योगेश पाण्डे आम चुनावों की घोषणा के साथ ही लोकतंत्र के महायज्ञ की तैयारियॉं शुरु हो गई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि 60 सालों के इस लोकतंत्र को दिशा देने में इस बार के चुनाव बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। गठबंधन की राजनीति का भविष्य तय होगा। ये भी तय होगा कि राजनीति में सिद्धांतों की पैठ किस स्तर तक है। मतदाताओं को राजनीतिक दलों के सिद्धांत किस हद तक प्रभावित करते हैं। दरअसल इस उम्मीद की किरण झारखंड में सिबु सोरेन की हार से उपजी है। सजायाफ़्ता को चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराने का भी असर इस बार के चुनाव परिणामों को थोड़ा उजला करेगा। ये एक अलग बात है कि ऐसे बाहुबली अपने किसी निकटस्थ को चुनावी मैदान में उतारकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को उड़ान दें।विश्व राजनीति में ओबामा के उदय का असर भी भारतीय राजनीति में अपना असर दिखा सकता है। खासतौर पर तब, जब इस दफा तीन चौथाई युवा मतदाता आमचुनाव में पहली बार मतदान करेगा। इनका दृष्टिकोण चुनाव परिणामों को बहुत हद तक प्रभावित करेगा।
उदारीकरण की चोट से घायल मतदाता भी महत्वपूर्ण भूमिका में होगा। ये भी पता चलेगा कि भारत का मतदाता एक पूंजीवादी लोकतंत्र का समर्थक है या उसे समाजवादी लोकतंत्र की महक ज्यादा सुहाएगी। लेकिन इन सबके लिए जरुरी है कि मतदाता राजनीतिक दलों के आडंबरों को समय रहते समझे। राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की देश और समाज के प्रति प्रतिब°ता को समझे। अपने तुच्छ स्वार्थों से ऊपर देशहित की भावना को दृष्टिगत रखना होगा। तभी इस महायज्ञ की पूर्णाहुति के बाद लोकमंगल की कामना सिद्ध हो सकेगी। आम चुनाव की इस श्रृंखला में कुछ ऐसे ही पक्षों पर विमर्श की ये प्रक्रिया सतत जारी रहेगी।
लोकमंगल का महायज्ञ : आम चुनाव 2009
संसद की दीवारों से
कहाँ हो सर एडविन लुटियन्स तुम ही थे जिसने हमें ये आकर दिया था । क्या तुम जानते थे की तुम्हारी इस आकृति को इतना सम्नानीय स्थान और नाम मिलेगा । तुम देख रहे हो की तुम्हारा सृजन आज फिर से सृजित होने का लालायित है । पहले तो हम दीवारें कुछ बातों पर ठहाके भी लगा लेती थी ,एक दूसरे की चुटकी भी ले लेती थीं ,मगर जब से लोकतंत्र की पाठशाला मैं प्रवेश लिया हम भी मर्यादित आचरण करने लगी ,इसका ये मतलब नही की हम ठहाके नही लगा सकते थे ,या चुटकी नही ले सकते थे । अब जनता के प्रतिनिधि हमारी गोद मैं बैठ कर भारत निर्माण की इबारत लिखने लगे ।
शुरूआती दौर मैं हमने आज़ादी के उत्साह और सृजन की इक्षा शक्ति से प्रफुल्लित स्वरों को सुना और मनो ऐसा महसूस हो रहा था की हम द्वापर की उस पत्थर रूपी अहिल्या से ज्यादा भाग्यशाली तो नही ,जो की राम की चरण राज लगने पर पुनः नारी बनी ,पर हम कठोर दीवारें उन महान स्वरों की अनुगूंज की टकराहट से अपने आप को भाग्यशाली महसूस करने लगीं थी ।
समय बढता गया और और स्वरों मैं भी बदलाव आता गया । कभी किसानो की दुर्दशा पर स्वर उठे तो कभी कभी उद्योगों के विकास के लिए थपथपाती मेजों ने गला फाड़कर आवाज़ को तीखा किया । बरस गुज़रे की स्वरों मैं बदलाव आया ,भाषा के नाम पर ,छेत्र के नाम पर तो हम दीवारों को लगा की देर रात तक दोने की वजह से हम पूरे होश मैं नही है । मगर उन स्वरों की निरंतरता ने हमें स्तब्ध कर दिया । पर उन दिनों कुछ जन प्रतिनिधियों की आवाज़ हमारे कलेजे को ठंडक देती थीं जिन्हें पक्ष और विपक्ष ध्यान से सुनते थे ,ऐसे प्रतिनिधि 90 के दशक तक आते आते काफी कम हुए । उसके बाद साफ़ स्वर सुने आना बंद हो गए ,सिर्फ़ चीखें सुने देती थीं और उन चीखों मैं जनता का दर्द नही आपरी स्वार्थ ज्यादा प्रबल थे । बहस शुरू नही होती की अचानक सदस्य सदन से वाकआउट कर के चले जाते ,खैर हम दीवारों को तो इससे राहत होती है,पर क्या ये बात देश को राहत दे सकती है नही । चीखों के साथ कभी लत घूँसे चले ,दस्तावेज़ छींटे हुए प्रतिनिधि ,और सुना था एक दिन तो उन स्वरों और चीखों के लिए जनता से पैसे लिए गए । हद तो तब हो गई जब हमारे आँगन मैं कुछ सदस्य पैसों से भरे बैग लेकर आ गए । क्या यहाँ संविधान की आत्मा नीलम हो रही थी ,क्या वे गाँधी को दोबारा मार रहे थे या फिर उन लोगों को तमाचा मर रहे थे जिन्होंने उन्हें चुना है ।
आजकल मैं लोकसभा अधयाखा ने इन्ही के बारे मैं कहा है की "भगवन करे आप लोग हार जायें " । अध्यक्ष महोदय की इस बात पर हम दीवारों ने भी मर्यद्दा तोडी और ठहाके लगते हुए कहा की नक्कारों के बीच टूटी का कोई असर नही होता है और यही हुआ अध्यक्ष जी के इस अमृत वचन को मीडियाई लोगों ने शाप बता दिया और कुछ लोगों ने पान ठेलों ,चाय की दुकानों पर 10 मिनट की चर्चा मैं इस विषय को क्लोस कर दिया । मगर हम दीवारों को पता चला है की अध्यक्ष जी की इस बात के बाद हमारे चरों स्तम्भ की मौलिक आत्मा गहरे सदमे मैं है और बाहर आने से इनकार कर रही है ।
शादी की उम्र कम करने का मामला विचाराधीन
तमिलनाडु में देखते ही गोली मारने के आदेश
सभी सदस्य जीत कर आयें- सोमनाथ
घाटी में भूकंप के झटके
सीबीआई ने पूर्व मंत्री सुखराम को दोषी पाया
इस मामले में सज़ा 24 फ़रवरी को सुनाई जानी है.
हिमाचल प्रदेश के प्रभावशाली नेताओं में गिने जाने वाले 82-वर्षीय सुखराम वर्ष 1991 से लेकर 1996 तक केंद्रीय संचार मंत्री रहे थे.
उनके ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार संबंधी कई आरोप लगे लेकिन हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में उन्हें संचार क्रांति के लिए जाना जाता है.
केंद्रीय जाँच ब्यूरो ने वर्ष 1996 में हिमाचल प्रदेश में मंडी शहर और दिल्ली में उनके घरों पर छापे मारे थे.
सीबीआई ने तब उनकी संपत्ति का करोड़ों रुपए में आकलन कर, उनके ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया था.
वर्ष 1997 में भ्रष्टाचार निरोधक क़ानून के तहत उनके ख़िलाफ़ अदालत में चार्जशीट दायर की गई थी. (२०-०२-०९)
एफ़बीआई ने मुंबई हमले के सबूत सौंपे
इसमें वो सबूत भी शामिल हैं जिनसे साबित होता हो कि मुंबई हमलों की योजना पाकिस्तान में बनाई गई और इसमें पाकिस्तान के ही लोग शामिल थे.
हालांकि अधिकारी इस बारे में कोई अधिकृत जानकारी नहीं दे रहे हैं लेकिन माना जा रहा है कि एफ़बीआई ने वो सबूत भी मुंबई पुलिस को दिए हैं जो उसने पाकिस्तान जाकर एकत्रित किए हैं.
उल्लेखनीय है कि गत वर्ष नवंबर में हुए मुंबई के चरमपंथी हमलों में अमरीकी नागरिकों के भी मारे जाने के बाद एफ़बीआई के अधिकारियों ने इन हमलों की ख़ुद भी जाँच की है.(2०-०२-०९)