संसद की दीवारों से
कहाँ हो सर एडविन लुटियन्स तुम ही थे जिसने हमें ये आकर दिया था । क्या तुम जानते थे की तुम्हारी इस आकृति को इतना सम्नानीय स्थान और नाम मिलेगा । तुम देख रहे हो की तुम्हारा सृजन आज फिर से सृजित होने का लालायित है । पहले तो हम दीवारें कुछ बातों पर ठहाके भी लगा लेती थी ,एक दूसरे की चुटकी भी ले लेती थीं ,मगर जब से लोकतंत्र की पाठशाला मैं प्रवेश लिया हम भी मर्यादित आचरण करने लगी ,इसका ये मतलब नही की हम ठहाके नही लगा सकते थे ,या चुटकी नही ले सकते थे । अब जनता के प्रतिनिधि हमारी गोद मैं बैठ कर भारत निर्माण की इबारत लिखने लगे ।
शुरूआती दौर मैं हमने आज़ादी के उत्साह और सृजन की इक्षा शक्ति से प्रफुल्लित स्वरों को सुना और मनो ऐसा महसूस हो रहा था की हम द्वापर की उस पत्थर रूपी अहिल्या से ज्यादा भाग्यशाली तो नही ,जो की राम की चरण राज लगने पर पुनः नारी बनी ,पर हम कठोर दीवारें उन महान स्वरों की अनुगूंज की टकराहट से अपने आप को भाग्यशाली महसूस करने लगीं थी ।
समय बढता गया और और स्वरों मैं भी बदलाव आता गया । कभी किसानो की दुर्दशा पर स्वर उठे तो कभी कभी उद्योगों के विकास के लिए थपथपाती मेजों ने गला फाड़कर आवाज़ को तीखा किया । बरस गुज़रे की स्वरों मैं बदलाव आया ,भाषा के नाम पर ,छेत्र के नाम पर तो हम दीवारों को लगा की देर रात तक दोने की वजह से हम पूरे होश मैं नही है । मगर उन स्वरों की निरंतरता ने हमें स्तब्ध कर दिया । पर उन दिनों कुछ जन प्रतिनिधियों की आवाज़ हमारे कलेजे को ठंडक देती थीं जिन्हें पक्ष और विपक्ष ध्यान से सुनते थे ,ऐसे प्रतिनिधि 90 के दशक तक आते आते काफी कम हुए । उसके बाद साफ़ स्वर सुने आना बंद हो गए ,सिर्फ़ चीखें सुने देती थीं और उन चीखों मैं जनता का दर्द नही आपरी स्वार्थ ज्यादा प्रबल थे । बहस शुरू नही होती की अचानक सदस्य सदन से वाकआउट कर के चले जाते ,खैर हम दीवारों को तो इससे राहत होती है,पर क्या ये बात देश को राहत दे सकती है नही । चीखों के साथ कभी लत घूँसे चले ,दस्तावेज़ छींटे हुए प्रतिनिधि ,और सुना था एक दिन तो उन स्वरों और चीखों के लिए जनता से पैसे लिए गए । हद तो तब हो गई जब हमारे आँगन मैं कुछ सदस्य पैसों से भरे बैग लेकर आ गए । क्या यहाँ संविधान की आत्मा नीलम हो रही थी ,क्या वे गाँधी को दोबारा मार रहे थे या फिर उन लोगों को तमाचा मर रहे थे जिन्होंने उन्हें चुना है ।
आजकल मैं लोकसभा अधयाखा ने इन्ही के बारे मैं कहा है की "भगवन करे आप लोग हार जायें " । अध्यक्ष महोदय की इस बात पर हम दीवारों ने भी मर्यद्दा तोडी और ठहाके लगते हुए कहा की नक्कारों के बीच टूटी का कोई असर नही होता है और यही हुआ अध्यक्ष जी के इस अमृत वचन को मीडियाई लोगों ने शाप बता दिया और कुछ लोगों ने पान ठेलों ,चाय की दुकानों पर 10 मिनट की चर्चा मैं इस विषय को क्लोस कर दिया । मगर हम दीवारों को पता चला है की अध्यक्ष जी की इस बात के बाद हमारे चरों स्तम्भ की मौलिक आत्मा गहरे सदमे मैं है और बाहर आने से इनकार कर रही है ।
कलकत्ता के प्रसिद्ध छोले भटूरे
कभी भोपाल आयें तो छोले भटूरे ज़रूर खाइएगा , वो भी न्यू मार्केट मैं . अरे ख़ास कुछ नही है,वैसे ही है . भाई आप हर चीज़ मैं खास क्यों ढूँढने लगते हैं . खासियत कई हैं पर वो जगह की हैं ,ये न्यू मार्केट की इकलौती जगह है जहाँ भटूरे खाने के लिए लाइन लगती है ,लोग इस कदर दीवाने है की न्यू मार्केट आकर यहाँ के भटूरे और मिश्रा की जलेबी ज़रूर खाते हैं .हनुमान मन्दिर के पीछे भटूरे की लाइन से तीन दुकाने हैं .पंजाब के छोले भटूरे,दिल्ली के छोले भटूरे,और कलकत्ता के छोले भटूरे .
क्या कहा भटूरे मैं कुछ काला है ,कलकत्ता मैं भटूरे प्रसिद्ध नही ,हाँ भाई लोचा तो ये ही है .दरअसल पहले दिल्ली फिर पंजाब तो तीसरी दूकान वाले ने सोचा मैं क्यों पीछे रहूँ पुरानी ही सही राजधानी का नाम ही रखूँगा और फिर हम कलकत्ता के हैं तो कलकत्ता क्यों नही . तो भाई ऐसे ही aसहा साहब ने अपनी दुकान का नाम कलकत्ता के छोले रखा .
बीते दिनों महंगाई के बड़ते ही हमारे भटूरों के रेट भी बढ़ गए ,दिवाली तक 10 रुपए प्लेट आने वाले भटूरे अब 15 रुपए प्लेट हो गए हैं .हाय री मंहगाई मेरे भटूरों को तो छोड़ देती ! कभी मूड बने तो आएये यारों के साथ शाम को 6 के बाद आप खुश किस्मत होंगे की जाते ही बैठने की जगह मिल जाए .
आप देखिये की किस तरह से भटूरे बनते ,कैसे खाते हैं खाने का तरीका सीखिए फिर ही खाने को मिलेगा .बीते कई सालों से तीन दुकाने जम के धूम मच रही है . और फिर हमारा नाम भी सूरमा भोपाली ऐसे ही नही है इसलिए कुछ फोटो भी दे रहे हैं लगाइए ..... चटकारे .
लिट्टे ने किए कोलम्बो पर हवाई हमले, 2 मरे
सेना के मुताबिक विद्रोहियों के एक विमान को शहर में स्थित अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास मार गिराया गया है.
इस विमान के पायलट का शव सेना ने बरामद कर लिया है. दूसरा विमान क्षतिग्रस्त होने के बाद राजस्व विभाग के परिसर से टकरा कर ध्वस्त हो गया.
कोलंबो में सेना के एंटी एयरक्राफ़्ट गनों से गोले दागे गए. भारतीय समयानुसार रात लगभग साढ़े नौ बजे अचानक एंटी एयरक्राफ़्ट गनों की आवाज़ों से कोलंबो गूँज उठा.(21-02-09)