भौतिकवाद ने इन्सान को ऐसा जकड़ रखा है कि हर कोई स्वयंभू ईश्वर हो गया है. फिर उसे किसी देवी-देवता को याद करने की आवश्यकता क्यों हो. आपने लेख बहुत अच्छे तरीके से लिखा है, शालीन व्यंग्य की धार ने इसे मार्मिक भी बना दिया लेकिन केवल सम्वेदनशील लोगों के लिए. मां का ऑनलाइन मिलना भी आपने एक अस्त्र के रूप में परोस दिया है जिससे आज के इन्सान को और भी सुविधा मिल जायेगी. अभी तक तो लोक लाज के डर से लोग मन्दिर चले भी जाते थे, अब तो यह बता देंगे कि वे ऑनलाइन दर्शन कर लेते हैं.
यार कुछ ले दे कर हमे भी दर्शन करवा दो ना, अकेले अकेले ही मां को मिल लिये ?? केसे ब्लांगर हो भाई ? चलो हम सब को उन का लिंक ही दे दो, यहां तो आप ने दर्शन करवाये नही. जय माता दी
भौतिकवाद ने इन्सान को ऐसा जकड़ रखा है कि हर कोई स्वयंभू ईश्वर हो गया है. फिर उसे किसी देवी-देवता को याद करने की आवश्यकता क्यों हो. आपने लेख बहुत अच्छे तरीके से लिखा है, शालीन व्यंग्य की धार ने इसे मार्मिक भी बना दिया लेकिन केवल सम्वेदनशील लोगों के लिए. मां का ऑनलाइन मिलना भी आपने एक अस्त्र के रूप में परोस दिया है जिससे आज के इन्सान को और भी सुविधा मिल जायेगी. अभी तक तो लोक लाज के डर से लोग मन्दिर चले भी जाते थे, अब तो यह बता देंगे कि वे ऑनलाइन दर्शन कर लेते हैं.
ReplyDeleteयार कुछ ले दे कर हमे भी दर्शन करवा दो ना, अकेले अकेले ही मां को मिल लिये ?? केसे ब्लांगर हो भाई ? चलो हम सब को उन का लिंक ही दे दो, यहां तो आप ने दर्शन करवाये नही.
ReplyDeleteजय माता दी