31-5-1947 को गाँधी जी द्वारा दिया गया प्रवचन ( पोडकास्ट )


31 मई 1947 को महात्मा गाँधी जी द्वारा की गई प्रार्थना सभा और प्रवचन यहाँ संलग्न कर रहा हूँ । हमारे नेता आज लोगों से बात करना ही भूल गए हैं, उनके लिए सभाएं प्रचार और प्रसार का माध्यम मात्र है, वो भी वोट लेने के लिए, दरअसल सोच अब बदल चुकी है , वे अपने आपको जनता नही समझते और जनता उनको या तो नेता नही समझती या कई बार भगवान समझने लगती है । यहाँ संवाद ख़तम हो चुका है, और विकास खत्म होते वाला है । इसमे गलती हमारी पीड़ी के साथ साथ हम से पहले वाली पीदियों की भी रही है जिसने अगली पीढी को देने के लिए कई एकड़ ज़मीन लेने की सोची पर उसके विचारों को आसमान देने में कतराती है । जो पढ़ाई के लिए विदेश भेजने को तो तैयार है, पर उस विदेशी तालीम का उपयोग क्या होगा ये पूछने पर नाराज़ हो जाती है । दोष युवाओं पर है , भार युवाओं पर है , और उम्मीद भी युवाओं से ही है ।
कहा जाता है के यदि भविष्य कि ओर जाना है तो इतिहास के कंधो पर बैठ कर जाओ , सफर आसान होगा । पर अब इतिहास में रूचि किसे है, बना है इंजीनियर, डाक्टर, वकील ... पर अगर इस रास्ते भी इतिहास को साथ लेकर जाया जाए तो सफर आसान होगा उम्मीद तो की ही जा सकती है ।
इस आडियो में महात्मा गाँधी लोगों से बात कर रहे हैं , सुन रहे हैं और बता रहे हैं के क्या हो रहा है । क्योंकि वो जानते थे के महात्मा उन्हें लोगों ने यूँ ही नही बनाया ।
एक विशेष बात अनुशासन को लेकर भी है इसमें
सुनें



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ये जो हल्का हल्का सुरूर है - नुसरत

साकी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया
एय रहमत--तमाम मेरी हर खता मुआफ
मई इंतिहा--शौक (में) से घबरा के पी गया
पीता बगैर इज़्म ये कब थी मेरी मजाल
दर-पर्देह चश्म--यार की शय पा के पी गया
पास रहता है दूर रहता है
कोई दिल में ज़रूर रहता है
जब से देखा है उन की आंखों को
हल्का हल्का सुरूर रहता है
ऐसे रहते हैं कोई मेरे दिल में
जैसे ज़ुल्मत में नूर रहता है
अब अदम का येः हाल है हर वक्त
मस्त रहता है चूर रहता है
ये जो हल्का हल्का सरूर है
ये तेरी नज़र का कसूर है
के शराब पीना सिखा दिया
तेरे प्यार ने , तेरी चाह ने
तेरी बहकी बहकी निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया
शराब कैसी (What Drink), खुमार कैसा (what Elevation)
ये सुब तुम्हारी नवाज़िशैं हैं (It is all your gift)
पिलाई है किस नज़र से तू ने (How i have been made into an addict)
के मुझको अपनी ख़बर नही है (I have no awareness of Myself)
तेरी बहकी बहकी निगाह ने (Your lost looks)
मुझे इक शराबी बना दिया....
सारा जहाँ मस्त, जहाँ का निज़ाम (System) मस्त
दिन
मस्त, रात मस्त, सहर (Morning) मस्त, शाम मस्त

दिल मस्त, शीशा मस्त, साबू (Cup of Wine) मस्त, जाम मस्त
है तेरी चश्म--
मस्त से हेर ख़ास--आम (Everyone) मस्त
यूँ तो साकी हर तरह की तेरे मैखाने में है
वो भी थोडी सी जो इन आंखों के पैमाने में है
सब समझता हूँ तेरी इशवा-करी (Cleverness) साकी
काम करती है नज़र नाम है पैमाने का.. बस!
तेरी बहकी बहकी निगाह ने
मुझे इक शराबी बना दिया...
तेरा प्यार है मेरी जिंदगी (My life is your love)
तेरा प्यार है मेरी बंदगी (I am enclosed in your love)
तेरा प्यार है बस मेरी जिंदगी, तेरा प्यार है बस मेरी जिंदगी
नमाज़ आती है मुझको, वजू आता है
सजदा कर लेता हूँ, जब सामने तू आता है
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है....
मै अज़ल से बन्दा--इश्क हूँ, मुझे ज़ोह्द--कुफ्र का ग़म नहीं (Deep down I am a lover, I am not sad for hearafter hell)
मेरे सर को डर तेरा मिल गया, मुझे अब तलाश--हरम नही
मेरी बंदगी है वो बंदगी, जो मुकीद--दैर--हरम (Bounded to any sacred Place) नही
मेरा इक नज़र तुम्हें देखना, बा खुदा नमाज़ से कम नही (For me to look at you is no less than Namaz)
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है...
बस मेरी जिंदगी तेरा प्यार है...
तेरा नाम लूँ जुबां से, तेरे आगे सर झुका दूँ
मेरा इश्क कह रहा है, मैं तुझे खुदा बना दूँ
तेरा नाम मेरे लब पर, मेरा तज़करा है दर दर
मुझे भूल
जाए दुनिया , मैं अगर तुझे भुला दूँ
मेरे दिल में बस रहे हैं, तेरे बेपनाह जलवे
हो जिस में नूर तेरा, वो चराग ही बुझा दूँ
जो पूछा के किस तरह होती है बारिश, जबीं (Forehead) से पसीने की बूँदें गिरा दी
जो पूछा के किस तरह गिरती है बिजली, निगाहें मिलाएं मिला कर झुका दें
जो पूछा शब्--रोज़ मिलते हैं कैसे, तो चेहरे पे अपने वो जुल्फें हटा दीं
जो पूछा नगमों में जादू है कैसा, तो मीठे तकल्लुम में बातें सुना दीं
जो अपनी तमनाओं का हाल पुछा , तो जलती हुई चंद शामें बुझा दीं
मैं कहता रह गया खता--मोहब्बत की अच्छी सज़ा दी
मेरे दिल की दुनिया बना कर मिटा दी, अच!
मेरे बाद किसको सताओगे ,
मुझे किस तरह से मिटाओगे
कहाँ जा के तीर चलाओगे
मेरी दोस्ती की बलाएँ लो
मुझे हाथ उठा कर दुआएं दो, तुम्हें एक कातिल बना दिया
मुझे देखो खुवाहिश--जान--जां
मैं वोही हूँ अनवर--निम् जान
तुम्हें इतना होश था जब कहाँ
चलाओ इस तरह तुम ज़बान
करो मेरा शुक्रिया मेहेरबान
तुम्हें बात करना सिखा दिया...
यह जो हल्का हल्का सरूर है, यह तेरी नज़र का कसूर है
के शराब पीना सिखा दिया


यदि मै कहू मुझे नुसरत फतह अली खान साहब का नशा है तो वोह ग़लत नही है, खुदा ने मेरे गले को उतना नूर नो नही दिया , पर शुक्रियाअदा करता हूँ उनका के मुझे सुन सकने लायक बनाया है

यहाँ शराब याने इश्वर का नशा है
सुनिए सुखनवर की आवाज़ में ये बेहतरीन नगमा


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दिल तो क्या चीज़ है जान से जाएँगे- नुसरत

ऐसा बनना सवारना मुबारक तुम्हें, कम से कम इतना कहना हमारा करो,
चाँद शरमाएगा चांदनी रात में, यूँ न जुल्फों को अपनी संवारा करो ।

यह तबस्सुम यह आरिज़ यह रोशन जबीं, यह अदा यह निगाहें यह जुल्फें हसीं ,
आइने की नज़र लग न जाए कहीं, जान-ऐ-जान अपना सदका उतरा करो ।

दिल तो क्या चीज़ है जान से जाएँगे , मौत आने से पहले ही मर जाएँगे ,
यह अदा देखने वाले लुट जाएँगे, यूँ न हंस हंस के दिलबर इशारा करो ।

फ़िक्र-ऐ-उक़बा की मस्ती उतर जायेगी तौबा टूटी तो किस्मत संवर जायेगी ,
तुम को दुन्या में जन्नत नज़र आ'आय गी शैख़ जी मई-कड़े का नज़ारा करो ।

काम आए न मुश्किल में कोई यहाँ, मतलबी दोस्त हैं मतलबी यार हैं,
इस जहाँ में नही कोई एहल-ऐ-वफ़ा, ऐ फ़ना इस जहाँ से किनारा करो ।

ऐसा बनना संवारना मुबारक तुम्हें, कम से कम इतना कहना हमारा करो...

नुसरत फ़तेह अली खान साहब की कई शानदार कव्वालियों में से एक

सच मच अगर मेरे जीवन में नुसरत साहब की आवाज़ न हो तो दिल तो क्या चीज़ है जान से जाएँगे , मौत आने से पहले ही मर जाएँगे
www.funytimes.com - AISA-BANNA-SANWARNA-MUBARAK


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जीवन का सबसे बड़ा सत्य क्या है, और क्या सभी जानने की चेष्ठा करते हैं ?

बड़े दिनों बाद अपना ऑरकुट खाता खोला, एक एप्लीकेशन जुड़ी हुई थी Ask Friends . मैने उसे देखा और लगा के मेरे किसी काम की नही है तो डिलीट करने लगा, सोचा के हिस्ट्री देख लूँ, उसमे मेरे द्वारा 2 नवम्बर 2007 को पुछा गया एक प्रश्न देख कर मै ख़ुद सोच में पड़ गया । What is the greatest truth in life ? do every one realizes that ? बीते दो वर्षों में जीवन में गति इतनी रही के मै ख़ुद अपने सवाल को भूल बैठा । अब प्रश्न ये है के वो प्रश्न मैने पुछा क्यों ? उसी दौरान लिखी एक कविता याद आई " मेरा ये दिल भी बस मुफलिसी मैं ही मचलता है "। क्यों पुछा ये सवाल और क्या मै आज भी उस का जवाब खुद ढूँढ पाया हूँ । नहीं ढूंढ पाया, हाँ नहीं ढूंढ पाया ! पर इतना ज़रूर समझा हूँ के जीवन का सबसे बड़ा सत्य परिवर्तन है, पल-पल और प्रति पल परिवर्तन यह ही संसार का नियम है । स्थिर है तो सिर्फ परिवर्तन । और ये सिद्धांत सभी ओर सामान रूप से प्रतिपादित है, बुद्ध ने कहा था की संसार का हर एक पदार्थ , हवा, पानी, सब कुछ नश्वर है और प्रति पल नष्ट होता है प्रति पल बनता है । इस दुनिया में सिर्फ़ तरंग ही तरंगे हैं, बस बात इतनी सी है कि हमारी आवाज़ जो तरंगों के मध्यम से चलती है, कम दूरी पर ही अपना दम तोड़ देती है,और हमारा शरीर कुछ दशक तक चल जाता है । ऐसे में संसार में उत्पन्न और नष्ट होना दो ही प्रमुख क्रियाएं हैं । जीवन में भय, शोक, खुशी, दुःख, निंद्रा, क्रोध, मोह और न जाने कितनी भावनाएं नष्ट होने को ही उत्पन्न होती हैं । तो इन भावनाओं को आधार बनाकर अपने जीवन के फैसले , किसी से बैर कहाँ तक सही है ?
जीवन का सत्य ढूँढने चले सेंकडो महा पुरूष अंत में इश्वर को पाते हैं, सचमुच क्या इश्वर जीवन है? या जीवन का सत्य है? या वे सिर्फ़ इश्वर के बहाने जीवन के किसी रस को पा जाते हैं और अपने में मस्त जीवन यापन करते हैं ।
खैर जीवन का सत्य मेरे लिए महत्त्वपूर्ण ना होकर जीवन महत्वपूर्ण है, और विचारों की एक श्रृंख्ला एक 70MM की रील के समान घूम रही है, कहीं आपको प्रश्न सुझाती है कहीं उत्तर, और कहीं आप उन प्रश्नों को भूल जाते हैं, तो कहीं जूझ जाते हैं । महत्त्व है तो सिर्फ़ परिवर्तन का तो बस बने रहें परिवर्तन के साथ .


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भारत मालों से बढेगा या मेलों से ? india will grow through malls or by melas(fairs)

भारत मालों का देश न होकर मेलों का देश है, यहाँ गाँव-गाँव में मेले सिर्फ एक उत्सव या त्योहारों का प्रतीक नहीं अपितु देश के अर्थशास्त्र का एक हिस्सा है, नई शहरी विचार की वकालात अब आम है , और आज शोर-शराबा गाड़ियों की आवाज़ के ज्यादा किसी मैदान में लगे मेले से आने वाली आवाज़ को कहते हैं । लोग परेशान हो जाते हैं नवरात्री पर होने वाली 10 दिनों की राम लीला से, डोलग्यारस, अनंत चतुर्दशी और नवरात्री के बाद निकलने वाले चल समारोहों से , कारण पूछने पर कोई नाराज़ नही होता, बल्कि भड़क जाता है अपनी सुरक्षा के नाम पर, अपने स्वस्थ के नाम पर, और अपने बच्चों की पढ़ाई के नाम पर। क्या वाकई लोगों का भड़कना जायज़ होता है ?
भोपाल शहर में 29.09.2009 को दुर्गा विसर्जन समारोह था । ये शहर के दो हिस्सों में अलग अलग निकला जाता है । रात 10 बजे से शुरू होते हुए सुबह 6 बजे तक चलने वाले चल समारोह में विभिन्न समितियों द्वारा शहर भर में स्थापित झांकियों को गरिमामयी तरीके से सजाया जाता , बेहतरीब विद्युत सज्जा और चालित सामग्रियों के साथ निकला जाता है । एक एक झांकी पर हजारों रुपए खर्च होते हैं । उन झांकी वालों को क्या मिलता है, सिर्फ़ कुछ चुनिन्दा मंचों से प्रशस्ति , और कुछ मंचों से 501 और ज्यादा से ज्यादा 1001 रुपए का नगद पुरस्कार , वो भी चुनी हुई झांकियों को , फ़िर वो क्यों लाते हैं हर साल, क्या सिर्फ़ पैसा बहाने ?
वहां सड़कों पर 1 लाख आदमी घूम रहा है, और उसके पास कुछ खर्च करने को भी होता है, इसी बीच कुछ छोटे ठेले वाले चना जोर गरम , पपडी, पॉप कॉर्न, गुब्बारे और न जाने कितनी चोटी चोटी चीजें बेचते हैं . कुछ व्यापारी रात भर अपनी दुकाने खोले रहते हैं के लोगों तक उनकी ज़रूरत का सामान पहुँच सके । और ऐसे ही धन का संचार होता है। कुल मिला कर फायदा बाज़ार को होता है क्योंकि ये छोटी दुकान वाले बड़ी दुकानों से अपना समान लाते हैं, जिनकी बिक्री बढती है, छोटे व्यपारी के पास ज्यादा पैसा आ जाने से वो अपने व्यपार को बढ़ता है, तो बाज़ार में और पैसा आता है, और इन सभी से मिलकर शहर में रोज़गार बढ़ता है और गरीबी मिटती है । लोगों के पास पैसा आने से झांकियां लगाने वाली समितियों को दोबारा चंदा मिलता है और वे दुबारा झांकिया लगते हैं ।
हमारी पीड़ी को खरीददारी का मतलब मॉल, भीड़ का मतलब फ़िल्म छूटने के बाद मल्टीप्लेक्स से छूटने वाला हुजूम, और अर्थशास्त्र का मतलब शेयर बाज़ार ही बताया गया है । वो कभी किसी गाँव में लगे मेले में चला जाए और उसे मंगल पर जाने जैसा एह्साह होने लगे तो भी कोई बड़ी बात नही है । हम इतनी जल्दी परग्रही और पर वतन नही हो सकते, हम एक नया इतिहास तो बनायेंगे पर जो हमारे बुजुर्गों ने सांचा गढा है उसका क्या , यदि उसे समझे बिना ही नया सोपान लिखना शुरू कर ज्यादा मेहनत करनी होगी समय भी अधिक लग जाएगा ।
हमारा देश एक अलग संस्कृति को लेकर चलने वाला और अपने बनाये मापदंडों पर चलने वाला है , यहाँ सरकार को और युवाओं को ये समझना होगा के हमें क्या प्रोत्साहित करना है और कैसे करना है । शहर में मॉल खोलने से रोज़गार कितने बढ़ेंगे और एक हाकर्स कार्नर बनने से कितने रोज़गार बढ़ेंगे , बहुत साड़ी चोटी चोटी चीजों पर ध्यान देने की ज़रूरत है बाज़ार को बढ़ने के लिए , और लोगों को उन्नत करने के लिए ।
इन विषयों पर आज से कई साल पहले सोचा जाना चाहिए था जो नही किया गया, आज एक बार और यदि हम अपने दम पर एक ऐसी अर्थ व्यवस्था की नींव रख पाते हैं जो भारत की हो तो ये सचमुच भारत का विकास होगा ।
जाते जाते आपको छोड़ रहा हूँ भोपाल में बैठी विभिन्न झांकियों में से एक शिव-बारात के दृश्य के साथ


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