लोकमंगल का महायज्ञ : आम चुनाव 2009

योगेश पाण्डे

Smile

आम चुनावों की घोषणा के साथ ही लोकतंत्र के महायज्ञ की तैयारियॉं शुरु हो गई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि 60 सालों के इस लोकतंत्र को दिशा देने में इस बार के चुनाव बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे। गठबंधन की राजनीति का भविष्य तय होगा। ये भी तय होगा कि राजनीति में सिद्धांतों की पैठ किस स्तर तक है। मतदाताओं को राजनीतिक दलों के सिद्धांत किस हद तक प्रभावित करते हैं। दरअसल इस उम्मीद की किरण झारखंड में सिबु सोरेन की हार से उपजी है। सजायाफ़्ता को चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराने का भी असर इस बार के चुनाव परिणामों को थोड़ा उजला करेगा। ये एक अलग बात है कि ऐसे बाहुबली अपने किसी निकटस्थ को चुनावी मैदान में उतारकर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को उड़ान दें। quote-wallpaper89

विश्व राजनीति में ओबामा के उदय का असर भी भारतीय राजनीति में अपना असर दिखा सकता है। खासतौर पर तब, जब इस दफा तीन चौथाई युवा मतदाता आमचुनाव में पहली बार मतदान करेगा। इनका दृष्टिकोण चुनाव परिणामों को बहुत हद तक प्रभावित करेगा।
उदारीकरण की चोट से घायल मतदाता भी महत्वपूर्ण भूमिका में होगा। ये भी पता चलेगा कि भारत का मतदाता एक पूंजीवादी लोकतंत्र का समर्थक है या उसे समाजवादी लोकतंत्र की महक ज्यादा सुहाएगी। लेकिन इन सबके लिए जरुरी है कि मतदाता राजनीतिक दलों के आडंबरों को समय रहते समझे। राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की देश और समाज के प्रति प्रतिब°ता को समझे। अपने तुच्छ स्वार्थों से ऊपर देशहित की भावना को दृष्टिगत रखना होगा। तभी इस महायज्ञ की पूर्णाहुति के बाद लोकमंगल की कामना सिद्ध हो सकेगी। आम चुनाव की इस श्रृंखला में कुछ ऐसे ही पक्षों पर विमर्श की ये प्रक्रिया सतत जारी रहेगी।

No comments:

Post a Comment