शर्म आने लगी है ऐसे भेड़ियों को चुनने में

पंद्रहवें आम चुनाव के लिए हो रहे चुनाव प्रचार में राजनेताओं का जो वाकयुद्ध हो रहा है उसमें विचारधारा, नीतियॉंऔर आम आदमी के मुद्दे नदारद हैं। यहॉं तो बस सड़कछाप गुण्डों की तरह लड़ाई छिड़ी दिख रही है। जो बीच बाज़ारएक-दूसरे को गाली दिए जा रहे हैं, बिना इस बात की चिंता किए कि सड़क से गुजरने वाले दूसरे लोग उन्हें क्याबोलेंगे। आडवाणी कह रहे हैं कि मनमोहन कमजोर प्रधानमंत्री हैं और सोनिया कह रही हैं आडवाणी आरएसएस केगुलाम हैं। एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए जिससे जो संभव हो रहा है वो कर रहा है और कह रहा है। किसीकोइस बात की चिंता नहीं है कि देश की जनता को इसी कमजोर प्रधानमंत्री और आरएसएस के गुलाम में से किसीएक को देश की बागडोर सौंपनी है। चाहे कांग्रेस हो या भाजपा या तीसरे मोर्चे के नेता। किसी को इस बात की फिकरनहीं है कि आजादी के परवानों ने इस देश में एक ऐसे लोकतंत्र की नींव रखी है जिसमें जनता ही जनार्दन है। लेकिन बरस बाद लगता है कि हमारे नेताओं को लोकतंत्र की अवधारणा याद नहीं रह गई है। लोकतंत्र का दिल लोकसेवा है। लेकिन अब तो नेताओं के भाषण और उनकी करतूतें देखकर लग रहा है कि ये सब राजसत्ता के भूखे भेड़िए हैं। इन्हें देश की जनता के ईमान से कोई सरोकार नहीं। सब के सब एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं।सब दूसरे की थाली में छेद ढूंढ रहे हैं। देश की तरक्की का खाका किसी के पास नहीं है। किसी को 62 सालों के इसआजाद दौर की परवाह नहीं। इस बात पर किसी को शर्म नहीं आ रही है कि इतने सालों बाद भी हम कहॉं खड़े हैं।राजनीतिक दलों के ऐजेण्डे लोकलुभावन वादे से अटे पड़े हैं। कोई कह रहा है हम 2 रुपए किलों खाद्यान्न देंगे तोकोई एक रुपए किलो देने की बात कह रहा है। लेकिन इनको इस बात की कोई परवाह नहीं कि अभी तक आप जो रुपए और 4 रुपए किलो दे रहे थे क्या वो उन जरुरतमंदों तक सही अनुपात और समय पर पहुँच पाया। अगरनहीं पहुँच पाया तो कौन है इसके लिए जिम्मेदार। सत्ता सुंदरी के साथ शयन करने की इनकी कामना ने इन्हें अंधाबना दिया है। इनके आक्षेप के केन्द्र में विचारधाराएं और सिद्धांत नहीं `बुढ़िया´ और `गुड़िया´ आ गई है। बेहतर होगा यदि नेता अपनी बयानबाजियों से लोकतंत्र के सवा अरब नुमाइंदों को शर्मिंदा न करें। क्योंकि इनकी बात सुनकर अब हमें इस बात पर शर्म आने लगी है कि हम इस लोकतंत्र के लोक हैं, जो ऐसे भूखे भेडियों को अपने मतसे चुनकद संसद और विधानमंडलों तक भेजते हैं। ऐसे भेड़िए जिन्हें अपनी कुर्सी के आगे देश की अस्मिता और गरिमा सब कमतर लगे।

नए लेख ईमेल से पाएं
चिटठाजगत पर पसंद करें
टेक्नोराती पर पसंद करें
इस के मित्र ब्लॉग बनें

6 comments:

  1. भाई आपका राजनीति पर लिखा गया लेख काफी अच्छा है। इस लेख से देश रहे घटना चक्र का सही पता चलता है

    ReplyDelete
  2. बहुत शर्मीले हैं आप!! ऐसे कैसे चलेगा!!

    ReplyDelete
  3. लगता है, चुनाव की इस पद्यति की हवा निकलने ही वाली है।

    ReplyDelete
  4. पर अफसोस कि हमें इनमें से ही एक को चुनना है।
    ----------
    जादू की छड़ी चाहिए?
    नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?

    ReplyDelete
  5. लाज तो हमको आती है यार मगर क्या करें।
    जानते हो भारत की जनता अब उतनी भोली नहीं रही कि नेता ऐसी डायलागबाजी करके उसे मूर्ख बना लें। कहने का मतलब ये कि जनता समझती है कि क्यों अचानक हर पांचवे साल बिना किसी षर्म के भाजपा मंदिर निर्माण फैक्टरी में तब्दील हो जाती है और क्यों ंकोई एक रुपये तो दूसरा पचास पैसे किलो अनाज देने की दानवीरता हांकने लगता है।

    लााज जनता की होशियारी ही है जो आडवाणी, वरुण, मनमोहन, मोदी, लालू, जैसेों को ऐसे बहके बयान देने को प्रेरित कर रही है। क्या ये महज संयोग है कि लालू किषनगंज में वरुण पर रोलर चलवाते हैं और दरभंगा में आडवाणी को ये चुनाव हर जगह मुद्दा विहीन नहीं है मुद्दा ह।ै लेकिन वह राज्यों में है और स्थानीय विकास का मुद्दा है। चाहे वह बिहार हो या छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश हो या उत्तर प्रदेश.........

    ReplyDelete