ऐसा बनना सवारना मुबारक तुम्हें, कम से कम इतना कहना हमारा करो,
चाँद शरमाएगा चांदनी रात में, यूँ न जुल्फों को अपनी संवारा करो ।
यह तबस्सुम यह आरिज़ यह रोशन जबीं, यह अदा यह निगाहें यह जुल्फें हसीं ,
आइने की नज़र लग न जाए कहीं, जान-ऐ-जान अपना सदका उतरा करो ।
दिल तो क्या चीज़ है जान से जाएँगे , मौत आने से पहले ही मर जाएँगे ,
यह अदा देखने वाले लुट जाएँगे, यूँ न हंस हंस के दिलबर इशारा करो ।
फ़िक्र-ऐ-उक़बा की मस्ती उतर जायेगी तौबा टूटी तो किस्मत संवर जायेगी ,
तुम को दुन्या में जन्नत नज़र आ'आय गी शैख़ जी मई-कड़े का नज़ारा करो ।
काम आए न मुश्किल में कोई यहाँ, मतलबी दोस्त हैं मतलबी यार हैं,
इस जहाँ में नही कोई एहल-ऐ-वफ़ा, ऐ फ़ना इस जहाँ से किनारा करो ।
ऐसा बनना संवारना मुबारक तुम्हें, कम से कम इतना कहना हमारा करो...
नुसरत फ़तेह अली खान साहब की कई शानदार कव्वालियों में से एक