ऑस्ट्रेलिया ही असली बादशाह

रूप नारायण गौतम

बीते दिनों ऑस्ट्रेलिया टीम की एकदिवसीय मैचों में बादशाहत खत्म होनें पर काफी हो हल्ला मचा। मीडिया, खेलएक्सपर्ट, खेल प्रेमियों ने अपने-अपने स्तर पर कंगारू टीम की असफलता की व्याख्या की, सीनियर खिलाड़ियों कासन्यास लेना, नए खिलाड़ियों में अनुभव और तालमेल की कमीं, कुछ सीनियर खिलाड़ियों का गैर-जिम्मेंदारीपूर्णव्यवहार ये प्रमुख कारण रहे जिन्होंने कंगारू टीम के प्रदर्शन को प्रभावित किया। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलनाचाहिए कंगारूओं के प्रदर्शन को आदर्श मानकर बाकी टीमों ने भी अपने प्रदर्शन में सुधार किया और इस टीम को नकेवल टक्कर दी बल्कि नंबर एक के सिंहासन से भी उतार दिया। आजकल एक सवाल सभी के मन में उठ रहा हैकि जिस प्रकार साउथ अफ्रीका टीम ने वन-डे में कंगारूओं की बादशाहत खत्म की है, उसी तरह अपने घर में टेस्टश्रंखला में ऑस्ट्रेलिया का सूपड़ा साफ कर टेस्ट में भी कंगारूओं की बादशाहत खत्म करेगी।
लेकिन हमें क्रिकेट के वर्तमान स्तर पर पहुंचानें में टीम ऑस्ट्रेलिया के योगदान को नहीं भूलना चाहिए। इंग्लैण्डको क्रिकेट का जनक होनें का गौरव प्राप्त है, लेकिन इस पोषित करने का काम ऑस्ट्रेलिया ने बखूबी किया है। हमेंनहीं भूलना चाहिए कि जब टेस्ट मैच एकदम नीरस और बिना परिणाम के समाप्त हो जाते थे, तब कंगारू टीम केओपनर बल्लेबाजों मैथ्यू हैडन और जस्टिन लैंगर ने ही चार रन प्रति ओवर के साथ टेस्ट में रन बनाना शुरू कियाऔर रनों की दर बढ़नें के साथ मैचों में परिणाम आना भी शुरू हुए। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि किसी भीतरह की तकनीकि या खेल में नवीनीकरण लानें का श्रेय कंगारूओं को ही है, इन्होंने ही क्रिकेट में तकनीकि केसहारे खेल के स्तर को उठानें का प्रयास किया, चाहे वह बॉलिंग मशीन हो या पुराने मैचों के टेप देखकर रणनीतितैयार करनें की बात हो। कंगारूओं ने ही क्रिकेट में सबसे पहले खेल के अन्य पहलुओं जैसे फिटनेस (शारीरिक औरमानसिक) के लिए जोर दिया। बाकी क्रिकेट खेलनें वाले देश अक्सर उन्हीं का अनुकरण करते आए हैं। उनके खेलके प्रति पेशेवर नज़रिए और हर मैच जीतनें के क्रूर इरादों ने ही उन्हें इतनें वषों से नंबर एक बनाए रखा और चार विश्व कप विजेता होनें का गौरव प्रदान किया है। अब जब टीम के प्रमुख खिलाड़ी मैथ्यू हैडन, एडम गिलक्रिस्ट, जस्टिन लैंगर, ग्लेन मैक्ग्राथ, शेन वार्न सन्यास ले चुके हैं और रिकी पोंटिंग की फिटनेस पहले जैसे नहीं रही है, नए खिलाड़ियों पर काफी दारोमदार है, टीम के पास अभी भी माइकल क्लार्क, हसी बंधु, हैडिन, सिडल, साइमंड्स जैसे प्रतिभावान खिलाड़ी मौजूद हैं तो रिकी पोंटिंग जैसा आदर्श कप्तान मौजूद है। निश्चय ही टीम फिर से संगठित होगी और पुरानी चम्पियनो वाली रफतार पकड़ेगी। जिसका नजराना यहां कंगारू टीम ने साउथ अफ्रीका को पहले टेस्ट मैच में 162 रनों से पीटकर दे दिया है। निश्चय ही साउथ अफ्रीका, भारत और इंग्लैण्ड इस समय कंगारू टीम के सबसे करीबी प्रतिद्वंदी हैं भारत के पास धोनी जैसा नेतृत्व है और शहवाग, युवराज, इशांत जैसे मैच जिताऊ खिलाड़ी हैं, उधर अफ्रीका टीम ने निरन्तर शानदार प्रदर्शन कर नंबर एक की कुर्सी हासिल की है, इंग्लैण्ड और न्यूजीलैण्ड में भी प्रतिभावान खिलाड़ियों की कमीं नहीं है ऐसे में लंबे समय तक प्रदर्शन के आधार पर ही तय होगा कि असली बादशाह कौन है।

राजनेताओं की होली (रंग बरसे आप झूमे श्रृंखला भाग ५)

प्रस्तुति-सौरभ खंडेलवाल
मौका भी है दस्तूर भी ,चुनावों की घोषणा हो चुकी है रंगों का त्यौहार सर पर है तो राजनेताओं को कैसे भूल सकते हैं रंग बरसे आप झूमे श्रृंखला में हम आज पांचवे रंग पर आ चुके हैं । आपके मिल रहे प्यार के हम आभारी हैं . भारतीय राजनेताओ का हर त्योहार मनाने का अंदाज निराला होता है, और हो भी क्यों नही राजनेता जो हैं , होली की बात करें तो शायद राजनेता सबसे ज्यादा उल्लास के साथ इसी त्योहार को मनाते हैं। होली के सबसे बड़े
खिलाड़ी हैं राजनीतिक हास्य के अवतार लालू प्रसाद यादव। उनकी कपड़ा फाड़ होली पूरे देश में सुर्खियाँ तो बटोरती ही है साथ ही इसे काफी लोकप्रियता भी मिली है। होली को याद किया जाता है.होली के दिन लालू के घर पर कपड़ा फाड़ होली देखने वालों की भी खूब भीड़ जुटती है और तब उनकी पत्नी राबड़ी देवी शरमाती हुई अपने पति का असली गंवई रूप देखती हैं। भीड़ के साथ-साथ लालू भी भीड़ में शामिल होकर अपने गाने से सबका खूब मनोरंजन करते हैं। उनका होली गीत `आ रा रा रा रा रा रा` खासा प्रसिद्ध है। होली के दिन कोई भी उनके घर से कपड़े फड़वाए बिना नहीं जा सकता। सभी को लालू के घर में बने स्वीमिंग पूल में नहलाकर रंगों से तरबतर कर दिया जाता है।ली को याद किया जाता है.
पूरे देश में शांति होना चाहिए, होली रंगों से खेली जाती है न कि रक्त से। चुनाव आपको बदलाव का मौका देते हैं मगर बदलाव भी ऐसा होना चाहिए कि वो जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सके।
-अटल बिहारी वाजपयी

होली के एक और बड़े खिलाड़ी हैं, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी। वाजपेयी लालू की तरह कपड़ा फाड़ होली तो नहीं खेलते लेकिन इनके घर भी होली का उत्साह चरम पर रहता है। भाजपा के सभी शीर्ष नेताओं के अलावा दूसरी पार्टियों के नेता और अटलजी के मित्र जनों का यहां अच्छा खासा मजमा लगता है। सन् 2004 की होली में जब वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे, तब चुनाव नजदीक ही थे। ऐसे में चुनावी रंग भी वहां देखने को मिला, अटलजी ने तब अपने संदेश में कहा था कि पूरे देश में शांति होना चाहिए, होली रंगों से खेली जाती है न कि रक्त से। उन्होंने कहा था कि चुनाव आपको बदलाव का मौका देते हैं मगर बदलाव भी ऐसा होना चाहिए कि वो जनता की आकांक्षाओं को पूरा कर सके। 5 साल पहले दिया गया यह बयान आज भी शायद उतना ही प्रासंगिक है जितना तब था। इस वर्ष शायद हम उनकी होली को नहीं देख सकेंगे लेकिन उनके जल्द स्वस्थ्य होने की कामना तो कर ही सकते हैं।
बहरहाल, होली की मौज मस्ती पर वापस लौंटे तो सोनिया गांधी भी होली खेलने में पीछे नहीं है। 10, जनपथ होली के दिन कार्यकर्ताओं से पटा होता है और सोनिया गांधी भी उस दिन फूल मूड में होती है। इस बार होली के दिन बयान देने की बारी शायद उनकी है। उनका बयान तो हम सुन ही लेंगे लेकिन आप यह मस्ती भरा गाना सुनिए-

इस श्रृंखला की पुरानी पोस्ट
  1. भोपाल की होली (रंग बरसे आप झूमे श्रृंखला भाग ४)

  2. होली आई रे कन्हाई (रंग बरसे आप झूमे श्रृंखला भाग ३)

  3. बनारस की होली (रंग बरसे आप झूमे श्रृंखला भाग २ )

  4. रंग बरसे ...आप झूमें श्रंखला भाग १




खत्म हो पाकिस्तान की मान्यता

लाहौर में श्रीलंकाई टीम पर हमला होने के बाद अब शायद ही कोई टीम कभी पाकिस्तान का दौरा करेगी। कम से कम अगले 5 सालों तक तो नहीं। श्रीलंका को दौरे से पहले आतंकवादियों ने धमकी भी दी थी लेकिन इन धमकियों को शायद इसलिए गंभीरता से नहीं लिया गया कि ऐसी धमकियां आए दिन हर टीम के खिलाड़ियों को मिलती रहती है। श्रीलंका टीम पर हमले से साफ जाहिर होता है कि पाकिस्तान कां प्रशासन इन दहशतगर्दों के आगे बौना साबित हो रहा है। इस घटना heliसे एक बात और सामने आती है कि पाकिस्तान में मेहमानों की भी कोई कद्र नहीं है। ऐसे में कोई भी देश अब अपनी टीम को वहां भेजकर किसी भी तरह का खतरा मोल नहीं लेना चाहेगा। पाकिस्तान की हालत को देखते हुए आईसीसी और सभी देश के क्रिकेट बोर्ड को कुछ कड़े कदम उठाने होंगे। आईसीसी को चाहिए कि वह पाकिस्तान की मान्यता रद्द कर दे और उसके किसी भी खिलाड़ी को कहीं भी खेलने की अनुमति न दे। बीसीसीआई को भी इस मसले पर अन्य देशों के साथ मिलकर आईसीसी पर दवाब बनाना चाहिए।

आईपीएल, आईसीएल, इंग्लिश काउंटी क्रिकेट और ऑस्ट्रेलिया में खेल रहे पाकिस्तानी खिलाड़ियों को टीम से हटा दिया जाए ताकि पाकिस्तान सरकार पर कुछ दवाब बने और वहां के हालात पर काबू पाने के लिए कोई कदम उठाने को मजबूर हो। अमरीका से इस मामले में घटना की निंदा करने के अलावा कोई उम्मीद मुझे इसलिए नहीं है क्योंकि इससे अमरीका का कोई नुकसान नहीं हुआ है।
पाकिस्तान क्रिकेट का भी विवादों से गहरा नाता रहा है, पिछले विश्व कप के दौरान तत्कालीन पाकिस्तानी कोच बॉब वूल्मर की मौत का मामला अभी तक नहीं सुलझ सका है। उस घटना से भी पाकिस्तान क्रिकेट अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शर्मशार हुआ था। दरअसल अब वक्त आ गया है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा पाकिस्तान में चल रहे आंतकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए कोई सार्थक कदम उठाए जाएं। हमले के बाद उसकी निंदा करने की औपचारिकता करने मात्र से ही काम नहीं चलेगा।

शायद फिर ही पाकिस्तान बाज़ आये !

भोपाल की होली (रंग बरसे आप झूमे श्रृंखला भाग ४)


भाई आज बारी है हमारे शहर की होली की ,याने भोपाल की होली ,गंगो जमनी संस्कृति मैं शायद ये रंग होली ने हीघोला हैं। शहर को जानने वाले जानते हैं शहर दो भागों मैं बटा है नया भोपाल पुराना भोपाल ,पुराने भोपाल में कुछज्यादा ही उत्साह से होली मानती है ,यहाँ होली उत्सव पाँच दिन चलता है होली से शुरू होकर यह त्यौहाररंगपंचमी तक पूरे शहर को रंगीन किया करता है होली के दिन शहर के हर गली मुहल्ले मैं होलिका कर निकलपड़ते है हुल्लिआडे होली मानाने हाथों मैं रंगों की थैली ,पुरानी शर्ट और पैंट जिनके लिए वोह आखिरी शाम हीसाबित होती है,जाते हैं अपने दोस्तों के यहाँ , परिवारों मैं चौराहों पर ,जो मिलता है उसे रंग मैं भिडा देना ही इनकीजीत होती है और उल्लास से भर देती है, लाल, कला, हरा, नीला जाने कितने ही रंग घरों की छतों से छोटे बच्चेआने जाने वालों पर पिचकारी,रंगों से भरे फुग्गों से तर करते हैं , पीरगेट(सोमवारा) , चौक, करोंद, सिन्धी कालोनी, जवाहर चौक और अशोका गार्डन में तो विशेष रूप से बड़े बड़े हौद तैयार किए जाते है जहाँ होली से बच रहे लोगों कोपकड़ पकड़ कर नेहलाया जाता है कहा जाता है की भाई आज तो नहा लो,फिर क्या है ! कई जगहों पर भंग कीगुमठियां और भंग की आइसक्रीम के ठेले लग जाते हैं और लोग भांग के नशे में तर और सर पे सवार रंग के नशे केसाथ उतर जाते हैं सड़कों पर ,कुछ तो बेचारे कीचड़ की होली भी खेल लेते हैं अब ढोल तो कम ही सुनाई देते हैंउनकी जगह डी जे कमी को पूरा कर देते हैं गाने होते हैं-'पापी चुलो' ,' देखें जरा ',बीच बीच में 'ये देश है वीरजवानों भी सुनाई देता है' सच मानिए भोपाल में लोगों
को झूमते देखना अपना अलग अनुभव है। शाम बजेतक ये हुरदंग ख़तम हो जाता है और लोग अपने घर लौटकर,गुजिया पपडिया ,खा कर और जो पैर लंबे करते है कीशाम उन्हें उठाने में अपना समय ही बरबाद नही करती शाम होने पर कुछ शान्ति प्रिय युवक निकलते हैं गुलाललेकर और शहर में होली जारी रहरी है
भोपाल में असली होली तो होती है रंग पंचमी पर जब चल समारोह निकलता है ,बाकायदा नगरनिगम के टेंकरपानी के की धार से लगातार समारोह को सराबोर करते हैं,ढोल होते हैं बंद होता है,अरे भाई पूछिए क्या नही होतामहापौर भी होते हैं और बीच बीच में जगह जगह के पार्षद भी। बिना किसी जाती या धर्म के हर एक सिर्फ़ रंगीन हीदीखता रंग ही मेरा रंग ही मेरा इमां नज़र आता हैं ,हजरत आमिर खुसो का कलाम 'आज रंग है री ,माँ रंग है री मोहे पीर पायो ..' ऐसे ही हर कोई यहाँ रंग में खो जाने के बाद ख़ुद को पहचानने की कोशिश करता है और कोई कोई रंग तो सब को भाता ही है ...तो इसी उम्मीद के साथ के आप भी रंगीन हुए होंगे लीजिये प्रस्तुत है ये मस्ती भरा गीत फ़िल्म नवरंग से .





होली आई रे कन्हाई ((रंग बरसे आप झूमे श्रृंखला भाग ३)

तो आज हम सफर के तीसरे मुकाम पर जा पहुंचे हैं,भोले के अट्ठारह डिब्बों मैं पहुंचे हैं फिल्मो मैं होली मनाने। शब्दों की तरुनाई सबसे बड़ी ठंडक देती है कबीर दास जी ने कहा भी है की
ऐसी वाणी बोलिए,मन का आपा खोये ,औरन को सीतल करे,आपहु सीतल होए।
तो चलिए फिर एक बार रंगीन हो जायें
होली आई रे कन्हाई रंग छलके , सुना दे जरा बांसुरी...। फिल्म मदर इंडिया में शकील बदायुनी का लिखा और नौशाद के संगीत से सजा यह गाना अनायास ही मन में उमड़ती हुई सैकड़ों उमंगों को जगा जाता है और हम झूमते हुए निकल जाते हैं उल्लास व अल्हड़ देशों की यात्रा पर। सिनेमा हमारे समाज, परिवेश, देश और सभ्यता का दर्पण होता है। भारतीय फिल्मों में होली के रंगों की छाप हमेशा से ही दिखाई देती है और एक चिंतनीय तथ्य यह भी है कि आज जब सिनेमा तकनीकी सफलता के युग में जी रहा है वहीं फिल्मों से होली और उसके रंग बिल्कुल जुदा हो चुके हैं। पुरानी फिल्मों में होली के लिए बाकायदा पूरा एक गीत तैयार किया जाता था। आजकल होली के रंग एक शॉट तक सिमट गए हैं। फिल्म रब ने बना दी जोड़ी में होली का सिर्फ एक शॉट ही है। फिल्म शोले में गब्बर का डायलॉग `होली कब है` आज तक लोगों की जुबान पर है साथ ही प्रसिद्ध गाना `होली के दिन दिल खिल जाते हैं` सुनते ही पैर थिरकने पर मजबूर हो जाते हैं। पराया धन फिल्म का गाना ` होली रे होली रंगो की डोली` अपने आप में अद्भुत है। फिल्म सिलसिला का `रंग बरसे`, बागबान का `होली खेले रघुवीरा` सहित कई गाने हैं जो आपको होली उत्सव के आनंद में आनंदित कर देते हैं। शायद वो फिल्मकार, गीतकार और कलाकार सभी उत्सवों में जीने की इच्छा भी रखते थे इसलिए इतने उत्सव गीत लिखे जा सकें हैं।
आजकल रंगो से ज्यादातर फिल्मकार परहेज ही करते हैं। चार साल पहले आई फिल्म वक्त में होली के ऊपर तथाकथित संगीतकार अनु मलिक ने भी गाना तैयार किया था- `लेट्स प्ले होली` जो उनकी तरह ही तथाकथित होली गीत था। खैर हमारे पूर्वज सिनेमाकारों ने हमें होली के उत्सवों में झूमने के लिए इतना कुछ दिया है कि इन नक्कारों की जरूरत नहीं है। पेश-ए-खिदमत है फिल्म मदर इंडिया का नौशाद साहब द्वारा संगीतबद्ध किया यह गीत-