के देखो कैसे भूरी मिटटी काली काली बन जाती है .
कैसे मेंडक ऊपर आकर, टर टर का राग सुनाते हैं .
फिर रातों को आ आ के जुगनू गीत सुनाते हैं .
मनो कहते हों प्रेम गीत, कोई मधुर युगल, कोई मधुर प्रीत,
थकते हैं कहाँ बस गाते हैं , हम सुनते हैं, वो गाते हैं .
सरकार की सारी सड़कों की, सब नालों की, सब पुलों की,
सब नई पुरानी रेलों की, हवाईजहाज और खेलों की
सारी पोलें खुल जाती हैं.
अख़बारों में फिर पांडे जी वही खबरें लिख जाते हैं.
ऐसा लगता इसबार मुझे भजिये न कहीं मिल पायेंगे.
अब दिल्ली में तो बस हम मोमोस से काम चलाएंगे
चलो सावन कोई बात नहीं , तुम तो पुराने साथी हो
हम फिर मिलेंगे भोपाल में, फिर तुम संग मौज मनाएंगे .
नए लेख ईमेल से पाएं
चिटठाजगत पर पसंद करें
टेक्नोराती पर पसंद करें
इस के मित्र ब्लॉग बनें
No comments:
Post a Comment