इन्टरनेट स्पीड क्या ? क्यों ? कैसे ?

भारतीय जनमानस को भगवन ने कुड़ने और कोसने का अजब तोहफा दिया है । यदि कोई चोर नही है तो भी उसको इतना चोर कहेंगे की वो डर के मारे ख़ुद ही सफाई देने लगेगा ,और कोई हमें गलती करता हुआ तो दिख जाए उसकी जान ही ले के दम लेते हैं ।
इन दिनों हमारे ब्लागर भी इसी धुन मैं internet service provider अंतरजाल सेवा प्रदाता कम्पनियों के पीछे पड़े हैं की भइया स्पीड ही नही मिलती और चोरी का इल्जाम भी लगा रहे हैं तो कितना, 90% ये तो सही में कुछ ज्यादा ही हो गया है ,नही क्या ?

तो आइये आपको इन्टरनेट स्पीड के बारे में कुछ समझाते हैं

इन्टरनेट पर वेबसाइट खोलते समय एक प्रोसेस के तहत उस का कंटेंट विभिन्न स्वरूपों में जैसे फोटो है तो .png या .jpg या कुछ और जावा स्क्रिप्ट है तो .js ,html पेज है तो .html में और api की css शीत .css में कंप्युटर की अस्थ्याई (temprory) मेमोरी में डाउनलोड हो कर सेव हो जाते हैं । जिसका पता ei8 में कुछ ऐसा दिखता है C:\Documents and Settings\MICROSOFT\Local Settings\Temporary Internet Files .
इस डाटा के ट्रांसफर को टेलीकम्युनिकेशन और कंप्यूटिंग की भाषा में bitrate ( बिटरेट ) कहते हैं । इसे बिट्स प्रति सेकंड (bits per second ) के माप से मापते हैं ,bps और इसी नाचीज़ को हम स्पीड के नाम से जानते हैं ,ज़ाहिर है जितना ज्यादा बिट रेट होगा उतनी ही ज्यादा इन्टरनेट स्पीड और जब कोई डाटा डाउनलोड होता है तो उसे बायट्स प्रति सेकंड में मापते है ,Bps . अब शायद इससे ज्यादा टेक्नीकल ज्ञान में नही दे सकता नही तो आपको मेरे तकनीकी ज्ञान पर शक हो सकता है ।
अब दिक्कत क्या है ?
दिक्कत ये है की कम्पनियाँ बताती हैं की हम 256 की स्पीड देते हैं और जब भी हम इन्टरनेट से कुछ डाउनलोड करते हैं जैसे गाना या सॉफ्टवेर तो हमारा आंकडा 30-40 के बीच में ही अटका रहता है ,आगे ही नही बढता ।
अरे भइया जरा ध्यान से देखिये आप के इन्टरनेट सेवा प्रदाता ने आपको स्पीड दी है 256Kbps और आप जब डाउनलोड कर रहे होते हैं तो स्पीड होती है KBPS में ,यहाँ दिक्कत है कन्वर्जन की हम Kbps और KBps में फर्क महसूस ही नही करते हैं
.....(शुरू से शुरुआत )
b=bits
Kb=kilobits
Mb=megabits
Gb=gigabits
Tb=terabits

B=Bytes
KB=Kilobytes
MB=Megabytes
GB=Gigabytes
TB=Terabytes

देखा आपने यहाँ कमाल सिर्फ़ अपर केस और लोवर केस का है,और आप कान्फ्युस हो गए ,अब कोन्वेर्जन देखिए

  • 8b = 1B (8 बीट्स = 1 बायट्स )
  • 256b = 32B (256 बीट्स = 32 बायट्स )
बाकी का बिट/बायट्स कैलकुलेशन के लिए यहाँ क्लिक करें
निष्कर्ष

तो जब आपका इन्टरनेट 256Kbps की स्पीड पर चल रहा होता है तो डाउनलोड स्पीड 32KBps होना चाहिए
या
अगर आपको डाउनलोड करने मैं 25KBps की स्पीड मिल रही है तो आपकी इन्टरनेट स्पीड है 25*8=200Kbps

अब शायद आपको समझ आ जाए कि इन्टरनेट कम्पनियां इतनी भी बेईमान नही है ,स्पीड थोडी बहुत तो कम आती है पर इतनी भी नही ।
एक सीधा सूत्र याद करलेंगे तो भी काम चल जाएगा (डाउनलोड स्पीड *(गुणित) 8 = इन्टरनेट स्पीड)

उम्मीद है कि आपकी समस्या का समाधान हुआ होगा .धन्यवाद
यदि पढ़ते पढ़ते यहाँ तक ही गए हैं तो कमेन्ट देने में कैसा शर्माना ,अरे भाई कुछ नही तो अपनी इन्टरनेट स्पीड ही लिख दें


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अब दूर बैठे यार की तकनीकी मुश्किल आसानी से हल करें

अक्सर ऐसा होता है की हम अपने किसी साथी की तकनिकी मदद करना चाहते हैं और फ़ोन पर उसे गाइड करने की कोशिश करते हैं ,पर कुछ हमारी समझाने मैं असमर्थता के कारण और कुछ मित्र की समझने मैं दिक्कत के कारण दोनों की ही कम तकनिकी दक्षता के कारण हम कई बार मदद नही कर पाते

जैसे :- आप कह रहे हैं की डी ड्राइव मैं आओ पर भले मानुस को ये ही नही पता की डी ड्राइव मैं कैसे आयें । अब आप उसे बतायेंए की पहले माय कंप्यूटर पर क्लिक करो फ़िर तुम्हे डी ड्राइव दिखेगी उस पर क्लिक करो । और ऐसे मैं ही यदि उसकी डी ड्राइव नही खुल रही है और आप कहना चाहते हैं की एड्रेस बार के ज़रिए खोलो ,या रन के जरिए,या फिर कमांड प्राम्प्ट के जरिए तो फ़िर मुश्किल किस हद तक हो सकती है ये या तो आप बता सकते हैं या भगवान ही बता सकते हैं

इस समस्या का समाधान है -ऑनलाइन डेस्कटॉप शेरिंग सॉफ्टवेर जिसके जरिए आप दूर बैठे अपने दोस्त की इजाज़त से उसके कंप्यूटर पर काम कर सकते हैं और उसकी उलझन को सुलझा अकते हैं । इस काम को करने मैं आपको किसी ऐसी वेबसाइट या सॉफ्टवेर की सहायता चाहिए होती है जो दोनों के बीच सम्बन्ध स्थापित कर सके ।
एक बार जरा गूगल पर online desktop sharing लिख कर सर्च करके देखिए ,पचास से ज्यादा वेबसाइट और सॉफ्टवेर आपके लिए हाज़िर हैं ,
जैसे :-
  1. www।gatherplace.net
  2. www.webex.co.in
  3. www.GoToAssist.com
  4. www.teamviewer.com

आदि आदि

इन सभी वेबसाइट्स मैं www.teamviewer.com पर मेरी कुछ ज्यादा आस्था है इसका प्रमुख कारण है की ये गैर व्यवसायी-और निजी उपयोग के लिए पूर्णतः मुफ्त है और काम करने मैं आसान है
इसे डाउनलोड करने के लिए ऊपर दी हुई लिंक पर क्लिक करें और Download now पर क्लिक करें या यहाँ Download now पर क्लिक कर डाउनलोड करें ।
इन स्टेप्स से टीम विउवर को इंस्टाल करें :-

team1

पर्सनल /नॉन कॉमर्शियल सेलेक्ट करें ताकि फ्री मैं उपयोग कर सकें । यदि आप व्यावसायिक प्रयोग करना चाहते हैं तो दूसरा आप्शन भी चुन सकते हैं ।

team2team3 team4 team5

एक बार जब इंस्टाल कर लें तो अब आप किसी को भी सहायता करने के लिए तैयार हैं ,

team6

अब जिसे सहायता करना है क्विक सपोर्ट डाउनलोड करने को कहें लिंक टीम विएवेर वेबसाइट पर भी है और यहाँ डाउनलोड क्विक सपोर्ट पर क्लिक कर के भी डाउनलोड कर सकते हैं

अब आपको करना क्या है

  1. अपने मित्र से उसके टीम वियूएर पर दिख रहे कोड को बताने का कहें
  2. अपने टीम वियूएर पर Create session में दिए गए स्पेस में मित्र का आई डी भरें और Connect to partner पर क्लिक करें
  3. password मांगने पर अपने मित्र से पासवर्ड ले कर डालें और आप कनेक्ट हो जायेंगे
इस Software से आप और भी सुविधाएं जैसे प्रेजेंटेशन और फाइल ट्रान्सफर के लिए उपयोग कर सकते हैं ।

मुझे उम्मीद है की इस सुविधा से आप अपने मित्रों की ज्यादा सहायता कर पाएंगे और हिन्दी ब्लॉग जगत भी इसका लाभ ज़रूर उठाएगा ।

किसी ने कहा भी है Vision without action is a day dream,Action without vision is a nightmare .

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वरूण की मजबूरी है जहर उगलना

http://mayurdubey2003.anycanvas.net/6

वरुण गाँधी का बचपन का फोटो-ये बचपन अभी तक गया नही

लगभग दस दिन पहले वरूण गांधी पर पीलीभीत में अपने चुनाव प्रचार के दौरान सांप्रदायिक द्वेष फैलाने का आरोप है। वरूण द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ दिया गया भाषण उनकी मौलिक सोच नहीं लगती। मुझे लगता है कि यह कई दिनों से उनके मन में पल रही कुंठा का नतीजा है।
दरअसल, भाजपा ने वरूण गांधी को राहुल गांधी के विकल्प के रूप में पेश किया था लेकिन वरूण भाजपा के लिए अपेक्षानुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाए। वे राहुल गांधी की तरह अपने कार्य को अंजाम नहीं दे पाए तो भाजपा ने भी उन्हें तरजीह देना बंद कर दिया। 2004 के आम चुनाव में सुरक्षित संसदीय सीट विदिशा से उनका नाम उछला लेकिन बात नहीं बनी फिर विदिशा उपचुनाव के लिए भी रामपाल सिंह को उनसे बेहतर उम्मीदवार माना गया। वरूण गांधी इस मामले में पार्टी से रूठे तो थे ही लेकिन अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने में भी वो नाकाम हो रहे थे। बेटे की हालत पतली देख मां का दिल पिघल गया और मेनका गांधी ने इस बार उनके लिए पीलीभीत सीट छोड़ दी। इस लंबे समय के दौरान वरूण भारतीय राजनीतिक पटल से लगभग गायब ही रहे। खबरों में आने के लिए उनके पास कुछ नहीं था। पार्टी ने भी कोई महती जिम्मेदारी उन्हें नहीं दी थी। वरूण ठहरे गांधी परिवार के जो लगातार खबरों में रहता है। लगातार अपने को उपेक्षित महसूस करने के बाद जब अपने चुनाव क्षेत्र में वे प्रचार के लिए पहुंचे तो उनके पास अपनी निजी उपलब्धि कुछ भी नहीं थी। वे केवल भाजपा के एजेण्डे को लोगों तक पहुंचा सकते थे।
उन्हें कुछ तो ऐसा करना था कि वे लाइम लाइट में आ जाएं और ज्यादा से ज्यादा वोट अपनी तरफ मोड़ सकें। इस लिहाज से उनके पास हिंदुत्व से अच्छा कोई मुद्दा नहीं था लेकिन इसी से काम नहीं चलने वाला था। लोगों को बरगलाने के लिए थोड़ा जहर भी उगलना पड़ा। जब तक कोई नेता हिंदुत्व और आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं करेगा तब तक राजनीतिक क्षितिज पर कैसे छाएगा।
अब तो बिल्ली के भाग से छींका भी टूट गया है, संघ और धुर दक्षिण पंथी पार्टी शिवसेना ने भी वरूण के वक्तव्य का समर्थन कर उन्हें अच्छा खासा महत्व प्रदान कर दिया है और चुनाव में भाजपा को मुसीबत में डाल दिया। रही बात एफआईआर और चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की तो वह किसी राजनेता के लिए अब नई बात नहीं रह गई है। और अब तो उन्हें अग्रिम जमानत भी मिल गई है .....



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हिंदुत्व और मैं

मैं हिंदू हूँ या नहीं, यह मैं नहीं जानता। फिर भी कहीं कहीं फॉर्म में हिंदू ही लिखता हूँ पर सच कहूं तो मुझे इसका अर्थ नहीं पता कि हिंदू कौन है? हिंदुत्व क्या है? आदि।
फिर निहत्थे की हत्या, भिक्षुणी से बलात्कार, गर्भवती स्त्रियों के पेट चीरना, बच्चों बूढ़ों को काटा जाना शायद मेरी समझ से किसी धर्मग्रंथों में या धर्मों में उल्लेखित नहीं है। गुजरात के दंगे उड़ीसा में कुछ समय पहले की घटनाएं शायद कलंक हैं। गोधरा लक्ष्मणानंद के हत्यारे खुले तौर पर घूम रहे हैं पर दलित ईसाइयों को पकड़ कर मारना क्या बयां करता है?
तथाकथित हिंदुत्व के समर्थक क्यों जंगलों में जाकर लक्ष्मणानंद के हत्यारों से लड़ते? क्यों नहीं वे हथियारों का मुकाबला हथियारों से करते? यदि वे ऐसा कर पाते तो हिंदुत्व के कलंक धो डालते पर वे गुजरात दोहरा रहे थे। उड़ीसा और कर्नाटक की घटना ने हिंदुत्व के माथे पर और कालिख पोतने का काम किया है।lord-ram-denigrated-slumdog
सबसे बड़ी बात मेरे समझ से परे है कि अगर लक्ष्मणानंद की हत्या हुई तो उनके अनुयायियों को फैसले का अधिकार किसने दिया? बात यहीं नहीं रूकेगी- जो अपने को हिंदू बताते हैं वे अपने को इससे अलग क्यों रखे रहे हैं? क्या उनका धर्म कहता है कि गलत हो रहा है तो चुप रहना चाहिए। मुझे एक बात समझ नहीं आती कि देश के विद्वानों बुद्धिजीवियों ने व्यापक तौर पर इसका विरोध क्यों नहीं किया? अगर हम मान भी लें कि देश के नेताओं को सिर्फ वोटों से मतलब है फिर भी देश के बुद्धिजीवी तबके से देश को जो उम्मीदें थी वे भी इस प्रकरण में धुंधली हुई है।
गुजरात की घटना के बाद अटलबिहारी ने मोदी को राजधर्म की याद दिलाई थी पर अफसोस कि आज कोई नहीं है उड़ीसा कर्नाटक या कश्मीर की घटना के बारे में विरोध जताने वाला। असम, मणिपुर महाराष्ट्र में जो हो रहा है, उसे क्या माना जाए? मुझे यह कहने से कोई गुरेज नहीं भारत में राष्ट्र की अवधारणा मंद पड़ चुकी है। फिर शायद इस देश के राज्यों को जबर्दस्ती एकसाथ रखा जा रहा है। आखिर जब हम अपने देश में ही सुरक्षित नहीं है तो परमाणु महाशक्ति बनकर हम क्या कर लेंगे? जब निर्दोष मासूम जिंदगियां तबाह हो रही हैं कहीं से कोई आवाज नहीं उठ रही तो तय मानों भारतवंशियों तुम खतरे में हो। मैं एक घटना का उल्लेख जरूर करूंगा कि भोपाल में अपने क्लास में मैंने कहा था कि हिंदू मैं हूं या नहीं तथा हिंदू शब्द ने मुझे क्या दिया है, पता नहीं। इस पर पूरी क्लास में मेरा मखौल उड़ा पर मुझे लगता है कि शायद मैं सही था। अगर हम दूसरों के दुख से दुखी हो पायें , राष्ट्र की अस्मिता पर संकट के वक्त बोल पायें , भिक्षुणी से बलात्कार हो, मासूमों से जिंदगियां छीनी जा रही हों और मैं(भारतीय) चुप रहूं तो शायद मैं अपने अस्तित्व से खिलवाड़ कर रहा हूँ। अगर देश की धरती को रौंदते हुए हम जी रहे हैं तो उसकी अहमियत हमें शायद हर साल में समझनी होगी। वरन् मैं तो इस धरती से दूर हूँ. इसे कहने से हमें कोई गुरेज नहीं होना चाहिए।

रवि शंकर, छात्र ,माखन लाल यूनिवर्सिटी भोपाल

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किसी भी साईट से लिंक करने से पहले एक बार ज़रूर देखें

अगर आपको गूगल एडसेंस से विज्ञापन मिले हुए हैं तो किसी भी साईट से अपने ब्लॉग या साईट को जोड़ने से पहले देखलें की कहीं वो गूगल एडसेंस या गूगल सर्च इंजन से प्रतिबंधित तो नही है क्योंकि ऐसा होने पर आपको भी इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है और अपने विज्ञापन खो सकते हैं यहाँ तक की गूगल आपको सर्च करना भी बंद कर सकता है ।

गूगल सर्च की सेवा शर्तें और एडसेंस की सेवा शर्तें आप यहाँ देख सकते हैं । इन को पढ़ने के बाद भी कई ऐसे बिन्दु हैं जो गूगल बताता नही है पर यदि आप ऐसा करते पाए जाते हैं तो जुर्माना भरना पड़ सकता है, जैसे किसी ऐसे एडसेंस अकाउंट धारक की वेबसाइट से लिंक करना जो गूगल से प्रतिबंधित हो . यदि आप चाहते हैं की बाद मैं आपको गूगल को अकाउंट बंद कर दिया और न जाने कितने ही डॉलर खा गया तो अब से किसी नई वेबसाइट या ब्लॉग से लिंक करने से पहले यहाँ चटका लगा कर (click) चेक जरूर कर लें ।
पता है :-http://www.bannedcheck.com/

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