राजस्थान में तमाशे के ज़रिए होली (रंग बरसे आप झूमे श्रृंखला भाग ७)



सचमुच कितना अच्छा होता जो हर किसी के जीवन मैं रंग ही रंग होते,सब को सुख और शान्ति हासिल होती ,आज रंग तो सिर्फ़ ड्राइंग रूम की सीनरी तक ही सीमित होकर रह गए हैं,आप समझ सकते हैं कि ड्राइंग रूम किनके घरों में होते हैं ,खैर जिनके सरों पे छत नहीं उन्हें भी रंगों भी रंगों कि समझ है तो फिर ये खाइयाँ क्यों हैं । इश्वर हम सब को ऐसे रंग में रंग दे कि सारा जहाँ एक रंग में दीखे
आज हम इस श्रंखला के सातवें रंग कि बात करेंगे ,जयपुर कि तमाशा होली का रंग । तो लीजिये आनंद गुलाबी नगरी जयपुर कि होली का .

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तमाशे के ज़रिए होली
जयपुर में होली के अवसर पर पारंपरिक तमाशा अब भी होता है लेकिन ढाई सौ साल पुरानी इस विधा को देखने के लिए अब उतने दर्शक नहीं आते जितने पहले आते थे.

पर कलाकारों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है.

तमाशे में किसी नुक्कड़ नाटक की शैली में मंच सज्जा के साथ कलाकार आते हैं और अपने पारंपरिक हुनर का प्रदर्शन करते हैं.

तमाशा की विषय वस्तु पौराणिक कहानियों और चरित्रों के इर्दगिर्द तो घूमती ही है लेकिन इन चरित्रों के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर भी चुटकी ली जाती है.

कभी राजा-महाराजा और सेठ साहूकार ख़ुद इस तमाशे को देखने आया करते थे.

लेकिन अब राजनीति में रमे देश के नीति निर्माताओं को समय नहीं है ऐसे आयोजनों को देखने का.

तमाशा शैली के वयोवृद्ध कलाकार गोपी जी मल तो इस बात से ही ख़ुश हैं कि उनकी यह विरासत पीढ़ी दर पीढ़ी अभी चली आ रही है.

वे याद करते हुए बताते हैं कि रियासत काल में जयपुर के राजा मान सिंह ख़ुद कलाकारों का मनोबल बढ़ाने के लिए तमाशा देखने आते थे . मल परिवार की छठी पीढ़ी अपने पुरखों की इस परंपरा को जारी रखे हुए है.

परंपरा

तमाशा एक ऐसी विधा है जिसमें शास्त्रीय संगीत, अभिनय और नृत्य सभी कुछ होता है.

तमाशा सम-सामयिक राजनीति पर टिप्पणी करता है .

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होली के मौक़े पर तमाशा

तमाशा कलाकार जगदीश मल कहते हैं, "राजनीति और तमाशे में ज़्यादा अंतर नहीं है. आज के दौर में भला कौन तमाशा नहीं करता."

तमाशा के गीतों में छाए 'फील गुड' फैक्टर के बारे में कलाकार विशाल मल कहते हैं कि चुनावों से पहले यकायक हर बार ऐसा ही 'फील गुड' पैक्टर आता है.

"हम बतौर कलाकार लोगों को सच्चाई से अवगत कराने की कोशिश करते हैं."

तमाशा के गीतों और संवादों में इस साल भारत उदय से लेकर भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच जैसे विषयों पर भी कटाक्ष किया जा रहा है.

आमतौर पर तमाशा हीर-राँझा और पौराणिक पात्रों के ज़रिए अपना बात कहता है.

इसमें राग जौनपुरी और दरबारी जैसे शास्त्रीय गायन शैलियों को भी शामिल किया जाता है.

इसके आयोजन का ख़र्च मल परिवार के सदस्य ख़ुद वहन करते हैं.

जयपुर के इस पारंपरिक तमाशे पर अब पहले जैसी भीड़ नहीं उमड़ती. अब तो रथ यात्रा, रोड शो, रैली और चुनावी राजनीति के मंच पर नित नए नाटक हो रहे हैं.

ऐसे में कौन देखेगा इन कलाकारों के तमाशे को क्योंकि राजनीति तो ख़ुद ही एक 'तमाशा' बन गई है।

आज सुनिए ये मधुर गीत शोभा मुद्गल कि आवाज़ में ,राज्यस्थान कि माटी कि सुगंध यहाँ से साफ़ पता चलेगी ।

प्रस्तुति सहयोग-बीबीसीहिन्दी.कॉम




2 comments:

  1. सचमुच कितना अच्छा होता जो हर किसी के जीवन मैं रंग ही रंग होते.
    सच कहा लेकिन बहुत मुश्किल है दोस्त.
    राज को राज ही रक्खा होता
    क्या कहना गर ऐसा होता.
    बधाई.सुपठनीय प्रस्तुति

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  2. आपने राजस्‍‍थान की होली के बारे में लिखकर दिल खुश कर दिया । राजस्‍थान वो प्रांत है जहां हर जगह पर होली मिल-जुल कर मनाई जाती है और किसी भी प्रकार का धर्म-जाति का भेदभाव नहीं देखा जाता । मैं अपने शहर बीकानेर की बात करुं तो आपको हैरानी होगी कि वहां पर डोलची का खेल खेला जाता है और पुष्‍करणा समाज के लोग इसे एक महान पर्व मानते हैं । एक फुटबाल मैच भी पिछले पचास बरसों से खेला जा रहा है, जिसमें लोग स्‍वांग रचकर फुटबाल खेलते हैं, यह खबर 09 मार्च को एनडीटीवी पर भी प्रसारित हुई । एक अच्‍छी प्रस्‍तुति के लिए आप बधाई के पात्र हैं । आपको और आपके सभी पाठकों को होली की शुभकामनाएं ।

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