फिर निहत्थे की हत्या, भिक्षुणी से बलात्कार, गर्भवती स्त्रियों के पेट चीरना, बच्चों व बूढ़ों को काटा जाना शायद मेरी समझ से किसी धर्मग्रंथों में या धर्मों में उल्लेखित नहीं है। गुजरात के दंगे व उड़ीसा में कुछ समय पहले की घटनाएं शायद कलंक हैं। गोधरा व लक्ष्मणानंद के हत्यारे खुले तौर पर घूम रहे हैं पर दलित ईसाइयों को पकड़ कर मारना क्या बयां करता है?
तथाकथित हिंदुत्व के समर्थक क्यों जंगलों में जाकर लक्ष्मणानंद के हत्यारों से लड़ते? क्यों नहीं वे हथियारों का मुकाबला हथियारों से करते? यदि वे ऐसा कर पाते तो हिंदुत्व के कलंक धो डालते पर वे गुजरात दोहरा रहे थे। उड़ीसा और कर्नाटक की घटना ने हिंदुत्व के माथे पर और कालिख पोतने का काम किया है।
सबसे बड़ी बात मेरे समझ से परे है कि अगर लक्ष्मणानंद की हत्या हुई तो उनके अनुयायियों को फैसले का अधिकार किसने दिया? बात यहीं नहीं रूकेगी- जो अपने को हिंदू बताते हैं वे अपने को इससे अलग क्यों रखे रहे हैं? क्या उनका धर्म कहता है कि गलत हो रहा है तो चुप रहना चाहिए। मुझे एक बात समझ नहीं आती कि देश के विद्वानों व बुद्धिजीवियों ने व्यापक तौर पर इसका विरोध क्यों नहीं किया? अगर हम मान भी लें कि देश के नेताओं को सिर्फ वोटों से मतलब है फिर भी देश के बुद्धिजीवी तबके से देश को जो उम्मीदें थी वे भी इस प्रकरण में धुंधली हुई है।
गुजरात की घटना के बाद अटलबिहारी ने मोदी को राजधर्म की याद दिलाई थी पर अफसोस कि आज कोई नहीं है उड़ीसा व कर्नाटक या कश्मीर की घटना के बारे में विरोध जताने वाला। असम, मणिपुर व महाराष्ट्र में जो हो रहा है, उसे क्या माना जाए? मुझे यह कहने से कोई गुरेज नहीं भारत में राष्ट्र की अवधारणा मंद पड़ चुकी है। फिर शायद इस देश के राज्यों को जबर्दस्ती एकसाथ रखा जा रहा है। आखिर जब हम अपने देश में ही सुरक्षित नहीं है तो परमाणु महाशक्ति बनकर हम क्या कर लेंगे? जब निर्दोष व मासूम जिंदगियां तबाह हो रही हैं व कहीं से कोई आवाज नहीं उठ रही तो तय मानों भारतवंशियों तुम खतरे में हो। मैं एक घटना का उल्लेख जरूर करूंगा कि भोपाल में अपने क्लास में मैंने कहा था कि हिंदू मैं हूं या नहीं तथा हिंदू शब्द ने मुझे क्या दिया है, पता नहीं। इस पर पूरी क्लास में मेरा मखौल उड़ा पर मुझे लगता है कि शायद मैं सही था। अगर हम दूसरों के दुख से दुखी न हो पायें , राष्ट्र की अस्मिता पर संकट के वक्त न बोल पायें , भिक्षुणी से बलात्कार हो, मासूमों से जिंदगियां छीनी जा रही हों और मैं(भारतीय) चुप रहूं तो शायद मैं अपने अस्तित्व से खिलवाड़ कर रहा हूँ। अगर देश की धरती को रौंदते हुए हम जी रहे हैं तो उसकी अहमियत हमें शायद हर साल में समझनी होगी। वरन् मैं तो इस धरती से दूर हूँ. इसे कहने से हमें कोई गुरेज नहीं होना चाहिए।
रवि शंकर, छात्र ,माखन लाल यूनिवर्सिटी भोपाल
अच्छी लगे तो ईमेल से भी पढें कहीं कुछ छूट नही जाए
श्रीमान वैसे तो हिन्दुत्व की बोहोत सी परिभाषाये आई है,
ReplyDeleteलेकिन फिर भी अभी तक कोई ऐसे ठोस परिभाषा नहीं है जिसके आधार पर एक आदमी का हिंदुत्व से सही सही रिश्ता बताया जा सके या हिंदुत्व को परिभाषित किया जा सके.....
लेकिन हाँ अगर इसका अध्ययन किया जाये तो आपको पक्का पता चलेगा की ये सबसे अलग है( जो इसे महान बनता है )
कुछ लोग ऐसे भी है जो धरम का नाम लेकर कुछ गलत कम कर जाते है कभी कभी जिस से खुद धर्म की छवि पैर भी नुकसान पहुचता है....
हमारे धर्म की एक ख़ास बात ये है की ये हर पक्ष की या गुड की वकालत करता है ....
और धर्मो की तरह ये इस बात को नहीं कहता की भगवान् और शैतान में कोई लडाई है...इसके अनुसार शैतान को भी भगवन ने बनाया है और इन्सान को भी इसी प्रकार ये अहिंसा का भी पक्ष लेता है और हिंसा का भी,तो यदि अगर अपनी अपनी रक्षा के लिए हिंसा की जरुरत पड़े तो इसमें गलत ही क्या है ??
कायर और मूर्ख और पाक-चीन-परस्त अपने को हिन्दू न कहें, इसी में हिन्दुत्व की भलाई है।
ReplyDeleteहिन्दू एक धर्म, संप्रदाय या मजहब है ही नहीं वह एक प्राचीन राष्ट्रीयता है। जिसे अब धर्म घोषित कर उसे जबरन मनवाया जा रहा है। अधिक से अधिक वह प्राचीन भारत की वह उदार जीवन शैली है जिस में सब पनाह पाते थे। लेकिन अब यह पनाहगाह छोटी पड़ने लगी है। इसे अब हिन्दू कहना ही उस प्राचीन राष्ट्रीयता का अपमान है। जैसे संजय, वरुण के साथ गांधी शब्द अपमानित होता है।
ReplyDeleteरवि अच्छा है आप मानवीय और तार्किक ढंग से सोचरहे हैं।
ReplyDelete'हिंदू' शब्द की परिभाषा
ReplyDeleteभारत वर्ष में रह कर अगर हम कहें की हिंदू शब्द की परिभाषा क्या हो सकती है? हिंदू शब्द किस प्रकार से प्रयोग किया जाता है? आख़िर क्या है हिंदू? तो यह एक अजीब सा सवाल होगा लेकिन यह एक सवाल है कि जिस हिन्दू शब्द का इस्तेमाल हम वर्तमान में जिस अर्थ के लिए किया जा रहा है क्या वह सही है ?
मैंने हाल ही में पीस टीवी पर डॉ ज़ाकिर नाइक का एक स्पीच देखा, उन्होंने किस तरह से हिंदू शब्द की व्याख्या की मुझे कुछ कुछ समझ में आ गया मगर पुरी संतुष्टि के लिए मैंने अंतरजाल पर कई वेबसाइट पर इस शब्द को खोजा तो पाया हाँ डॉ ज़ाकिर नाइक वाकई सही कह रहे हैं. हिंदू शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई, कब हुई और किसके द्वारा हुई? इन सवालों के जवाब में ही हिंदू शब्द की परिभाषा निहित है|
यह बहुत ही मजेदार बात होगी अगर आप ये जानेंगे कि हिंदू शब्द न ही द्रविडियन न ही संस्कृत भाषा का शब्द है. इस तरह से यह हिन्दी भाषा का शब्द तो बिल्कुल भी नही हुआ. मैं आप को बता दूँ यह शब्द हमारे भारतवर्ष में 17वीं शताब्दी तक इस्तेमाल में नही था. अगर हम वास्तविक रूप से हिंदू शब्द की परिभाषा करें तो कह सकते है कि भारतीय (उपमहाद्वीप) में रहने वाले सभी हिंदू है चाहे वो किसी धर्म के हों. हिंदू शब्द धर्म निरपेक्ष शब्द है यह किसी धर्म से सम्बंधित नही है बल्कि यह एक भौगोलिक शब्द है. हिंदू शब्द संस्कृत भाषा के शब्द सिन्धु का ग़लत उच्चारण का नतीजा है जो कई हज़ार साल पहले पर्सियन वालों ने इस्तेमाल किया था. उनके उच्चारण में 'स' अक्षर का उच्चारण 'ह' होता था|
हाँ....मैं, सलीम खान हिन्दू हूँ !!!
हिंदू शब्द अपने आप में एक भौगोलिक पहचान लिए हुए है, यह सिन्धु नदी के पार रहने वाले लोगों के लिए इस्तेमाल किया गया था या शायेद इन्दुस नदी से घिरे स्थल पर रहने वालों के लिए इस्तेमाल किया गया था। बहुत से इतिहासविद्दों का मानना है कि 'हिंदू' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अरब्स द्वारा प्रयोग किया गया था मगर कुछ इतिहासविद्दों का यह भी मानना है कि यह पारसी थे जिन्होंने हिमालय के उत्तर पश्चिम रस्ते से भारत में आकर वहां के बाशिंदों के लिए इस्तेमाल किया था।
धर्म और ग्रन्थ के शब्दकोष के वोल्यूम # 6,सन्दर्भ # 699 के अनुसार हिंदू शब्द का प्रादुर्भाव/प्रयोग भारतीय साहित्य या ग्रन्थों में मुसलमानों के भारत आने के बाद हुआ था।
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'द डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया' में पेज नम्बर 74 और 75 पर लिखा है कि the word Hindu can be earliest traced to a source a tantrik in 8th century and it was used initially to describe the people, it was never used to describe religion... पंडित जवाहरलाल नेहरू के मुताबिक हिंदू शब्द तो बहुत बाद में प्रयोग में लाया गया। हिन्दुज्म शब्द कि उत्पत्ति हिंदू शब्द से हुई और यह शब्द सर्वप्रथम 19वीं सदी में अंग्रेज़ी साहित्कारों द्वारा यहाँ के बाशिंदों के धार्मिक विश्वास हेतु प्रयोग में लाया गया।
नई शब्दकोष ब्रिटानिका के अनुसार, जिसके वोल्यूम# 20 सन्दर्भ # 581 में लिखा है कि भारत के बाशिंदों के धार्मिक विश्वास हेतु (ईसाई, जो धर्म परिवर्तन करके बने को छोड़ कर) हिन्दुज्म शब्द सर्वप्रथम अंग्रेज़ी साहित्यकारों द्वारा सन् 1830 में इस्ल्तेमल किया गया था|
इसी कारण भारत के कई विद्वानों और बुद्धिजीवियों का कहना है कि हिन्दुज्म शब्द के इस्तेमाल को धर्म के लिए प्रयोग करने के बजाये इसे सनातन या वैदिक धर्म कहना चाहिए. स्वामी विवेकानंद जैसे महान व्यक्ति का कहना है कि "यह वेदंटिस्ट धर्म" होना चाहिए|
इस प्रकार भारतवर्ष में रहने वाले सभी बाशिंदे हिन्दू हैं, भौगोलिक रूप से! चाहे वो मैं हूँ या संजय सेन सागर जी या कोई अन्य |
आपकी आलोचनाओं का स्वागत है|
सलीम खान
स्वच्छ सन्देश : हिन्दोस्तान की आवाज़
लखनऊ व पीलीभीत, उत्तर प्रदेश
http://swachchhsandesh.blogspot.com
साथ ही मेरे लेख यहाँ भी हैं
http://yaadonkaaaina.blogspot.com
दिनेश जी व सलीम जी से सहमति है।
ReplyDeleteक्या क्या कहलाने से कतराएँगे? जब कोई पुरुष बलात्कार करता है तो पुरुष होने से, जब मनुष्य क्रूर होता है तो मनुष्य होने से ? मूक दर्शक बना रहना सही न भी हो तो भी गलत न करना, गलत का साथ न देना और इस तरह से लिखकर गलत का विरोध करना भी सही है।
घुघूती बासूती
हिन्दु कहने से शर्म आए तो सनातन कह लो.
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