वरूण की मजबूरी है जहर उगलना

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वरुण गाँधी का बचपन का फोटो-ये बचपन अभी तक गया नही

लगभग दस दिन पहले वरूण गांधी पर पीलीभीत में अपने चुनाव प्रचार के दौरान सांप्रदायिक द्वेष फैलाने का आरोप है। वरूण द्वारा अल्पसंख्यकों के खिलाफ दिया गया भाषण उनकी मौलिक सोच नहीं लगती। मुझे लगता है कि यह कई दिनों से उनके मन में पल रही कुंठा का नतीजा है।
दरअसल, भाजपा ने वरूण गांधी को राहुल गांधी के विकल्प के रूप में पेश किया था लेकिन वरूण भाजपा के लिए अपेक्षानुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाए। वे राहुल गांधी की तरह अपने कार्य को अंजाम नहीं दे पाए तो भाजपा ने भी उन्हें तरजीह देना बंद कर दिया। 2004 के आम चुनाव में सुरक्षित संसदीय सीट विदिशा से उनका नाम उछला लेकिन बात नहीं बनी फिर विदिशा उपचुनाव के लिए भी रामपाल सिंह को उनसे बेहतर उम्मीदवार माना गया। वरूण गांधी इस मामले में पार्टी से रूठे तो थे ही लेकिन अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने में भी वो नाकाम हो रहे थे। बेटे की हालत पतली देख मां का दिल पिघल गया और मेनका गांधी ने इस बार उनके लिए पीलीभीत सीट छोड़ दी। इस लंबे समय के दौरान वरूण भारतीय राजनीतिक पटल से लगभग गायब ही रहे। खबरों में आने के लिए उनके पास कुछ नहीं था। पार्टी ने भी कोई महती जिम्मेदारी उन्हें नहीं दी थी। वरूण ठहरे गांधी परिवार के जो लगातार खबरों में रहता है। लगातार अपने को उपेक्षित महसूस करने के बाद जब अपने चुनाव क्षेत्र में वे प्रचार के लिए पहुंचे तो उनके पास अपनी निजी उपलब्धि कुछ भी नहीं थी। वे केवल भाजपा के एजेण्डे को लोगों तक पहुंचा सकते थे।
उन्हें कुछ तो ऐसा करना था कि वे लाइम लाइट में आ जाएं और ज्यादा से ज्यादा वोट अपनी तरफ मोड़ सकें। इस लिहाज से उनके पास हिंदुत्व से अच्छा कोई मुद्दा नहीं था लेकिन इसी से काम नहीं चलने वाला था। लोगों को बरगलाने के लिए थोड़ा जहर भी उगलना पड़ा। जब तक कोई नेता हिंदुत्व और आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं करेगा तब तक राजनीतिक क्षितिज पर कैसे छाएगा।
अब तो बिल्ली के भाग से छींका भी टूट गया है, संघ और धुर दक्षिण पंथी पार्टी शिवसेना ने भी वरूण के वक्तव्य का समर्थन कर उन्हें अच्छा खासा महत्व प्रदान कर दिया है और चुनाव में भाजपा को मुसीबत में डाल दिया। रही बात एफआईआर और चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की तो वह किसी राजनेता के लिए अब नई बात नहीं रह गई है। और अब तो उन्हें अग्रिम जमानत भी मिल गई है .....



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2 comments:

  1. वरूंण में तो कुंठा नहीं है लेकिन आप में कुंठा और हताशा एकदम नीचे तक समायी हुई है
    जिस तरह एक सियार हुआं हुआं चिल्लाता है उसी तरह तुमने भी चिल्लाना शुरू कर दिया है

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  2. सोची समझी साजिश है
    इसे न बचपना समझना,
    खुश हो ताली बजा रहे जो
    उन का मंतव्य समझना।

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