ठिठुरता हुआ गणतंत्र - हरिशंकर परसाई

ठिठुरता हुआ गणतंत्र 

स्वतंत्रता-दिवस भी तो भरी बरसात में होता है। अंग्रेज बहुत चालाक हैं। भरी बरसात में स्वतंत्र करके चले गए। उस कपटी प्रेमी की तरह भागे, जो प्रेमिका का छाता भी ले जाए। वह बेचारी भीगती बस-स्टैंड जाती है, तो उसे प्रेमी की नहीं, छाता-चोर की याद सताती है।
स्वतंत्रता-दिवस भीगता है और गणतंत्र-दिवस ठिठुरता है।

मैं ओवरकोट में हाथ डाले परेड देखता हूँ। प्रधानमंत्री किसी विदेशी मेहमान के साथ खुली गाड़ी में निकलती हैं। रेडियो टिप्पणीकार कहता है-’घोर करतल-ध्वनि हो रही है।’ मैं देख रहा हूँ, नहीं हो रही है। हम सब तो कोट में हाथ डाले बैठे हैं। बाहर निकालने का जी नहीं हो रहा है। हाथ अकड़ जाएँगे।

लेकिन हम नहीं बजा रहे हैं, फिर भी तालियाँ बज रहीं हैं। मैदान में जमीन पर बैठे वे लोग बजा रहे हैं, जिनके पास हाथ गरमाने के लिए कोट नहीं है। लगता है, गणतंत्र ठिठुरते हुए हाथों की तालियों पर टिका है। गणतंत्र को उन्हीं हाथों की ताली मिलतीं हैं, जिनके मालिक के पास हाथ छिपाने के लिए गर्म कपड़ा नहीं है। पर कुछ लोग कहते हैं-’गरीबी मिटनी चाहिए।’ तभी दूसरे कहते हैं-’ऐसा कहने वाले दल प्रजातंत्र के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं ।’

https://youtu.be/c3752FVqzqU

-हरीशंकर परसाई

अमीर खुसरो- बसंत


बसंत होता ही है नया, और अपने गुरु के साथ जो बसंत मानाने को मिल जाए तो फिर बात ही क्या, सुनिए ये ऑडियो ब्लॉग :-


हाथ लागी-लागी नई धूप,
दीखे, धुली साफ मन की चदरिया
दसों दिशा आज सांवरिया
लिए नया रूप..


आज बसंत मनाले सुहागन - 
अज बसंत मनाले सुहागन, 
आज बसंत मनाले; 
अंजन मन कर पिया मोरी, 
लम्बे नेहर लगाये; 
तू क्या सोवे नीन्द की मासी, 
सो जागे तेरी बात, सुहागुन, 
आज बसंत मनाले; 
ऊँची नार के ऊँचे चितवन, 
आयसो दियो है बानाये; 
शाह-ए आमिर तोहे दीखन को, 
नैनन कह नैना मिलै, सुहागुन, आज बसंत मन लाये।



सकल बन फूल रही सरसों
बन बन फूल रही सरसों
अम्बवा फूटे टेसू फूले
कोयल बोले डार-डार
और गोरी करत सिंगार
मलनियाँ गढवा ले आईं कर सों
सकल बन फूल रही सरसों
तरह तरह के फूल खिलाए
ले गढवा हाथन में आए
निजामुद्दीन के दरवज्जे पर
आवन कह गए आशिक़ रंग
और बीत गए बरसों
सकल बन फूल रही सरसों

वैसे तो इस गीत को कई कलाकारों ने अपने अपने तरीके से  गाया है , मैं आपको यहाँ छोड़े जा रहा हूँ सारा रज़ा की इस  प्रस्तुति के साथ 


फेफड़ों को ३ दिन में साफ़ करने के उपाय

फेफड़ों को ३ दिन में साफ़ करने के उपाय पहले दिन रात को सोने से पहले ग्रीन टी पियें • अगले तीन दिन दूध से जुडी कोई भी चीज़ नहीं लेनी है, दूध, दही, मक्खन, घी, छाछ आदि • स्मोकिंग नहीं , तम्बाकू नहीं • गरम पानी से नहाना है , निलगिरी के तेल की १० बूंद डालकर , भाप लेनी है • रोज १ km सुबह शाम चलना है • लम्बी लम्बी सांसें लेना है , जब जब समय मिले १. सुबह उठ कर २ निम्बू ३०० ml पानी में निचो कर के पी लें २. आधे घंटे बाद ३०० ml अंगूर या पाइनएपल का जूस पियें , नाश्ते के साथ ३. २ घंटे बाद और खाने से पहले गाजर का जूस पियें ३०० ml ४. खाने के साथ ४०० ml गाजर, धनिया, पालक, अजवायन का जूस . ५. रात को सोते समय cranberry जूस ऊपर १ से ५ तक तिन दिन लगातार

स्वप्न का जीवन

तुम मेरे सपनों में साथ चलो,
मैं तुम्हारे स्वप्न संवारूँगा।
कुछ कदम जो मेरे साथ चलो,
मैं हर पल तुम्हे पुकारूँगा।

तुम बिन मैं या मुझ बिन तुम,
ये मेरे बस की बात नहीं।
इस आधे आधे जीवन को,
मैं पूरे मन से बिता दूंगा

साथ चलो

उठो और चलो
और तब तक चलते रहना
जब तक पैर दर्द न करने लगें।
फिर तब तक, जब तक पैर जकड न जाएं।
और फिर तब तक जब तक पैर टूट ही न जाएं।
तुम कितने भी रहमदिल हो
खुद के लिए बेरहम ही बने रहना।

और पीछे मुड़कर मदद मांगने का ख्याल भी मत लाना
आगे मतलबी सन्नाटा है तो पीछे चापलूस शून्य
जो पीछे तो है पर सिर्फ तब तक तुम चल पा रहे हो।

दर्द के अहसास के आगे
खूब आगे
इन सन्नाटों से दूर, बहुत दूर ,
पर तुम्हारे एकदम नज़दीक
कहीं बसती है वो मंज़िल जहाँ का सपना तुमने मेरे साथ देखा था।

आज मैं कहाँ हूँ मत पूछो
शायद कहीं पीछे छूट गया हूँ
पर अपने साथ अगर ले चलोगे तो शायद मेरी ज़िद्द और तुम्हारा जूनून, मेरी तरफदारी और तुम्हारा तराज़ू, मेरी तसल्ली और तुम्हारा तसव्वुफ़ हमारी ताकत बने और हम पहुचें उस मंज़िल तक जो हमारे ख्वाबों में बसती है ।