बनारस की होली (रंग बरसे आप झूमे श्रृंखला भाग २ )

तो आइये अपने सफर के दूसरे पड़ाव पर चलते हैं पड़ाव है बनारस,भगवन भोले नाथ की नगरी में . मैं यकीं दिलाता हूँ की ये आनंद अभी और बढता ही जाएगा मील दर मील ,कोस दर कोस तो चलिए बनारस होली मानाने .
वैसे तो बनारस की बात ही निराली है, चाहे बनारसी पान हो, बनारसी साड़ी हो या वहां की गलियां, मंदिर, लंगड़ाआम, गंगा घाट या बनारसी चाई (ठग)- यह सभी बनारस को अनूठेपन से भरने का काम करते हैं। इन सब के बीच काशी की होली का अपना अलग ही महत्व है। फागुन के मौसम का सुहानापन संपूर्ण बनारस को जीवंतता से भर देता है। इस शहर की फिजाओं में रंगो का अहसास बहुत आसानी से किया जा सकता है। वैसे भी रंगों में अपना रंग नहीं होता परंतु काशी के वातावरण में संपूर्ण शहर रंगमय हो जाता है। बाबा विश्वनाथ की इस नगरी में आप फागुनी बयार को देखकर भारतीय संस्कृति का दीदार कर सकते हैं। इस शहर की संकरी गलियों से होली के गीतों की सुरीली धुन अथवा चौराहों पर के होली मिलन समारोह अपने आप में बेजोड़ हैं। बनारस को फागुन में महादेव का भरपूर आशीर्वाद मिलने से गंगा के घाटों पर प्रेम का नशा चढ़ सा जाता है। काशीवासियों के साथ-साथ भारत केअन्य हिस्सों से आये लोगों के अलावा दूर देशों के सेलानियों से काशी संजीदगी से भर उठता है। खास तौर पर होली के दिन काशी की मटका फोड़ होली और संपूर्ण शहर में गाए जाने वाले होली के लोकगीत शहर को उर्जामय और प्रेम से सराबोर कर देते हैं। काशी की विद्वत परंपरा के साथ-साथ हम फाल्गुन में गंगा की लहरों में एक उमंग का दीदार कर सकते हैं। रंगो के मौसम में आप गंगा तट पर खड़े होकर सुबह--बनारस को अपनी आंखों में संजो कर रख सकते हैं। काशी में आप इस मौसम में पाएंगे कि संपूर्ण कायनात आपका स्वागत कर रही है। गंगा की अविरल धारा में आप अतीत की यादों के झरोखे में आसानी से गोते लगा सकते हैं। फाग के इस त्यौहार में बनारस का रंगनिरंतर प्रगाढ़ होता जाता है। बनारस की हवाओं में आप एक सिहरन महसूस कर सकते हैं, जो शहर की विविधताओं का अहसास कराती हैं। इस मौसम में शहर में मिठाई की दुकानों पर दही, लस्सी, लोंगलता और गुजिया की भरमार से वास्ता पड़ने पर इस शहर का स्वाद भी अंतरंग में गहरे उतरता है। विश्व की प्राचीन नगरी को सदैव दैवीय पुण्य मिलता रहा है। इसी कारण इस नगरी में हम रंगों में डूबकर होली के रंगों से खेल पाते हैं . बाबा भोले की नगरी में गंगा-जमुना तहजीब का नजारा बरबस ही दिखने लगता है। मालवीय जी के कर्म क्षेत्र से रौशन यह शहर लोगों के दिलों को एक रंग में रंग देता है, जिसको आसानी से देखा जा सकता है।
वर्तमान दौर में तमाम प्रगतियों के बावजूद लोगों के दिलों की दूरियां बढ़ती जा रही है। ऐसे में अगर शिव के त्रिशूल पर बसे नगर की होली से हम शहर की होली से हम दिलेरी और प्रेम को आत्मसात कर सकें तो शायद हमारी होली भी सही अर्थों में नायाब बन जाए।
कूचा--यार ऐन काशी है।
जोगिए दिल वहां का वासी है ।
वली दकनी जैसे मशहूर शायर की इन पंक्तियों से हम देश की संस्कृति और परंपरा के प्रति त्याग और मोह पैदा कर सकें तो सचमुच मानवता से भरे इस पर्व का रंग सब पर चढ़ेगा और हम प्रेम की अविरल गंगा कहीं भी बहा सकेंगे।
बम बम बोल रहा है कशी तो आप भी बोलिए ब बम बम्ब बम ब बम बम्ब बम बम बम बम और झूम उठिए भोले बाबा के इस गीत के साथ ।
जो बोले भोलेनाथ जय जय विश्वनाथ
रविशंकर सिंह


रंग बरसे ...आप झूमें श्रंखला भाग १

होली रंगो का त्यौहार है। रंग जीवन के विविध रुपों का प्रतीक माने जाते हैं। खुशी और उल्लास के प्रतीक इस पर्व पर हम भी आपके साथ शरीक होना चाहते हैं। रंगों के इस उत्सव को बहुरंगी बनाने के लिए हम एक नई श्रृंखला शुरु कर रहे हैं। इसमें हम कलम के साथ संगीत की भी तान छेड़ेंगे। उम्मीद है हमारी इस महफिल में आप बोर नहीं होंगे।
आज पहला दिन है और शुरुआत अगर राधे के नाम से हो तो आगे आते आते श्री कृष्ण का आना तय माना जा सकता है , अपनी नित्य निकुंज बिहारणी राधा मैया बरसाने वाली है और फिर बरसाने की होली तो वैसे ही प्रसिद्ध है ,आपने कभी बरसाने की होली देखी हो तो आप जानते ही होंगे , जब नंदग्राम के गोपी राधे के गाँव बरसाने जाते हैं और वहां की गोपियाँ उनका स्वागत लट्ठ से करती हैं ,आहा!! फिर क्या है आप बजने दीजिये सुर और ताल और झूमिए श्रीराधे जी का नाम लेकर ,अगले दिन फिर बारी पुरुषों की होती है और होती है रंग और गुलालों की होली . इसी बीच सुंदर संगीत मन को बार बार छू जाता है हमारी कोशिश है ब्रज से दूर बैठे उन लाखों लोगों को श्री राधे रानी से और उनकी होली से जोड़ने की ,आगे हम और भी प्रस्तुतियां देंगे जिसमे कोशिश होगी देशभर की होली के रंग में रंगने की और कुछ मधुर मधुर संगीत प्रेषित करने की तो फिर क्या है श्री राधे का नाम लीजिये
नीचे श्री राधे का एक मधुर गीत है सुनी और कही श्री राधा राधा .....
होली पर यदि आप भी कुछ लिख कर देना चाहें और कुछ गाने सुझाने चाहें तो ज़रूर बताएं .
श्री राधा राधा .....


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यदि फायर फॉक्स पर गाना सुनाई नही दे रहा हो तो इन्टरनेट एक्स्प्लोरर पर देखें

सूरत बदलने के संकल्प के साथ पीपुल्स का आगाज:

पीपुल्स समाचार का आगाज हो चुका है। जन के मन को जीवन बनाने और गण में गुणों की वृद्धि का संकल्प लिए पीपुल्स समाचार राजधानी के पत्रकारिता पटल पर दाखिल हुआ है।

प्रवेशांक में समूह संपादक महेश श्रीवास्तवजी ने दुष्यंत कुमार को उद्धृत करते हुए लिखा है कि हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, कोशिश है ये सूरत बदलनी चाहिए। पहले तीन अंकों के आधार पर कुछ ज्यादा कहना ठीक नहीं होगा। सूरत बदलने की कोशिश की दिशा को समझने के लिए अभी थोड़ा इंतजार करना होगा।

ले आऊट और प्रिंटिंग से अखबार की सूरत जरुर निखर सकती है पर समाज की नहीं। समाज और देश की सूरत बदलने के लिए रिपोर्टिंग को धारदार बनाना होगा। हालॉंकि पाठकों तक अखबार पहुँचाने की रणनीति में पीपुल्स शुरुआती दौर में सफल दिख रहा है। अभी बस इतना ही आगे- देखते हैं कहॉं जय होगी, कहॉं पराजय...

प्यासा न बनाते गुरुदत्त ब्लॉगर बन जाते



यदि गुरुदत्त आज होते तो शायद प्यासा न बनाते, क्योंकि तब उस फ़िल्म मैं उनकी नज्में कोई नही छापता था पर अब तो ब्लॉगर है और फिर कुछ इन्टरनेट विज्ञापन दाता भी हैं अब अगर गुरु दत्त को कोई नही छाप रहा होता और वे गरीब भी होते तो भी वे किसी अब्दुल जब्बार के पुराने होते कंप्यूटर पर अपनी कविता टाइप कर पोस्ट ज़रूर कर देते -,वाह, वाह, फिर क्या था टिप्पणियां आती -लगातार, लाइन से दन्न -दन्न "हिन्दी ब्लॉग जगत मैं आपका स्वागत है , लगातार लेखन के लिए धन्यवाद,आप जब हिन्दी मैं लिखते हैं तो अच्छा लगता है । बहुत सुंदर…॥आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। ‍‍ ‍‍‍ ….. फिर कोई पहले सेव और अब अंगूरों के शहर वाले भइया उन्हें बताते की ब्लॉग से पैसा कैसे कमाया जाए,कुछ गली मोहल्लों मैं उनकी चर्चा होती ,फिर क्या था उनके पास होते इनविटेशन ब्लॉगों पर लिखने के। पता चल रहा है कि भइया पिछले तीन महीने से गुरु दत्त (फ़िल्म किरदार) को उनकी माँ ने देखा ही नही है ,सब जगह उनके भाई भी ढूँढ रहे है की पता नही छोटा भाई कहाँ है,अब तो वो ब्लॉगर हो गया है,और भाभी जी परेशां है कि अभी अगर भइया आ गए और बोलने लगे की मेरी नज्मों वाली फाइल कहां है तो मैं क्या कहूँगी कि वो तो मैंने किसी कबाडी को बेच दी ,वो भी ब्लॉग पोस्टिंग के लिए । फिर कहीं किसी दिन गुरु भइया अपने भतीजे की पकड़ में आ जाते हैं । भतीजा चिल्लाता है दादी वो देखो चाचा जा रहे हैं ,दादी तो देर मैं सुन पाती है पर पहले आस-पास खड़े लोग उनके पीछे हो लेते हैं सब पकड़ लेते हैं कि भइया जरा हमारे ब्लॉग पर कोई कमेन्ट तो दे दो ,अरे ये ही लिख दो की -अच्छा लगा,या ये लिख दो की आपके द्वारा दी गई जानकारी उत्तम लगी,या ये ही लिख दो की एक नया शब्द सीखने को मिला । खैर गुरु साहब ज़रा जल्दी में हैं उन्हें एक ब्लॉगर मीट जो अटेंड करनी है ,मेरठ की ट्रेन पकड़नी है ,शायद अबकी बार कोई भिखारी रस्ते में ठण्ड से ठिठुर भी रहा होगा फिर भी गुरुदत्त साहब अपना कोट निकाल कर उसे नही देंगे क्योंकि सारे ब्लॉगर जो बैठे हैं उधर मेरठ में और फिर बिना कोट के काम कहाँ चलता है ।
खैर इस छोटे से लेख से में सिर्फ़ अपनी उपस्थिति दर्ज करना चाहता हूँ ,अपने ब्लॉग पर क्योंकि ब्लॉग पर पोस्ट न करने की दशा में चिटठा जगत में सक्रियता कम हो जाती है और फिर कोई पढ़े न पढ़े लगना चाहिए कि हम लिख रहे हैं । मैं क्षमा चाहता हूँ जो किसी को बुरा लगा हो मेरा गुरु दत्त जी के जी के बारे में लिखना ,अगर आपत्ति हो बताएं .

वो कहते हैं न कि सब कुछ बच्चा माँ के पेट से सीख कर नही आता अभी हिन्दी ब्लागिंग भी कुछ ऐसी ही स्थिति मैं नज़र आती है, ब्लॉग की मूल अवधारणा अब बदल चुकी है ,ये उन प्रकाशकों और संपादकों के मुँह पर तमाचा मरने की कोशिश करती है जो कई बार नए कवियों की कविता नही छापते और कई बार उन्हें नज़रंदाज़ करते हैं । खैर बहुत कुछ होना अभी बाकी है ,सचमुच बहुत कुछ ,लीजिये आपके लिए एक मधुर सा गाना पेश कर रहा हूँ,गुरुदत्त साहब का ............ ।

श्रमदान के बहाने हम आए हैं फोटू खिचाने


हमारे भोपाल मैं पिछले कई दिनों से फोटो खिंचाओ महोत्स चल रहा है ,जिसमे लोग बड़े तालाब पर सज-धज के आते हैं फावडा तागादी उठाते हैं,थोडी सी मिटटी उठाते निकलते हैं ,फिर मुस्कुराते हुए फोटू खिचाते हैं और निकल जाते हैं ,ऐसा सिलसिला चल रहा है फोटू खिचाने का रोजाना कई वीभागों के ,स्कूल-कॉलेजों के और स्वयं सेवी संस्थाओं के मॉडल आते हैं ,थोड़ा कैट वाक किया और खड़े हो गए पोस देने अब इन तथाकथित मजदूरों को कैसे समझाएँ की भइया यहाँ फोटो खिंचाओ महोत्सव नही श्रमदान उत्सव चल रहा है हमारे शहर के अखबारों को और तथाकथित न्यूज़ चैनलों को भी चैन नही ,लगे हैं फोटो खीचने और शूटिंग करने मैं ,अरे साहब जितना समय इस काम मैं दे रहे हैं उतना अगर श्रमदान मैं देते तो ज़्यादा सार्थक पत्रकारिता होती रोजाना अख़बारों मैं एक फुल पेज श्रमदान के नाम रहता है अलग अलग नामों के सरोकारों से तालाब सोच रहा होगा की अच्छे लोग हैं एक तो मैं बीमार अवस्था मैं हूँ ऊपर से ये मेरी छाती पर मूंग दल रहे हैं क्या ये सब अनुपम मिश्रा देख रहे हैं , शायद नही वरना उनके कदम यहाँ आने के लिए रुकते नही, कोई उन तक पुकार पहुँचा दे तो कुछ बात बने अभी लिखा ही था की पड़ोस से आवाज़ आई ऐ जी सुनती हो तैयार हो जाओ सन्डे है श्रमदान करने चलना है नै सदी पहन लेना वरना फोटो ठीक नही आएगी
एक सुंदर फोटो