बाबा भोले का बुलावा आया है , मुझे सपरिवार बुलाया है, कहा है पहलगाम के रास्ते आना ,वहां का मौसम मैंने सुहाना बनाया है , मैं जब तुम्हारी माता पार्वती को लेकर गुफा में जा रहा था तब मैंने वहां नंदी महाराज को छोड़ दिया था , फ़िर क्या था वहां से हम भी पैदल हो लिए , भाई क्या नज़ारा होता है वहां का तुम जब आओ तो वहां पूरी शाम रुक कर घूमना, जहाँ तुम्हारा आधार शिविर है वहां पास से एक नदी जाती है उसे देखना, चाँदी जैसी चमकती है नदी । अरे हाँ तुम्हे पता है वहां एक घाटी है बेताब घाटी । वहां वो तुम लोग क्या कहते हो फिलिम विलिम , हाँ बेताब , उसको वहीं बनाया था । पर तुम वहां मत जन तुम तो मेरे पास आ जाना । रात में बढिया आधार शिविर में जाना , धूम मचाना , भजन गाना , ढोल बजाना , भोजन करना , मैं वहीं रहूँगा मुझे ढूंढ़ना । सुबह तुम फ़िर चंदनवाडी जाओगे , हम तो पैदल गए थे 16 किलो मीटर पर तुम्हारे लिए तो बस का इन्तेजाम है , जाओ बढिया वहां सुबह सुबह नदी मैं नहाओ और यात्रा चालू कर दो । हाँ पर याद रखना साथ में स्वेटर, जैकेट, गरम मोजे, दस्ताने, टोपा , छाता, बरसाती, टॉर्च, पानी की बोतल, सुई धागा जरुर रखना, और जूते जरा ढंग के पहनना , ये नही के रस्ते में बैठ गए के पाँव में दर्द हो रहा है बाबा, में नही आ पाउँगा फ़िर , अभी बता रहा हूँ ।अच्छा सुओ मैंने यहाँ तुम्हारे चंदा मामा को छोडा था , तभी तो इसका नाम चंदनवाडी पड़ा है , उसका उजाला अभी भी है वहां , तुम जब यात्रा शुरू करोगे तो पाओगे की पहाड़ ही पहाड़ हैं , धूल ही धूल है , ये मत समझना के चाँद पर आ गए, इतना समझना के पिस्सू टॉप की चढाई शुरू हो गई है । ये चढो , बड़ा मज़ा आएगा इस रस्ते पर , अच्छा सुनो कोई बुजुर्ग को समस्या आ रही हो तो हाथ पकड़ के ले जाना , थोडी देर हो जायेगी चलेगा, पर आ जाना फ़िर तुम जोजिबाल और नागा कोटि से होते हुए शेष नाग आ जाना , हां ! जब तुम यहाँ पहुँच रहे होगे तो तुम्हे एक खूबसूरत तालाब मिलेगा । इस तालाब का पानी घोर नीला और अपने में रहस्य लिए हुए है ! तो जब मैं जा रहा था तब मैंने कंधे पर बठे भुजंग महाराज याने शेष नाग जी को यहाँ छोड़ दिया था तभी से इस जगह का नाम शेष नाग पड़ा है ।यहाँ पूरी रात विश्राम की व्यवस्था है । चारों और सुरम्य वादियों से घिरी वादी कहीं हरी चादर ओढी दिखाई देगी कहीं सफ़ेद , दूर दिख रहे पर्वत तक जाना लगेगा तो आसान पर जब पग बढाओगे तो बहुत दूर पाओगे , स्वर्ग है वहां सचमुच स्वर्ग । तुमसे पहले जो लोग आए हैं वोह कहते हैं की यहाँ रात मैं एक नीला उजाला होता है और शेष नाग के दर्शन होते हैं , शेष नाग के दर्शन तो नही पर चाँद रात में वहां उस नीले रौशनी को देखना बहुत ही मोहक होता है । ज्यादा थकना मत सो जाना सुबह जल्दी उठाना है फ़िर पञ्चतरनी से होते हुए गुफा तक भी तो आना है, इस यात्रा का सबसे खूब सूरत पड़ाव है ये और आगे मिलने वाले सौन्दर्य की झलक भी । सुबह उठ के जब यात्रा शुरू होगी तब एह्साह होगा सर्दी का और ये सर्दी अब कम नही होने वाली , आगे है महागुनस टॉप , शब्द से शायद समझे हो की हम महा गणेश की बात कर रहे हैं । महा गणेश के उदर की तरह ही विशाल और उनके दांतों की तरह सफ़ेद बरफ , ऊंचाई भी अब तक की सबसे ज्यादा होगी पूरे चौदाह हज़ार पॉँच सौ फीट ऊपर, यहाँ श्वास वायु का भी स्तर कम हो जाता है इसलिए किसी भी साथ चलने वाले से कहना के आराम से चलो ज्यादा उर्जा खत्म मत करो आगे बहुत यात्रा बाकि है । इस पर्वत का पार करते यात्रा का सुखद अनुभव अपने चरम पर होगा , यहाँ बरफ में अटखेलियाँ करने का भी अपना की आनंद है । अगला पड़ाव होगा पंचतरनी ।पंच तरनी अगर दोपहर १२ बजे तक पहुँच जाओ तो ठीक है आगे बढ जाना नही तो यात्रा यही विराम दे देना , इस यात्रा का एक महत्त्व सुदूर वादियों में निकल रही इन पॉँच जल धाराओं में स्नान करना भी है । पॉँच पर्वत और पॉँच धाराएं ही बनती है इस पंचतरनी नदी को । निर्मल स्वच्छ जल में स्नान का अपना ही आनंद है, फ़िर यात्रा भी हमारी याने बाबा बर्फानी की है ।अब ये अन्तिम पड़ाव होगा तुम्हारी यात्रा का जहाँ कुछ ३ किलोमीटर पैदल चल कर संगम पहुंचोगे जहाँ से बालताल से आने वाले भक्तों का जत्था भी तुम्हारे साथ हो लेगा । एक लम्बी कतार में बम बम भोले के नाम के जयकारे लगते हुए आ जाना मेरे पास , मेरी गुफा में , बस बाकि तो निरंतर चलता ही रहेगा । तुम्हे ये मेरा बुलावा है "की आना प्यारों संग भक्तार "
बहुत धन्यवाद जी इस पावन मनोरम यात्रा का विवरण बताने के लिये. सचमुच आनंद आगया. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने, चलिये घुम आये, फ़िर आ कर बताये साथ मै सुंदर सुंदर चित्र भी दिखाये.
ReplyDeleteधन्यवाद
आभार जानकारी का.जय बाबा भोले नाथ की.
ReplyDeleteधन्यवाद राज जी , आपकी बात पर बिलकुल अमल होगा , वापसी पर ढेर सारी यादें आप से साझा करेंगे
ReplyDeleteसधन्यवाद
मयूर
समीर महाराज जी ,
ReplyDeleteआभार तो भोले नाथ का ही है , हम तो एक माध्यम मात्र हैं .
सधन्यवाद,
मयूर