'लोकतंत्र में संचार माध्यमों की भूमिका' विषय पर एक नया शोधपत्र प्रस्तुत है। इस विषय पर हम लगातार ५-६ लेखों की एक श्रृंखला पढेंगे जिसकी शुरुआत एक भूमिका के साथ कर रहे हैं, जिस पर चर्चा आगे जारी रहेगी ।- रवि शंकर सिंह
"लोकतंत्र में संचार माध्यमों की भूमिका" एक ऐसा विषय है जो काफी सामयिक है। इस भूमिका में विश्लेषण अथवा अध्ययन करने से पहले हमें लोकतंत्र एवं संचार माध्यमों की प्रकृति पर एक नजर डालना अतिआवश्यक है। चूंकि आज के दौर में जबकि संचार माध्यमों पर तमाम सवाल खड़े किए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ लोकतंत्र के बुनियादी सवाल भी खुद-ब-खुद खड़े हो रहे हैं। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि दोनों पहलुओं की सूक्ष्मता से पड़ताल की जाए।
दरअसल यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि आज मीडिया को लोकतंत्र के एक हिस्से के रूप में देखा जाता है। `फिर इंग्लैंड के महान वक्ता व दार्शनिक एडमण्ड बर्म ने ही प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा था। हालांकि बर्म महोदय का आशय था कि तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के तीन स्तंभ हाउस ऑफ कामंस, हाउस ऑफ लॉर्डस और स्प्रितुअल लार्डस के बाद चौथा स्थान प्रेस का ही है` फिर भारतीय परिप्रेक्ष्य में हम कह सकते हैं कि सरकार के तीन स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका के बाद चौथा स्थान प्रेस अर्थात संचार माध्यमों का है।
स्पष्ट है कि लोकतंत्र में संचार माध्यमों की भूमिका तलाशने के लिए हमें लोकतंत्र में इन स्थितियों को समझने के लिए हमें लोकतंत्र और संचार माध्यम को अलग-अलग देखते हुए दोनों में समन्वय का संबंध खोजना जरूरी है।
लोकतंत्र: एक संक्षिप्त परिचय
लोकतंत्र का अंग्रेजी शब्द 'डेमोक्रेसी' यूनानी भाषा से निकला है। यह दो ग्रीक शब्दों डेमोस तथा क्रैटोस से मिलकर बना है जिसका अर्थ होता है जनता का शासन। इसे अलग-अलग विद्वानों ने निम्न ढंग से परिभाषित किया है :-
प्राचीन इतिहासकार हेरोडोटस के अनुसार, "लोकतंत्र उस शासन का नाम है जिसमें राज्य की सर्वोच्च सत्ता संपूर्ण जनता में निवास करती है।"
अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहन लिंकन के अनुसार, "लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए शासन है।"
सीले के शब्दों में, "लोकतंत्र वह शासन है जिसमें प्रत्येक मनुष्य भाग लेता है।"
स्ट्रॉंग के अनुसार, "लोकतंत्र का अभिप्राय ऐसे शासन से है, जो शासितों की सक्रिय स्वीकृति पर आधृत है।"
इस प्रकार हम पाते हैं कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है। बीते 59 सालों में हमने लोकतंत्र की मजबूत नींव रखी है। लोकतंत्र की बुनियादी मान्यता है कि ``समाज में शांतिपूर्ण और वैधानिक उपायों से बदलाव लाया जा सकता है। सहभागिता लोकतंत्र की बुनियाद है और इसके लिए भारत में पंचायती राज कानून काफी सशक्त भूमिका निभा रहा है।
गौरतलब यह है कि भारत में लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत बनाने के लिए मीडिया की प्रमुख भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। एक स्वस्थ्य लोकतंत्र में सबसे जरूरी बात यह होनी चाहिए कि जनता के नाम पर चलने वाले जनतंत्र में आम जनता की शिरकत कितनी है। खासतौर पर लोकतंत्र में लोकचेतना जागृत करना भी जरूरी है। इससे इस व्यवस्था में सबको बराबर न्याय मिलने की उम्मीद की जा सकती है।
लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताओं में स्वतंत्रता, समानता, स्वतंत्र और निष्पक्ष नयायपालिका, निष्पक्ष चुनाव इत्यादि है। सुखद तथ्य है कि बहुत विशेषताएं भारत में दिखती है। लोकतंत्र की सफलता को सुनिश्चित कराने वाला मीडिया काफी गुरूतर भूमिका निभाता है।
लोकततंत्र की प्रकृति :- भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और यहां लोकतांत्रिक मूल्य आजादी से लेकर वर्तमान तक जीवंत बने हुए हैं। दरअसल लोकतंत्र राजनीतिक परिस्थिति ही नहीं है या सामाजिक परिस्थिति मात्र नहीं बल्कि वह शासन और जीवन की लोकजयी नैतिक धारणा भी है। लोकतंत्र केवल शासन चलाने की पद्धति मात्र नहीं है, वह एक विकासशील दर्शन है और साथ ही वह जीवनयापन की एक गतिशील पद्धति भी है। लोकतंत्र में त्रुटियां हो सकती हैं किंतु शासन का यह सर्वोत्तम साधन अभी भी है और आगे भी रहेगा, क्योंकि उसमें विकास की क्षमता है।
देश की आजादी के साथ ही `प्रजा` का रूपांतरण `जनता` में हो गया। संविधान के अनुसार ही देश का कामकाज चलने लगा और इसके तहत ही विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का गठन हुआ।
"चूंकि लोकतंत्र का मकसद भी यही होता है कि तमाम सामंती चिन्ह, भाषा, व्यवहार तिरोहित हों और लोकतांत्रिक संस्कृति विकसित हो।" यहां गौरतलब बात यह है कि लोकतांत्रिक संस्कृति विकसित करने में संचार माध्यम महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। खासतौर पर अगर भारत की स्थिति पर गौर फरमाया जाए तो समूचे दक्षिण एशिया में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां लोकतंत्र की जड़ें निरंतर मजबूत और स्थायी बनती जा रही है। भारत से सटे श्रीलंका, बर्मा, पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित अन्य देशों में जो हालात हैं उनसे भारत काफी बेहतर स्थिति में है। लोकतंत्र के द्वारा नैतिकता, ईमानदारी, आत्मनिर्भरता, दृढ़ता एवं कर्म शक्ति की पूर्ति लोकमानस में होती है तथा वोटों की शक्ति के आधार पर जनता लोकतंत्र को संचालित करती है जिसमें प्रत्येक स्तर पर मीडिया का दायित्व दिखता है।
चुनौतियां :- हालांकि लोकतंत्र को वर्तमान में लहूलुहान करने में आतंकवाद प्रमुख रहा है। इसके अलावा लोकतंत्र पर बाजारवाद का कसता शिंकजा भी प्रश्न खड़े करता है। फिर कुछ मामलों ने इस तंत्र की साख पर बट्टा भी लगाया है लेकिन बीते 59 वषोZं में हमने लोकतंत्र की जो मजबूत नींव रखी है, वह आज भी संपूर्ण विश्व के लिए अनुकरणीय है। यह परिपक्व लोकतंत्र का संकेत है जिसमें संचार माध्यमों को दरकिनार नहीं कर सकते।
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