने में "थ्री इडियट्स " की गूंज सुनाई जरूर देगी ऐसी हम आशा कर सकते हैं।

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अंतिम इच्छा

टी वी पर खबर है /
सद्दाम हुसैन को /
फांसी पर लटका दिया गया /

और ठीक उस वक्त /
जब सद्दाम को /
फांसी दी जा रही थी /
शान्ति का मसीहा /
जोर्ज बुश /
खर्राटे भर रहा था /
अपनी आरामगाह में /
अमन और चैन /
सुनिश्चित करने के बाद /

वो डूबा हुआ था /
हसीं सपनों में /
जहाँ मौजूद होंगी /
दजला और फरात/
जलक्रीडा के अनेक साधनों में /
उनकी नवीनतम पहुँच /

याकि वो खुद /
बग़दाद के बाज़ार में /
अपनी बंदूकों के साथ /
सड़क के किनारे /

संसार के सबसे शक्तिशाली /
लोकतान्त्रिक राजा की तरफ से /
शेष विश्व को यह था /
बकरीद और नववर्ष /
का तोहफा... /
उसकी वैश्विक चिंताओं /
और करुना का नमूना /

जोर्ज डब्ल्यू बुश /
इस धरती का सबसे /
नया भगवान् /
पूछ रहा है... /
हमारी अंतिम इच्छा
(यह कविता मैंने ३० दिसंबर २००६ को लिखी थी जिस दिन सदाम हुसैन को फांसी दी गयी थी)




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रुख हवाओं का हमने मोड़ा है सदा हम परिंदे हवाओं से हरे नही हैं .


मेरा एक दोस्त नगर निगम भोपाल के अंतर्गत पार्षद पद के लिए चुनाव लड़ रहा है . उसका नाम है अजय वर्मा . मेरा आप सभी से अनुरोध है की उसकी जीत के लए प्रार्थना करें . अजय एक जुझारू युवा है जिसे मन में कुछ करने का जज्बा है .मुझे याद है जब मैंने उसके साथ मुन्ना भाई एम् बी बी एस फिल्म देखी थी और वो कितना उत्साहित था वो खुश था की गाँधी आज भी हमारे लिए प्रासंगिक हैं . आज जब की युवा राजनीती से दूर हो रहें है वहां अजय का ये प्रयास इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा . मै आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की अजय पत्रकारिता का छात्र है . ये सचमुच में साहस की बात है की हमारे बीच का कोई आदमी आगे आना चाहता है . कृपया कर अजय के लिए सहयोग करें , हमें आपसे आर्थिक सहयोग नहीं चाहिए हम आपका वैचारिक सहयोग चाहते हैं . अगर आपके पास कोई सुझाव है जो की अजय के लिए काम आ सकते है तो प्लीज़ ज़रूर भेजें . हमारा ईमेल है - 86great@gmail.com

31-5-1947 को गाँधी जी द्वारा दिया गया प्रवचन ( पोडकास्ट )


31 मई 1947 को महात्मा गाँधी जी द्वारा की गई प्रार्थना सभा और प्रवचन यहाँ संलग्न कर रहा हूँ । हमारे नेता आज लोगों से बात करना ही भूल गए हैं, उनके लिए सभाएं प्रचार और प्रसार का माध्यम मात्र है, वो भी वोट लेने के लिए, दरअसल सोच अब बदल चुकी है , वे अपने आपको जनता नही समझते और जनता उनको या तो नेता नही समझती या कई बार भगवान समझने लगती है । यहाँ संवाद ख़तम हो चुका है, और विकास खत्म होते वाला है । इसमे गलती हमारी पीड़ी के साथ साथ हम से पहले वाली पीदियों की भी रही है जिसने अगली पीढी को देने के लिए कई एकड़ ज़मीन लेने की सोची पर उसके विचारों को आसमान देने में कतराती है । जो पढ़ाई के लिए विदेश भेजने को तो तैयार है, पर उस विदेशी तालीम का उपयोग क्या होगा ये पूछने पर नाराज़ हो जाती है । दोष युवाओं पर है , भार युवाओं पर है , और उम्मीद भी युवाओं से ही है ।
कहा जाता है के यदि भविष्य कि ओर जाना है तो इतिहास के कंधो पर बैठ कर जाओ , सफर आसान होगा । पर अब इतिहास में रूचि किसे है, बना है इंजीनियर, डाक्टर, वकील ... पर अगर इस रास्ते भी इतिहास को साथ लेकर जाया जाए तो सफर आसान होगा उम्मीद तो की ही जा सकती है ।
इस आडियो में महात्मा गाँधी लोगों से बात कर रहे हैं , सुन रहे हैं और बता रहे हैं के क्या हो रहा है । क्योंकि वो जानते थे के महात्मा उन्हें लोगों ने यूँ ही नही बनाया ।
एक विशेष बात अनुशासन को लेकर भी है इसमें
सुनें



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