बड़े दिनों बाद अपना ऑरकुट खाता खोला, एक एप्लीकेशन जुड़ी हुई थी Ask Friends . मैने उसे देखा और लगा के मेरे किसी काम की नही है तो डिलीट करने लगा, सोचा के हिस्ट्री देख लूँ, उसमे मेरे द्वारा 2 नवम्बर 2007 को पुछा गया एक प्रश्न देख कर मै ख़ुद सोच में पड़ गया । What is the greatest truth in life ? do every one realizes that ? बीते दो वर्षों में जीवन में गति इतनी रही के मै ख़ुद अपने सवाल को भूल बैठा । अब प्रश्न ये है के वो प्रश्न मैने पुछा क्यों ? उसी दौरान लिखी एक कविता याद आई " मेरा ये दिल भी बस मुफलिसी मैं ही मचलता है "। क्यों पुछा ये सवाल और क्या मै आज भी उस का जवाब खुद ढूँढ पाया हूँ । नहीं ढूंढ पाया, हाँ नहीं ढूंढ पाया ! पर इतना ज़रूर समझा हूँ के जीवन का सबसे बड़ा सत्य परिवर्तन है, पल-पल और प्रति पल परिवर्तन यह ही संसार का नियम है । स्थिर है तो सिर्फ परिवर्तन । और ये सिद्धांत सभी ओर सामान रूप से प्रतिपादित है, बुद्ध ने कहा था की संसार का हर एक पदार्थ , हवा, पानी, सब कुछ नश्वर है और प्रति पल नष्ट होता है प्रति पल बनता है । इस दुनिया में सिर्फ़ तरंग ही तरंगे हैं, बस बात इतनी सी है कि हमारी आवाज़ जो तरंगों के मध्यम से चलती है, कम दूरी पर ही अपना दम तोड़ देती है,और हमारा शरीर कुछ दशक तक चल जाता है । ऐसे में संसार में उत्पन्न और नष्ट होना दो ही प्रमुख क्रियाएं हैं । जीवन में भय, शोक, खुशी, दुःख, निंद्रा, क्रोध, मोह और न जाने कितनी भावनाएं नष्ट होने को ही उत्पन्न होती हैं । तो इन भावनाओं को आधार बनाकर अपने जीवन के फैसले , किसी से बैर कहाँ तक सही है ?जीवन का सत्य ढूँढने चले सेंकडो महा पुरूष अंत में इश्वर को पाते हैं, सचमुच क्या इश्वर जीवन है? या जीवन का सत्य है? या वे सिर्फ़ इश्वर के बहाने जीवन के किसी रस को पा जाते हैं और अपने में मस्त जीवन यापन करते हैं ।
खैर जीवन का सत्य मेरे लिए महत्त्वपूर्ण ना होकर जीवन महत्वपूर्ण है, और विचारों की एक श्रृंख्ला एक 70MM की रील के समान घूम रही है, कहीं आपको प्रश्न सुझाती है कहीं उत्तर, और कहीं आप उन प्रश्नों को भूल जाते हैं, तो कहीं जूझ जाते हैं । महत्त्व है तो सिर्फ़ परिवर्तन का तो बस बने रहें परिवर्तन के साथ .
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