सर बात ये है कि आपने जिस पैकेज का जिक्र किया वो हमारे लिए तो घातक हो सकता है मगर जिसने बाजार कि कोख से जन्म लिया है उसके लिए तो ये वरदान साबित होगा . असल में पूरी व्यवस्था इस पूंजीवादी देवता की आराधना कर रही है ओर जो लोग पैकेज लेने में असमर्थ है वे आधुनिक युग के दलित है जिन्हें इस देवता के मंदिर में जाने की मनाही है .दरअसल संस्कारों के वट वृक्ष में दीमक लगना काफी पहले से शुरू हा चुका है , अब ये पेड़ खोखले हो चुके है , और ग्लोबलवार्मिंग के इस दोर में इन्हें बचा पाना मुश्किल है
स्वयंवर .शादी....इमोशनल अत्याचार .स्पिल्ट विला ...बिग बॉस ........जाहिर है अब पैकेजिंग बदल रही है ..रियल्टी अब डिमांड में है तो उस ओर का मॉल इंडियन वर्ज़न में आएगा ही....
सही कहा है आपने , रिश्ते लगातार अपना महत्व खोते जा रहे हैं, और कहें के बाज़ार चाहता ही नहीं के रिश्ते बने रहे , रिश्ते नहीं होंगे तो अधिक छोटे परिवार होंगे और हर छोटे परिवार के लिए बाजार अपना दामन खोल के बैठा है , ज्यादा ग्राहक ज्यादा फायदा सचमुच संस्कारों के पेड़ अब खोखले हो चुके है , और इस ग्लोबलवार्मिंग के इस दोर में इन्हें बचा पाना बेहद मुश्किल है .
रिश्तों को पैकेज बनाने के दोष हम हैं बाजार नहीं। बाजार तो महज माध्यम भर है।
ReplyDeleteसर बात ये है कि आपने जिस पैकेज का जिक्र किया वो हमारे लिए तो घातक हो सकता है मगर जिसने बाजार कि कोख से जन्म लिया है उसके लिए तो ये वरदान साबित होगा . असल में पूरी व्यवस्था इस पूंजीवादी देवता की आराधना कर रही है ओर जो लोग पैकेज लेने में असमर्थ है वे आधुनिक युग के दलित है जिन्हें इस देवता के मंदिर में जाने की मनाही है .दरअसल संस्कारों के वट वृक्ष में दीमक लगना काफी पहले से शुरू हा चुका है , अब ये पेड़ खोखले हो चुके है , और ग्लोबलवार्मिंग के इस दोर में इन्हें बचा पाना मुश्किल है
ReplyDeleteस्वयंवर .शादी....इमोशनल अत्याचार .स्पिल्ट विला ...बिग बॉस ........जाहिर है अब पैकेजिंग बदल रही है ..रियल्टी अब डिमांड में है तो उस ओर का मॉल इंडियन वर्ज़न में आएगा ही....
ReplyDeleteसही कहा है आपने , रिश्ते लगातार अपना महत्व खोते जा रहे हैं, और कहें के बाज़ार चाहता ही नहीं के रिश्ते बने रहे ,
ReplyDeleteरिश्ते नहीं होंगे तो अधिक छोटे परिवार होंगे और हर छोटे परिवार के लिए बाजार अपना दामन खोल के बैठा है , ज्यादा ग्राहक ज्यादा फायदा
सचमुच संस्कारों के पेड़ अब खोखले हो चुके है , और इस ग्लोबलवार्मिंग के इस दोर में इन्हें बचा पाना बेहद मुश्किल है .
युरोप ओर अमेरिका की गंदगी तो हम जरुर अपनायेगे ना, अब इसे कुछ भी कहो
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